Kudhani Vidhansabha Seat: जैसे-जैसे बिहार की राजनीति का पारा चढ़ रहा है, वैसे-वैसे कुढ़नी विधानसभा सीट पर सियासी हलचल तेज होती जा रही है. ये वहीं सीट है जहां इस वक्त बीजेपी के केदार प्रसाद गुप्ता विधायक और मंत्री हैं. लेकिन दिलचस्प बात ये है कि एनडीए के भीतर ही इस सीट को लेकर जबरदस्त खींचतान मची हुई है. दूसरी ओर विपक्ष भी पूरी ताकत से मैदान में है, जिससे मुकाबला और भी कांटे का बन गया है.
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राजनीतिक इतिहास: हर चुनाव में उलटफेर
कुढ़नी विधानसभा सीट का इतिहास गवाह है कि यहां कोई भी पार्टी लंबे वक्त तक अपनी पकड़ नहीं बना सकी है. देखिए नीचे दिए गए पॉइंट्स:
- 2010: जेडीयू के मनोज कुमार कुशवाहा ने चुनाव जीता था, जबकि विजेंदर चौधरी बेहद करीबी अंतर से हार गए थे.
- 2015: बीजेपी के केदार प्रसाद गुप्ता ने जेडीयू के मनोज कुमार सिंह को हराया था.
- 2020: आरजेडी के अनिल कुमार सहनी ने बीजेपी के केदार गुप्ता को महज़ 712 वोटों से मात दी.
- 2022: उपचुनाव में फिर से केदार प्रसाद गुप्ता ने जेडीयू के मनोज कुमार सिंह को हराकर सीट वापस हासिल की.
जातीय समीकरण: वैश्य वोटर निर्णायक
कुढ़नी की सियासत में जातीय गणित बड़ी भूमिका निभाता है. यहां पुरुष मतदाताओं की संख्या 1,65,104 और महिला मतदाता 1,46,681 हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि वैश्य समुदाय के वोटर निर्णायक भूमिका में रहते हैं और वही अक्सर जीत-हार तय करते हैं. इसके अलावा कोइरी, कुर्मी, भूमिहार, मुस्लिम और कुशवाहा समुदायों की भी अच्छी खासी आबादी है, जो किसी भी उम्मीदवार की जीत-हार का समीकरण पलट सकते हैं.
एनडीए के भीतर घमासान
केदार प्रसाद गुप्ता इस समय मंत्री पद पर हैं, लेकिन एनडीए के भीतर ही कई नेता इस सीट पर दावा ठोक रहे हैं. पिछले उपचुनाव में भी ये घमासान खुलकर सामने आया था. जेडीयू और बीजेपी के बीच तालमेल की कमी ने मुकाबले को कड़ा बना दिया था. हर चुनाव में नए चेहरे, अलग-अलग पार्टियों की जीत और वोटों का बेहद कम अंतर यह संकेत देता है कि कुढ़नी की जनता किसी एक पार्टी पर भरोसा करने को तैयार नहीं. इस बार का चुनाव भी बेहद दिलचस्प होने वाला है जहां जातीय जोड़-तोड़, स्थानीय मुद्दे और गठबंधन की रणनीति मिलकर बिहार की राजनीति की दिशा तय कर सकते हैं.
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