लता (काल्पनिक नाम) के घर में सब कुछ ठीक लग रहा था एक सुंदर परिवार, नौकरी, और एक सुखद वैवाहिक जीवन. लेकिन कुछ तो था जो भीतर से टूट रहा था। बीते कुछ महीनों में रिश्ते जैसे बिखरने लगे थे. उसकी पति से अनबन होने लगी थी, मां से दूरी बढ़ रही थी, पिता से झगड़े होने लगे थे - हर रिश्ता टूटने की कगार पर था. वो समझ नहीं पा रही थी कि सब कुछ होते हुए भी उसका जीवन क्यों खाली सा लग रहा है और उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है?
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फिर एक दिन किसी दोस्त ने उसे एक ज्योतिषी के पास जाने को कहा. हालांकि, लता इन सब बातों की नहीं मानती थी. वो इतनी परेशान हो चुकी थी कि उसके पास कोई उपाय नहीं था. ऐसे में उसने दोस्त की सलाह मान ली और ज्योतिषी के पास चली गई. ज्योतिषी ने उसकी कुंडली की जांच की, तो सामने आया कि चंद्रमा और शुक्र कमजोर स्थिति में थे, और राहु की दशा चल रही थी - जो रिश्तों में भ्रम, अविश्वास और अलगाव लाती है. उन्होंने लता को ज्योतिषीय उपाय और कुछ मंत्र जाप करने को कहा.
लता ने जब ऐसा करना शुरू किया तो धीरे-धीरे उसको जीवन में बदलाव दिखने लगेण. आज वह फिर से अपने रिश्तों को महसूस कर पा रही है. परिवार के नज़दीकियों में वो गर्माहट लौट आई है जो कभी खो गई थी. रिश्तों की मजबूती और कमजोरी को लेकर फेमस 'ज्योतिष शैलेंद्र पांडे' बताते हैं कि ये ग्रहों के चाल-चक्र पर निर्भर करती है और इन समस्याओं को दूर करने के लिए ग्रहों की भूमिका को समझना बेहद जरूरी है.
रिश्तों के लिए जिम्मेदार ग्रह
शैलेंद्र पांडे के अनुसार, हर रिश्ते के पीछे एक खास ग्रह की भूमिका होती है:
- सूर्य: पिता के साथ संबंधों का कारक है. कुंडली में सूर्य की स्थिति बताती है कि आपके और आपके पिता के बीच रिश्ता कैसा रहेगा.
- चंद्रमा: माता के रिश्तों का स्वामी है. यह ग्रह मां और आपके बीच की भावनात्मक कड़ी को दर्शाता है.
- मंगल: भाई-बहन के रिश्तों को प्रभावित करता है. मंगल की स्थिति से सहोदरों के साथ संबंधों की मजबूती का पता चलता है.
- बुध: ननिहाल पक्ष (नाना-नानी, मामा-मौसी) के रिश्तों का नियंत्रक है.
- बृहस्पति: ददिहाल पक्ष (दादा-दादी, चाचा-चाची) और संतान के रिश्तों का स्वामी है. यह ग्रह संतान सुख और उनके साथ संबंधों को भी प्रभावित करता है.
- शुक्र: वैवाहिक जीवन और पति-पत्नी के रिश्तों का कारक है. शुक्र की स्थिति से दांपत्य जीवन में मिठास और जुड़ाव का पता चलता है.
- शनि: अधीनस्थों, कर्मचारियों और सहायकों के साथ रिश्तों को नियंत्रित करता है.
रिश्तों में मन की भूमिका
शैलेंद्र पांडे ने कहा कि रिश्ते मन से बनते और निभाए जाते हैं. इसीलिए चंद्रमा (मन का कारक) और मंगल (रिश्तों की ताकत) की भूमिका सबसे अहम होती है. अगर आप मन से किसी को भाई, बहन या दोस्त मानते हैं, तभी रिश्ता सच्चा बनता है. दिखावे के रिश्तों का कोई मतलब नहीं होता.
रिश्तों में समस्याएं कब आती हैं?
ज्योतिषी के अनुसार, रिश्तों में दरार तब पड़ती है जब:
- रिश्तों का स्वामी ग्रह कमजोर हो जाता है. जैसे, सूर्य कमजोर होने पर पिता के साथ संबंध खराब हो सकते हैं.
- कुंडली का रिश्तों वाला भाव (जैसे सातवां घर) खराब हो जाए, जिससे वैवाहिक जीवन प्रभावित होता है.
- राहु का प्रभाव बढ़ने से गलतफहमियां, अहंकार और रिश्तों में दूरी पैदा होती है.
- अग्नि तत्व की अधिकता होने पर व्यक्ति का स्वभाव और जबान पर नियंत्रण नहीं रहता, जिससे रिश्ते कमजोर पड़ते हैं.
- चंद्रमा और मंगल खराब होने पर रिश्ते केवल दिखावे के लिए रह जाते हैं, और मन से जुड़ाव खत्म हो जाता है.
रिश्तों को मजबूत करने के उपाय
शैलेंद्र पांडे कहते हैं कि रिश्तों में मधुरता लाने के लिए ग्रहों के अनुसार उपाय किए जा सकते हैं. कमजोर ग्रहों को मजबूत करने के लिए ज्योतिषीय उपचार, मंत्र जाप और दान-पुण्य जैसे कदम उठाए जा सकते हैं. साथ ही, मन से रिश्तों को निभाने की कोशिश और आपसी समझ को बढ़ावा देना भी जरूरी है.
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Disclaimer: यह जानकारी ज्योतिष और उसके इर्द-गिर्द बनी मान्यताओं और तर्कों पर आधारित है. हम ज्योतिर्विद के हवाले से यह जानकारी आपको दे रहे हैं. न्यूज़ तक ऐसी मान्यताओं और टोटकों का समर्थन नहीं करता है.
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