एलन मस्क की भारत के टेलीकॉम मार्केट में एंट्री, स्पेस X के स्टार लिंक ने एयरटेल के साथ किया समझौता

भारती एयरटेल और स्पेसएक्स के बीच एक समझौता हुआ है. इस समझौते के तहत स्पेसएक्स अपनी कंपनी स्टारलिंक के जरिए भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस शुरू करेगी. ये सर्विस कारोबारी संस्थानों, स्कूल कॉलेजों, अस्पताल और दूर दराज के इलाकों में उपलब्ध होगी.

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तस्वीर: AI

News Tak Desk

11 Mar 2025 (अपडेटेड: 12 Mar 2025, 08:25 AM)

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एलन मस्क की भारत के टेलीकॉम मार्केट में एंट्री हो गई है. एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स ने भारती एयरटेल के साथ समझौता कर लिया है. भारती एयरटेल की ओर से इसकी जानकारी स्टॉक एक्सचेंज को दी गई है. यानी अब तय हो गया है कि स्पेसएक्स भारत में सैटेलाइट इंटरनेट देने जा रही है. अब सवाल ये है कि स्पेसएक्स की एंट्री से ग्राहकों को क्या फायदा होगा, इसका भारत के टेलीकॉम मार्केट पर क्या असर होगा?

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भारती एयरटेल और स्पेसएक्स के बीच एक समझौता हुआ है. इस समझौते के तहत स्पेसएक्स अपनी कंपनी स्टारलिंक के जरिए भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस शुरू करेगी. ये सर्विस कारोबारी संस्थानों, स्कूल कॉलेजों, अस्पताल और दूर दराज के इलाकों में उपलब्ध होगी. 

सैटेलाइट इंटरनेट रेस में Jio भी उतरने जा रहा 

ये समझौता ऐसे समय में हुआ है जब भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम आवंटन को लेकर चर्चाएं जारी हैं. स्पेसएक्स और रिलायंस जियो के बीच इस बात को लेकर मतभेद है कि स्पेक्ट्रम को सीधे आवंटित किया जाए या नीलामी के जरिए. भारत सरकार ने स्पेस एक्स के पक्ष में रुख अपनाया है, जो स्पेक्ट्रम के आवंटन के समर्थन में है. इसका सीधा मतलब है कि आने वाले दिनों में एयरटेल और स्टारलिंक मिलकर जियो की मुश्किल बढ़ा सकते हैं, क्योंकि सेटेलाइट इंटरनेट की रेस में जियो भी उतरने जा रही है. 

इस समझौते के तहत स्पेसएक्स भारत में अपने ऑपरेशन्स को सपोर्ट करने के लिए एयरटेल के ग्राउंड नेटवर्क और इंफ्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल करेगा. वहीं, एयरटेल स्टारलिंक की सैटेलाइट कनेक्टिविटी का उपयोग करके अपनी सेवाओं को और बेहतर बनाएगी. 

ये समझौता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और एलन मस्क के बीच हुई मुलाकात के बाद आया है. दोनों ने वाशिंगटन में मुलाकात के दौरान अंतरिक्ष और टेक्नोलॉजी जैसे विषयों पर चर्चा की थी. इस साझेदारी का उद्देश्य दूरदराज के इलाकों में कनेक्टिविटी की समस्या को हल करना और भारत के टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना है. स्पेस एक्स की भारत में एंट्री से भारत के दूरदराज के इलाकों में भी हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड सेवाएं उपलब्ध होंगी.  

इस समझौते का मकसद पूरे देश में ग्राहकों को सस्ती और विश्वसनीय सेटेलाइट ब्रॉडबैंड सर्विस देना है. हालांकि अभी तक ये तय नहीं हुआ है कि स्टारलिंक और एयरटेल की सेटेलाइट सर्विस के चार्जेज क्या होंगे. पिछले साल छपी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक स्टारलिंक की सेटेलाइट इंटरनेट सर्विस के लिए ग्राहकों को 7 हजार 425 रुपये मंथली चार्जेज देने पड़ सकते हैं. इसके आलावा सर्विस के लिए शुरू करने से पहले 37 हजार 400 रुपये का डिवाइस खरीदना होगा जिससे आपके घर या दफ्तर में इटरनेट सर्विस आएगी. इस तरह से पहले साल सेटेलाइट सर्विस के लिए 1 लाख 58 हजार रुपये चुकाने होंगे. 

ये रकम मीडिया रिपोर्ट्स ने स्टारलिंक की दूसरे देशों में सर्विस चार्जेज के आधार पर निकाली गई है. देखा जाए तो स्टारलिंक के सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस के लिए ग्राहको को सस्ती नहीं पड़ने वाली है. हालांकि ये अनुमान है. अभी असल रेट्स क्या होंगे ये तय होना बाकी है. 

जियो की मुश्किलें बढ़ सकती हैं? 

फिलहाल स्पेसएक्स और एयरटेल का मिलन मुकेश अंबानी की मुश्किलें जरुर बढ़ा सकता है. सेटेलाइन इंटरनेट ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ज्यादा फायदेमंद माना जाता है, जहां ऑप्टिकल फाइबल के जरिए इंटरनेट की सुविधा देना मुश्किल है. यहां एक पेंच ये भी है कि ऑप्टिकल फाइबर के जरिए इंटरनेट देना सस्ता होता है. वहीं सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस काफी महंगी भी होती है. ऐसे ही भारत की ग्रामीण जनता इसको अफोर्ड कर पाएगी ये भी एक सवाल है. लेकिन कॉरपोरेट्स, सरकारी दफ्तरों और अस्पतालों के लिए ये सुविधा कारगर साबित हो सकती है जो देश के दूरदराज के इलाकों में काम करते हैं. 

स्टारलिंक क्या है? 

स्टारलिंक (Starlink) एक सैटेलाइट इंटरनेट सेवा है, जिसे एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स (SpaceX) ने विकसित किया है. इसका उद्देश्य दुनिया भर में, खासकर उन क्षेत्रों में जहां पारंपरिक इंटरनेट सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं (जैसे ग्रामीण इलाके, जंगल, या दूरदराज के स्थान), हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड इंटरनेट प्रदान करना है. 

कैसे काम करता है  सैटेलाइट इंटरनेट?

स्टारलिंक एक विशाल उपग्रह नेटवर्क (सैटेलाइट कॉन्स्टेलेशन) है, जिसमें हजारों छोटे-छोटे सैटेलाइट्स शामिल हैं. ये सैटेलाइट्स पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth Orbit - LEO) में स्थित हैं, जो लगभग 550 किलोमीटर की ऊंचाई पर चक्कर लगाते हैं. ये सैटेलाइट्स जमीन पर मौजूद ट्रांससीवर्स (रिसीवर और ट्रांसमीटर) के साथ मिलकर इंटरनेट सिग्नल भेजते और प्राप्त करते हैं. 

कैसे भेजे जाते हैं ये सैटेलाइट? 

स्पेसएक्स अपने फाल्कन-9 रॉकेट्स की मदद से इन सैटेलाइट्स को अंतरिक्ष में लॉन्च करता है. मार्च 2025 तक, 6,000 से अधिक सैटेलाइट्स कक्षा में तैनात किए जा चुके हैं, और भविष्य में इनकी संख्या 12,000 या उससे भी अधिक हो सकती है. 

सैटेलाइट इंटरनेट के लिए यूजर को क्या करना होगा? 

यूजर को स्टारलिंक से कनेक्ट होने के लिए एक छोटी सैटेलाइट डिश (डिशी) एक वाई-फाई राउटर, और पावर सप्लाई की जरूरत होती है. यह डिश सैटेलाइट से सीधे सिग्नल प्राप्त करती है.

स्टारलिंक इंटरनेट की स्पीड कितनी होगी? 

स्टारलिंक 25 Mbps से लेकर 220 Mbps तक की स्पीड प्रदान कर सकता है, जो क्षेत्र और सैटेलाइट कवरेज पर निर्भर करता है. इसका लक्ष्य पूरी दुनिया को हाई-स्पीड इंटरनेट से जोड़ना है, जिसमें आपदा प्रभावित क्षेत्र भी शामिल हैं. कुछ सैटेलाइट्स को सैन्य, वैज्ञानिक, और अनुसंधान कार्यों के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.

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