Maestro Zakir Hussain: मशहूर तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन का 73 साल की उम्र में निधन हो गया है. वह पिछले कुछ समय से अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में भर्ती थे, जहां 16 दिसंबर को उन्होंने अंतिम सांस ली. संगीत के इस महान कलाकार के निधन से कला और संगीत जगत में गहरी शोक की लहर दौड़ गई है.
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बचपन से संगीत में थी रुचि
उस्ताद जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था. उनके पिता उस्ताद अल्लाह रक्खा भी एक फेमस तबला वादक थे, जिनसे उन्हें विरासत में संगीत के संस्कार मिले.
आठ साल पहले एक इंटरव्यू में जाकिर हुसैन ने बताया था जब उनके जन्म के बाद उन्हें पहली बार घर लाया गया था तो उनके पिता ने जाकिर हुसैन के कानों में तबले की सुर और ताल का जादू बसा दिया था. उनके पिता ने प्रार्थना के बजाय तबले की लय फूंककर उनका स्वागत किया था.
उन्होंने मात्र 3 साल की उम्र में तबला बजाना शुरू किया. जाकिर ने अपने पिता के साथ 12 साल की उम्र में पहली बार अमेरिका में परफॉर्मेंस दी, जिसने उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाई.
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पढ़ाई और शुरुआती उपलब्धियां
जाकिर हुसैन ने मुंबई के सेंट माइकल हाई स्कूल और सेंट जेवियर्स कॉलेज में पढ़ाई की. हालांकि, पढ़ाई पूरी करने से पहले ही उन्होंने संगीत को अपना करियर बना लिया. 12 साल की उम्र में अपनी पहली परफॉर्मेंस के लिए उन्हें 5 रुपये की कमाई हुई थी.
म्यूजिक इंडस्ट्री में अलग पहचान
जाकिर हुसैन का करियर उपलब्धियों से भरा हुआ था. उन्हें वाशिंगटन यूनिवर्सिटी से संगीत में डॉक्टरेट की उपाधि मिली. उनके शानदार टैलेंट से प्रभावित होकर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने उन्हें व्हाइट हाउस में ऑल-स्टार ग्लोबल कॉन्सर्ट में भाग लेने के लिए इन्वाइट भी किया था. जाकिर हुसैन को पद्म श्री (1988), पद्म भूषण (2002), और पद्म विभूषण (2023) जैसे भारत के सर्वोच्च अवॉर्ड मिले.
संगीत के साथ एक्टिंग में भी छोड़ी छाप
तबला वादन के अलावा जाकिर हुसैन ने एक्टिंग की दुनिया में भी अपनी स्किल्स दिखाईं. उन्होंने 12 फिल्मों में काम किया और कई अवॉर्ड्स, जैसे 4 ग्रैमी अवॉर्ड, अपने नाम किए. उनका योगदान कला और संगीत जगत में अमूल्य है.
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