ड्राइवर ने राजकुमारी से रचाई शादी और कर दिया खुद को 'महाराजा' घोषित? राहुल देव सिंह की कहानी है रोचक!

Rahul Dev Singh Datia: दतिया में राहुल देव सिंह द्वारा खुद को 14वां महाराज घोषित करने पर विवाद छिड़ गया है. समाज ने उन्हें क्षत्रिय समाज से बेदखल कर दिया है. ड्राइवर से 'राजा' बने राहुल की कहानी में प्रेम, राजनीति और विवाद शामिल हैं. जानिए कैसे शुरू हुआ ये रॉयल ड्रामा!

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आकांक्षा ठाकुर

10 Apr 2025 (अपडेटेड: 10 Apr 2025, 04:19 PM)

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मध्य प्रदेश के दतिया में इन दिनों एक नया विवाद चाचाओं में है. दरअसल, राहुल देव सिंह ने खुद को दतिया रियासत का 14वां महाराज घोषित कर दिया है, जिसके बाद क्षत्रिय समाज ने कड़ी आपत्ति जताते हुए उन्हें और उनकी पत्नी परिणीता राजे को समाज से बेदखल कर दिया है. इस घटना ने दतिया रियासत से जुड़े लोगों के बीच घमासान मचा दिया है. आखिर कौन हैं राहुल देव सिंह और कैसे शुरू हुआ यह विवाद? चलिए जानते हैं.

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फिल्मी स्क्रिप्ट की तरह है कहानी

56 साल के राहुल देव सिंह की कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं है. उनके दादा पूरन सिंह जूदेव को महाराजा गोविंद सिंह ने दिसावर मलखानपुर गांव सौंपा था और उन्हें ‘छोटे बहादुर जू’ की उपाधि दी थी. द्वितीय विश्व युद्ध में दतिया रियासत की फौज के साथ ब्रिटिश पक्ष में लड़ाई के बाद पूरन सिंह को मानद मेजर की उपाधि मिली. उनके निधन के बाद यह उपाधि उनके बेटे किशन पाल सिंह को मिली, जिनके तीन बेटों में से मझले बेटे राहुल देव इस विवाद के केंद्र में हैं.

ड्राइवर बन महल में पहुंचे

राहुल देव सिंह को उनके पिता ने बतौर ड्राइवर राव राजा की कोठी पर नियुक्त करा दिया था. राहुल देव की सेवा से राव राजा प्रसन्न थे. उन्हें पता चला कि राहुल देव गीत-संगीत के भी जानकार हैं, तो ऐसे में उन्हें राव राजा की बेटी परिणीता को संगीत सिखाने की जिम्मेदारी दी गई. इसी दौरान राहुल और परिणीता के बीच नजदीकियां बढ़ीं और दोनों को एक दूसरे से प्रेम हो गया.  इसके बाद दोनों ने शादी कर ली.  हालांकि, परिणीता के पिता राव राजा महेंद्र सिंह इस शादी के खिलाफ थे.  उनके निधन के बाद परिणीता की मां भावना राजे ने परिणीता के दबाव में विवाह संपन्न कराया. शादी के बाद राहुल घर जमाई बनकर हेरिटेज कोठी में रहने लगे.

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राजनीति में भी आजमाया हाथ 

राहुल देव ने विवाह के बाद कई क्षेत्रों में हाथ आजमाया.. उन्होंने कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (AAP) और भाजपा में बारी-बारी से अपनी सियासी पारी खेली, लेकिन कहीं टिक नहीं सके. फिर साल 2018 में उन्होंने अपनी पत्नी परिणीता राजे को AAP से सेवढ़ा विधानसभा सीट से चुनाव लड़वाया, जहां उन्हें मात्र 1800 वोट मिले और जमानत जब्त हो गई. दूसरी ओर, उनके प्रतिद्वंद्वी कुंवर घनश्याम सिंह जूदेव 36 हजार वोटों से जीते. इसके बाद राहुल ने भाजपा जॉइन कर ली. इसके अलावा, उन्होंने महामंडलेश्वर की उपाधि भी धारण की और म्यूजिक, डांस, एक्टिंग व अध्यात्म में भी अपनी पहचान बनाई.

राजगद्दी पर क्यों है विवाद ?

आपको बता दें कि दतिया रियासत के 13वें महाराज राजेंद्र सिंह जूदेव के बेटे अरुणादित्य का राजतिलक 2020 में हुआ था. इतिहासकार रवि ठाकुर कहते हैं.  'परंपरा के अनुसार, राजा का बड़ा बेटा ही उत्तराधिकारी होता है. यदि बेटा न हो तो बेटी के बेटे को गोद लेकर राजा बनाया जा सकता है. ' ऐसे में राहुल देव का खुद को 14वां महाराज घोषित करना विवाद का कारण बन गया. राहुल का दावा है कि उनके पास 1920 का एक महत्वपूर्ण  दस्तावेज और पद्माकुमारी की वसीयत है. बता दें कि पद्माकुमारी जसवंत सिंह की पत्नी थीं. हालांकि, ये दस्तावेज अभी तक सार्वजनिक नहीं किए गए हैं.

क्षत्रिय समाज का गुस्सा

क्षत्रिय समाज ने राहुल देव के इस कदम को ‘नौटंकी’ करार देते हुए सिरे से खारिज कर दिया है. समाज ने उन्हें  क्षत्रिय समाज से बहिष्कृत कर जाति से बेदखल करने की घोषणा की है.

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