कोर हिंदू या न्यूट्रल वोटर्स किसपर करें फोकस? समझिए दो फेज के बाद BJP की दुविधा कैसे बढ़ी 

अभिषेक गुप्ता

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Lok Sabha Election: लोकसभा चुनावों में दो चरणों में हुई कम वोटिंग ने क्या बीजेपी की चिंताएं बढ़ा दी हैं? ऐसा इसलिए भी माना जा रहा है क्योंकि पीएम मोदी समेत बीजेपी की टॉप लीडरशिप के सुर अचानक से बदले नजर आ रहे हैं. पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और योगी आदित्यनाथ जैसे फायर ब्रांड नेता एक सुर से अपने भाषणों में कांग्रेस को मुस्लिम हितैषी बताने में जुटे नजर आ रहे हैं. इसकी शुरुआत हुई पिछले दिनों राजस्थान में दिए गए पीएम मोदी के एक चुनावी भाषण से. इसमें पीएम मोदी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस लोगों की संपत्ति, मंगलसूत्र छीनकर मुस्लिमों को देना चाहती है. लोगों ने कहा कि पीएम मोदी ठंडे पड़े चुनाव को गर्मा रहे हैं. फिर तो बीजेपी के दूसरे नेता इस नैरेटिव को आगे बढ़ाने में जुट गए. आखिर जो बीजेपी 400 सीटें जीतने का कॉन्फिडेंस शो कर रही थी, उसे बीच चुनाव में गर्मी बढ़ाने वाली रणनीति पर क्यों उतरना पड़ा? क्या बीजेपी अपने कोर हिंदुत्व वोटर्स में पैदा हुई किसी निराशा को भांप रही है और चुनावी सुर बदल रही है? या बीजेपी किसी दुविधा का शिकार है? चुनाव विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने इसी बात को समझने की कोशिश की है. 

आपको बता दें कि, सात चरणों में होने वाले लोकसभा चुनाव का अभी तक दो चरण सम्पन्न हो चुका है. जिसमें पिछले चुनाव की अपेक्षा पहले चरण में लगभग 4 फीसदी तो वहीं दूसरे चरण में 2 फीसदी कम मतदान हुआ है. वोटिंग में हो रही इस कमी को माना ये जा रहा है कि, वोटर निकल नहीं रहा है और मतदान में कोई रुझान नहीं ले रहा हैं. दिलचस्प बात ये है कि, ऐसे वोटरों में ज्यादातर संख्या हिन्दू वोटरों की कही जा रही है. वैसे तो मतदान फीसदी और चुनावी नतीजों के बीच कोई स्पष्ट रुझान नहीं है, फिर भी कम मतदान निराशाजनक ही रहा है. 

खबर ये भी है कि, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पहले फेज के मतदान की समीक्षा करने के लिए पार्टी नेताओं से मुलाकात की और समझा कि पार्टी के नेताओं में उत्साह की कमी क्यों है. वैसे दिलचस्प बात ये है कि, साल 1952 के बाद से छह चुनावों में मतदान में गिरावट हुई है जिसमें चार बार मौजूदा सरकारें हार गई है. ये आंकड़े बीजेपी के लिए चिंता का सबब बन रहे है है. वैसे बीजेपी ने केंद्र में अब तक पांच बार 1996, 1998, 1999, 2014 और 2019 में सरकार बनाई है जिसमें से चार बार मतदान में वृद्धि दर्ज की गई है और केवल 1999 में गिरावट आई थी. 

बीजेपी की जीत में हिन्दू वोटरों का है सबसे बड़ा योगदान 

लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी के भीतर एक वर्ग पार्टी के मिशन 400 को लेकर आशंकित है. हालांकि पीएम मोदी के बार-बार उद्घोष से कुछ कार्यकर्ताओं और समर्थकों में आत्मसंतुष्टि जरूर हो सकती है लेकिन फिर भी 400 पार की डगर मुश्किल जरूर नजर आ रही है. वैसे पार्टी के रणनीतिकारों का मानना ​​है कि, अगर लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 60 फीसदी हिंदू वोट मिलते हैं, तो पार्टी आराम से जीत जाएगी. उनका मानना है कि, देश की जनसंख्या की 80 फीसदी आबादी हिंदुओं की है जिससे करीब 48 फीसदी स्टैंडअलोन वोट शेयर में बदल जाएगा. हालांकि इसके लिए इस वर्ग को चार्ज करना होगा जिससे ये ज्यादा से ज्यादा मतदान में हिस्सा ले. यही वजह है कि, पीएम मोदी सहित बीजेपी इस वर्ग के वोटरों को ट्विस्ट करने में जुटे हुए है. 

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बात 2014 के आम चुनावों की करें, तो उस चुनाव में 36 फीसदी हिंदुओं ने बीजेपी को वोट दिया, जो कि पार्टी को मिले कुल वोटों जो करीब 31 फीसदी था का 29 फीसदी था. ऐसे ही 2019 के आम चुनावों में बीजेपी के लिए हिंदुओं का समर्थन बढ़कर 44 फीसदी हो गया. इस चुनाव में बीजेपी को करीब 38 फीसदी वोट मिले जिसमें से हिंदुओं का वोट शेयर करीब 35 फीसदी का रहा.  यानि इस बात से ये साफ पता चलता है कि, 2014 और 2019 में बीजेपी का समर्थन करने वाले प्रत्येक 100 वोटरों में से 93 वोटर हिंदू थे. 

बीजेपी को वोट देने में 'मोदी फैक्टर' हैं हिन्दू वोटरों की पसंद 

जैसा की हमने देखा कि, बीजेपी को जितने वोट मिल रहे है उसका करीब 93 फीसदी हिन्दू वोटरों से है. हालांकि इससे यह मान लेना कि, सभी हिंदू वोटर बीजेपी को उसकी 'हिंदुत्व' की विचारधारा की वजह से समर्थन दे रहे हैं एक भ्रम है. साल 2014 में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज(CSDS) के राष्ट्रीय चुनाव अध्ययन के नाम से किये गए सर्वे में लगभग 27 फीसदी बीजेपी मतदाताओं ने कहा कि, अगर नरेंद्र मोदी पीएम उम्मीदवार नहीं होते तो उन्होंने पार्टी को वोट नहीं दिया होता. दिलचस्प बात ये है कि, 2019 में यह संख्या बढ़कर 32 फीसदी तक हो गई. आमजन की भाषा में इसे 'मोदी फैक्टर' कहा जाता है. 

'मोदी फैक्टर' ने 2014 में बीजेपी के गठबंधन NDA को 5.5 करोड़ वोट और 2019 में 8.5 करोड़ वोट दिलाए. इससे पता चलता है कि, 2014 में बीजेपी का वैचारिक वोट शेयर उसके 31 फीसदी के कुल वोट शेयर में से सिर्फ 23 फीसदी का ही था. आठ फीसदी वोट न्यूट्रल या मोदी फैक्टर का था. ऐसे ही 2019 में बीजेपी का वैचारिक वोट शेयर उसके कुल वोट शेयर 38 फीसदी में से 26 फीसदी का था और 12 फीसदी वोट न्यूट्रल या मोदी फैक्टर वोट था. इसलिए जहां 2014 में बीजेपी के प्रत्येक 100 मतदाताओं में से 73 को उसके कोर मतदाता के रूप में माना जा सकता था, वहीं 2019 में यह संख्या घटकर 68 रह गई. औसत तौर पर देखें तो बीजेपी के वोट शेयर में से केवल 70 फीसदी ही मूल मतदाता हैं. बाकी बचे 30 फीसदी मतदाता नॉन-कोर है. ये 30 फीसदी गैर-कोर मतदाता 'मोदी फैक्टर' की वजह से बीजेपी का समर्थन करते है. जो पीएम मोदी के व्यापार अनुकूल छवि, कल्याणकारी योजनाओं, जी -20 जैसे भारत के अंतर्राष्ट्रीय कद में सुधार करने के प्रयासों या प्रशासनिक / शासन अनुभव से प्रभावित हैं. 

यानी बीजेपी को 30 फीसदी का बड़ा वोट शेयर नॉन-कोर वोटरों का है जो कभी भी अपना पाला बदल सकते है. वैसे चुनाव आयोग के डेटा के मुताबिक लोकसभा चुनाव 2024 में 1.85 करोड़ फर्स्ट टाइम वोटर भी है जो किसी भी पार्टी के कोर वोटर नहीं है. हाल के दिनों में पीएम मोदी और बीजेपी का मुस्लिमों को टारगेट करने और आक्रामक हिंदुत्व का रुख इस वर्ग के वोटरों को पसंद नहीं आ सकता है. वैसे पार्टी इस रणनीति के माध्यम से गैर-कोर मतदाताओं को नाराज करने का जोखिम तो जरूर उठा रही है लेकिन दूसरी ओर इस रणनीति से वह अपने कोर वोटरों को साध भी रही है. पीएम मोदी के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने के अपने प्रयासों में बीजेपी के लिए यह एक दुविधा जरूर है कि, वह अपने कोर वोटरों को चार्ज करें या गैर-कोर को सात बनाए रखे और लक्षित करें.

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