TDS Rules: महिलाएं, बुजुर्ग अक्सर बड़ी रकम बैंक में FD या दूसरे स्कीम में निवेश कर उसपर मिलने वाले ब्याज से अपना खर्च चालाते हैं. कई बार तो उन्हें पता ही नहीं होता है कि उनको मिलने वाले ब्याज पर सरकार टीडीएस ले रही है. कई बार पता होने के बावजूद भी वे इसे बचा नहीं पाते हैं. 1 फरवरी को पेश हुए बजट में TDS से बुजुर्गों समेत सभी को सरकार ने राहत दी है. ये फैसला मध्य वर्ग को ध्यान में रखते हुए लिया गया है जिसमें करदाताओं को 12 लाख 75 हजार रुपए तक की आय पर कर में छूट के साथ टीडीएस में भी छूट दी गई है.
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Personal Finance की इस सीरीज में हम आपको 1 अप्रैल से लागू होने वाले TDS (Tax Deducted at Source) के नए नियम और उससे होने वाले फायदे की पूरी डिटेल दे रहे हैं. साथ ही टीडीएस से बचने के उपाय भी बता रहे हैं जिसे बैंक अक्सर निवेशक को नहीं बताते हैं और टीडीएस काटकर सरकार को दे देते हैं. इसमें उन लोगों के भी टीडीएस कट जाते हैं जिनकी आय इनकम टैक्स के दायरे में नहीं होती है. अनजाने में उन्हें अपनी छोटी सी आय पर कर देना पड़ जाता है.
टीडीएस क्या है?
TDS (Tax Deducted at Source) एक टैक्स कलेक्शन करने का सिस्टम है. इसमें भुगतानकर्ता किसी भी भुगतान से पहले ही निर्धारित दर पर टैक्स काटकर सरकार को जमा कर देता है. यह कर आमतौर पर वेतन, किराया, कमीशन, प्रोफेशनल फीस, ब्याज आदि पर लागू होता है. मान लीजिए कि कोई किराएदार आपको किराया दे रहा है. यदि किराए की रकम पर टीडीएस बनता है तो किराएदार इसे पहले ही काट लेगा फिर भुगतान करेगा. काटी हुई रकम वो सरकार को देगा. 1 फरवरी 2025 को पेश हुए केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बार मध्य वर्ग का ख्याल करते हुए TDS में राहत दी है.
1 अप्रैल से बदलने वाले TDS के नियम
बुजुर्गों के लिए ये नियम
बजट के प्रावधान 1 अप्रैल से लागू हो जाएंगे. इसमें बुजुर्गों (60 वर्ष या इससे ऊपर की उम्र) की ब्याज से होने वाली आय पर 10 फीसदी TDS का प्रावधान है. इसमें आय की सीमा पहले 50000 रुपए सालाना थी जो अब 1 लाख रुपए कर दी गई है. यानी सालाना 1 लाख की आय पर कोई TDS नहीं लगेगा. 1 लाख 1 रुपए या इससे ज्यादा होते ही 10 फीसदी टीडीएस सरकार को देना पड़ेगा.
सामान्य नागरिकों को भी TDS में मिली राहत
सामान्य नागरिक यदि किसी भी स्कीम में पैसे लगाकर ब्याज से आय करते हैं तो उन्हें पहले 40000 रुपए से ज्यादा की आय पर 10 फीसदी TDS देना होता था. ये टीडीएस बैंक पहले ही काटकर सरकार के खाते में डाल देता था. वहीं अब 1 अप्रैल से इसकी सीमा बढ़ाकर 50,000 रुपए कर दिया गया है. यानी अब 50 हजार रुपए से ज्यादा के मासिक आय पर ही TDS देना होगा.
लॉटरी क्रॉसवर्ड, पजल, हॉर्स रेसिंग से कमाई पर ये नियम
लॉटरी और हॉर्स रेसिंग से कमाई पर पहले पूरे वर्ष में 10,000 रुपए से ज्यादा पर टीडीएस देना होता था. अब पूरे साल में कोई एक जीत की रकम यदि 10,000 रुपए से ज्यादा होती है तो टीडीएस लगेगा.
बीमा एजेंट को भी राहत
पहले इंश्योरेंस का कमीशन 15000 रुपए से अधिक होने पर TDS कटता था. अब इस सीमा को बढ़ाकर 20,000 रुपए कर दिया गया है. लॉटरी, टिकट पर कमीशन या ब्रोकरेज में भी TDS का यही नियम लागू होगा.
किराया उकी आमदनी पर अब इतना देना होगा TDS
किराए पर टीडीएस की सीमा बढ़ाकर 6 लाख रुपए किया गया है. पहले ये सीमा 2.4 लाख रुपए सालाना थी. अब 6 लाख रुपए से ऊपर के किराए पर किराया देने वाला 10 फीसदी काटकर केंद्र सरकार के खाते में जमा करेगा.
डिविडेंड इनकम पर TDS कटौती में मिलेगी राहत
म्यूचुअल फंड्स और शेयर बाजार में निवेश करने वालों के लिए भी 1 अप्रैल से राहत मिलने वाली है. अभी तक शेयर और म्यूचुअल फंड यूनिट्स के जरिये होने वाली 5,000 रुपए से अधिक की डिविडेंड इनकम पर TDS कटता था. अब इस लिमिट को बढ़ाकर 10,000 रुपए कर दिया गया है. यानी 10 हजार तक मिलने डिविडेंड पर कोई TDS नहीं देना होगा.
TDS बचाना हो तो ये करें
ऐसा देखा जाता है कि किसी स्कीम में एकमुश्त राशि लगाकर ब्याज से आय करने वाले की सालाना आय इनकम टैक्स के दायरे में नहीं है. फिर भी उन्हें TDS का भुगतान करना पड़ता है. यूं कहें तो बैंक उन्हें बिना बताए टीडीएस काटकर सरकार के खाते में जमा कर देता है. कई बार बैंक में पैन अपडेट नहीं हो तो ये राशि 20 फीसदी तक काट ली जाती है. ऐसे में सवाल ये है कि इनकम टैक्स के दायरे में नहीं आने के बावजूद क्या टीडीएस का भुगतान करना होगा. जवाब है- नहीं. इसके लिए बैंक को कुछ खास फॉर्म भरकर देना होगा.
- यदि आपकी पूरी आय टैक्सेबल नहीं है तो बैंक को फॉर्म 15G (60 वर्ष से कम उम्र के लिए) और फॉर्म 15H (वरिष्ठ नागरिकों के लिए) भरकर जमा करना होगा.
- यदि टैक्स कट भी गया है तो ITR भरकर टैक्स रिफंड लिया जा सकता है.
- निवेशक को कोशिश करना चाहिए कि ऐसी योजनाओं में निवेश करिए जिसमें TDS नहीं कटता हो जैसे किसान विकास पत्र.
- बेहतर होता है कि एक ही बैंक में एक ही स्कीम में सारे पैसे लगाने की बजाय अलग-अलग बैंक और अलग-अलग स्कीम में लगाएं.
- इससे किसी एक स्कीम के पैसे को तोड़कर लेना भी पड़े तो फाइन और नुकसान ज्यादा न हो.
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