राम मंदिर से मिलेंगे कितने वोट, 2024 के चुनाव में BJP की सबसे बड़ी कमजोरी क्या? PK ने ये बताया

अभिषेक

02 Feb 2024 (अपडेटेड: Feb 2 2024 1:41 PM)

पीके के कहा, बीजेपी अपने हाई टाइम में भी हिन्दू वोटरों के 50 फीसदी से भी कम वोट पाई थी. इससे तो यही समझ आता है कि बीजेपी को सभी हिन्दू वोट नहीं मिल रहे हैं और सभी लोग हिन्दू और मंदिर के नाम पर वोट भी नहीं कर रहे हैं.

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Lok Sabha Election 2024: देश में हो रहे सियासी हलचल के बीच चुनावी रणनीतिकार और जनसुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर भी आजकल बहुत ऐक्टिव नजर या रहे हैं. हाल के दिनों में प्रशांत किशोर ने बिहार में नीतीश कुमार और उनकी सरकार, देश में INDIA अलायंस की ताकत-कमजोरी और इस साल होने वाले लोकसभा चुनाव पर अपना ओपिनियन रखते दिखाई दिए हैं. इसी कड़ी में शुक्रवार को इंडियन एक्स्प्रेस ने उनसे बात-चीत की है. इस बातचीत में प्रशांत किशोर ने 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी की ताकत-कमजोरी, राम मंदिर का चुनावी असर, विकास के मामले में नॉर्थ-साउथ के राज्यों के बीच असमानता और चुनाव में महिलाओं के वोटिंग पैटर्न जैसे कई महत्वपूर्ण विषयों, सवालों पर बात की है. आइए आपको बताते हैं प्रशांत किशोर की बातों के कुछ प्रमुख अंश.

मंदिर बनने के बाद भी मोदी सरकार के लिए आसान नहीं राह

इंडियन एक्सप्रेस के कार्यक्रम में पीके से सवाल पूछा गया कि राम मंदिर बन गया है, तो इसे आगामी लोकसभा चुनाव के संबंध में कैसे समझा जाना चाहिए? क्या बीजेपी क्लीन स्वीप करने वाली है?

प्रशांत किशोर ने कहा, ‘हमें इस चीज को आंकड़ों के आधार पर समझना चाहिए. आपको पता है कि देश में लगभग 80 फीसदी हिन्दू है. 2019 में हुए लोकसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी को केवल 37 फीसदी वोट मिले थे जबकि वह बीजेपी का पीक टाइम था. यानी बीजेपी अपने हाई टाइम में भी हिन्दू वोटरों के 50 फीसदी से भी कम वोट पाई थी. इससे तो यही समझ आता है कि बीजेपी को सभी हिन्दू वोट नहीं मिल रहे हैं और सभी लोग हिन्दू के नाम पर वोट भी नहीं कर रहे हैं. तो इस मंदिर के बन जाने से क्या होगा? हां इससे बीजेपी को फायदा जरूर मिलेगा लेकिन मुझे नहीं लगता कि सभी हिन्दू बीजेपी को वोट करेंगे. देश में 20 फीसदी की आबादी जिसे वोट करेगी वो निर्णायक होगा.’

पीके ने आगे कहा, ‘मैं मानता हूं कि नरेंद्र मोदी वोट खींचने वाले नेता हैं. जनता उनसे प्रभावित होती है. बीजेपी का सारा चुनावी गेम पीएम मोदी के पोजीशन पर ही है.’

हालांकि इस बीच प्रशांत किशोर ने ऐसी बातें कहीं हैं जो बीजेपी की चिंता बढ़ा सकती हैं.

नौजवानों में घट रही पीएम मोदी की पॉप्युलरैटी

बीजेपी और पीएम मोदी अक्सर फर्स्ट टाइम वोटर्स को रीचआउट करते देखे जा सकते हैं. लगातार नए वोटर्स जोड़ने की ताकत ने ही बीजेपी को 2014 और 2019 के चुनाव में बहुमत के पार पहुंचाया. पर प्रशांत किशोर एक अलग बात कह रहे हैं. वह कहते हैं, ‘अगर आप पीएम मोदी के सपोर्ट बेस को देखें, तो पाएंगे कि अब वह रिवर्स ऑर्डर में जा रहे हैं. वह नौजवानों में अपना आधार खो रहे हैं और बुजुर्गों में उनका जनाधार बढ़ रहा है. पिछले 10 सालों में पीएम मोदी का करिश्मा, रेटिंग 18-25 लोगों के बीच में घटा है और 50 की उम्र से ज्यादा लोगों में बढ़ा है.’

बीजेपी की सबसे बड़ी कमजोरी क्या है?

इस सवाल के जवाब में प्रशांत किशोर कहते हैं, ‘पीएम मोदी पर हद से ज्यादा निर्भरता बीजेपी की सबसे बड़ी कमजोरी है. शायद यह आज नहीं है, लेकिन इसका नुकसान होगा. जैसे कांग्रेस को इंदिरा गांधी पर ज्यादा निर्भरता का नुकसान हुआ. जब वह गईं तो कांग्रेस की तमाम कमियां सामने दिखने लगीं कि वहां संगठन नहीं है, विकेंद्रीकरण नहीं है, सेकेंड लाइन लीडरशिप नहीं है. जब तक इंदिरा थीं, चुनाव जीत रही थीं, कोई इनपर बात नहीं कर रहा था. ऐसे में पीएम मोदी के ऊपर ज्यादा निर्भरता बीजेपी के लिए सबसे बड़ा खतरा है.’

भारत में महिला और पुरुष वोटों का क्या गणित है?

प्रशांत किशोर कहते हैं, ‘किसी भी चुनाव में महिलाओं का वोट सबसे ट्रिकी होता है, और मैंने ये अनुभव भी किया है. आप पुरुषों को समझ सकते हैं कि, वो किसे वोट कर सकते हैं लेकिन महिलाओं के मामला में ये बिल्कुल अलग है. उनकी बातें जान पाना बहुत मुश्किल है. सर्वे महिलाओं के मामले में गलत साबित होते हैं. मेरा ये मानना है कि वे बहुत समझदार होती हैं और सबकी बातों को ध्यान से सुनते हुए, वो अपने हिसाब से वोट करती हैं. उनको प्रभावित कर पाना बहुत मुश्किल है. वैसे अगर बिहार की बात करें, तो मैं समझता हूं कि, यहां की महिलायें जाति की अपेक्षा धर्म के नाम पर ज्यादा प्रभावित होती हैं और उसी हिसाब से वोट करती हैं.’

नॉर्थ और साउथ के राज्यों के विकास में बहुत अंतर है, आप इसे कैसे देखते हैं?

प्रशांत किशोर कहते हैं, ‘सबको पता है कि विकास के मामले में साउथ के राज्य नॉर्थ के राज्यों से अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं. मैं तो इसका कारण पूर्ण रूप से राजनैतिक असफलता मानता हूं. इसे हम इस तरह समझ सकते हैं. जैसे दक्षिण के राज्यों में कोई भी मुख्यमंत्री अधिकतम दो बार तक सीएम रहा है. किसी भी राज्य में इससे ज्यादा का कार्यकाल नहीं रहा है. यानी 10 साल में ही सही, लेकिन परिवर्तन होता रहा है जिससे उनकी जवाबदेही तय होती रही है. वहीं अगर आप नॉर्थ के राज्यों को देखें तो यहां कई राज्यों में सालों से एक ही व्यक्ति सर्वे-सर्वा बना हुआ है. उसका कोई आधार हो या न हो, इधर से भी और उधर से भी दोनों तरफ से सांठ-गांठ करके अपने पद पर बना हुआ है. इससे आप समझ सकते है कि, कहा और क्या समस्या आ रही है.’

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