Waqf Amendment Bill 2025: चुनावी साल में बिहार की सियासत ने एक बड़ा मोड़ ले लिया है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वक्फ बिल पर केंद्र सरकार का खुलकर समर्थन किया है. माना जा रहा है कि इस फैसले से राज्य के मुस्लिम वोट बैंक में हलचल मच गई है. सवाल ये है कि क्या नीतीश कुमार अब 'सेक्युलर राजनीति' से हट रहे हैं या ये कोई नई रणनीति है?
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बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं और राज्य में 17.7% मुस्लिम आबादी है, जिनका असर करीब 47 सीटों पर माना जाता है. ऐसे में वक्फ संशोधन बिल पर उनका बीजेपी के साथ खड़ा होना एक बड़ा सियासी संकेत है.. नुकसान की जानकारी होने के बाद भी सीएम नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ क्यों दिया और बीजेपी ने नीतीश को कैसे भरोसे में लिया इसे समझते हैं.
भरोसा जताने की क्या रही वजह
सबसे पहला प्वाइंट है फोन कॉल...बिल में जेडीयू के सुझाए सवाल को शामिल करना और अमित शाह का ललन सिंह को कॉल करना. भाजपा की टॉप लीडरशिप ने बिल के एक-एक पॉइंट को क्लियर किया. अमित शाह ने ललन सिंह और संजय झा के साथ मीटिंग की.
दूसरी सबसे बड़ी वजह थी नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के सुझावों को शामिल किया गया. जैसे बिल के मूल ड्राफ्ट में प्रावधान था कि नया कानून लागू होने के 6 महीने के अंदर एक सेंट्रल पोर्टल पर सभी वक्फ प्रॉपर्टीज का रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी होगा. JDU के सांसद दिलेश्वर कामत ने इस प्रावधान में संशोधन का सुझाव दिया था जिसके बाद बिल में बदलाव किया गया...वक्फ ट्रिब्यूनल किसी वक्फ प्रॉपर्टी के रजिस्ट्रेशन की टाइमलाइन बढ़ाने की बात सामने आयी.
कहा ये भी जा रहा है कि गृह मंत्री अमित शाह ने अपने हाल के बिहार दौरे के दौरान नीतीश कुमार से बात की. उनको समझाया कि बिल गरीब और पसमांदा मुसलमानों के पक्ष में है, वो बिल पारित होने के बाद हमारे साथ आ सकते हैं.
मसलन गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में बिहार दौरे पर नीतीश कुमार से मुलाकात की. अमित शाह ने समझाया कि यह कानून गरीब और पसमांदा मुसलमानों के हित में है.
अमित शाह की ललन सिंह और संजय झा के साथ मीटिंग
ललन सिंह और संजय झा के साथ दिल्ली में भाजपा नेताओं की मीटिंग भी हुई, जिसमें बिल की हर बारीकी को समझाया गया. बीजेपी की टॉप लीडरशिप ने बिल के एक-एक पॉइंट को क्लियर किया. अमित शाह ने ललन सिंह और संजय झा के साथ मीटिंग की.
नीतीश कुमार ने हमेशा अपनी छवि एक 'सेक्युलर और संतुलित' नेता की बनाए रखी है. लेकिन इस बार वह एक नए प्रयोग की ओर बढ़ते दिख रहे हैं. अब देखना होगा कि वक्फ बिल पर लिया गया यह फैसला उन्हें चुनावी फायदे में बदलता है या फिर मुस्लिम वोट बैंक से दूर कर देता है.
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