Make in India: 1990 में भारत और चीन की जीडीपी लगभग समान थी. दोनों देशों की अर्थव्यवस्था का आकार एक जैसा था लेकिन 35 साल बाद चीन की अर्थव्यवस्था भारत से 6 गुना बड़ी हो गई है. चीन ने खुद को दुनिया का कारखाना बना लिया है, और अब भारत "मेक इन इंडिया" के जरिए यही करने की कोशिश कर रहा है. इस नीति को दस साल हो गए हैं, और अब वक्त है यह देखने का कि ये पहल कितनी सफल रही है.
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मेक इन इंडिया को 10 साल पूरे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 सितंबर को "मेक इन इंडिया" के दस साल पूरे होने पर LinkedIn पर ब्लॉग लिखते हुए इसे सफल बताया. उन्होंने बताया कि भारत ने मोबाइल फोन, डिफेंस, और खिलौने बनाने में काफी आगे बढ़ा है.
- 2014 में जहां सिर्फ़ 2 मोबाइल फ़ोन बनाने के दो कारखाने थे, आज उनकी संख्या बढ़कर 200 हो गई हैं. भारत में इस्तेमाल हो रहे 99% मोबाइल फोन अब यहीं बनाए जा रहे हैं. 2014 में जहां 1500 करोड़ रुपये के मोबाइल फोन एक्सपोर्ट हो रहे थे, अब ये आंकड़ा 1.28 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया है.
- 2014 में भारत से 1000 करोड़ रुपये डिफ़ेंस का सामान निर्यात होता था, और अब 21 हजार करोड़ रुपए हो गए हैं. आज भारत 85 देशों में डिफ़ेंस एक्सपोर्ट कर रहा है.
- 2014 के मुकाबले भारत के खिलौनों का एक्सपोर्ट 239% बढ़ा है. प्रधानमंत्री ने "मन की बात" में लोगों से अपील की थी कि बच्चों के खिलौने भारत में ही बनाए जा सकते हैं, और इस दिशा में भी प्रगति हुई है.
चुनौतियां और दूसरी तस्वीर
सरकार ने जो आंकड़े दिए हैं वो सारे सही है लेकिन इसका दूसरा पहलू भी देखिए. मैन्युफ़ैक्चरिंग का जीडीपी में हिस्सा 2013-14 में 17.3% था , दस साल भी उतना ही है मतलब अर्थव्यवस्था में मैन्यूफ़ैक्चरिंग की हिस्सेदारी मेक इन इंडिया के बाद भी बढ़ी नहीं है. सरकार का लक्ष्य 2030 तक इसे 25% तक ले जाने का है . यह इतना आसान नहीं है.
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोज़गार की हिस्सेदारी भी थोड़ी कम हुई है. पहले हर 100 में से 12 लोग कारख़ानों में काम करते थे, जो अब घटकर 11 हो गए हैं. दुनिया के एक्सपोर्ट में भारत की हिस्सेदारी पिछले 18 साल में दो गुना नहीं हो पाई है. 2006 में यह 1% थी, और अब 1.8% हो गई है, जबकि दस साल पहले यह 1.6% थी.
भारत में मैन्यूफ़ैक्चरिंग सेक्टर क्यों बढ़ नहीं पा रहा है?
चीन ने भारत से पहले मैन्युफ़ैक्चरिंग पर ध्यान दिया, चीन में 1978 में आर्थिक सुधार शुरू हुए जबकि भारत में 1991 में. चीन का फोकस मैन्युफ़ैक्चरिंग पर था, जिससे वहां अधिक नौकरियां पैदा हुईं. जबकि भारत की अर्थव्यवस्था सर्विस सेक्टर की ओर झुक गई.
चीन में सस्ते मजदूर, बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर और कारखाने स्थापित करना आसान था, इसलिए बड़ी कंपनियां चीन को प्राथमिकता देती रहीं. भारत में सस्ते मजदूर तो हैं, लेकिन कारखाना लगाना और सामाव को पोर्ट तक पहुंचाना महंगा और मुश्किल है. हालांकि, पिछले दस सालों में भारत ने इस दिशा में काम किया है.
हिसाब किताब- मिलिंद खांडेकर
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