One Nation-One Election: भारत निर्वाचन आयोग के पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने एक इंटरव्यू में कहा है कि मोदी सरकार नेे देश के ऊपर वन नेशन-वन इलेक्शन को थोप दिया है. इस पर राष्ट्रीय स्तर पर डिबेट के बाद आम सहमति लेनी चाहिए थी. लेकिन सिर्फ डिबेट हुई परंतु आम सहमति नहीं बनाई गई. देश में इस समय वन नेशन-वन इलेक्शन के मुद्दे पर अलग ही बहस छिड़ी हुई है.
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केंद्रीय कैबिनेट ने वन नेशन-वन इलेक्शन पर बनाई गइ उच्च स्तरीय कमेटी की सिफारिशों को मंजूर कर लिया है. केंद्र सरकार का दावा है कि इससे देश के चुनाव सिस्टम में सुधार आएगा. चुनाव में होने वाले खर्च कम होंगे और चुनाव अचार संहिता की वजह से रुक जाने वाले विकास कार्यों को नहीं रोकना पड़ेगा. लेकिन विपक्षी पार्टियों ने इसे मोदी सरकार की जिद और सनक बताया है. विपक्षी पार्टियों के अनुसार वन नेशन-वन इलेक्शन प्रेक्टिकल नहीं है.
इस पूरे मसले पर पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में कहा है कि मोदी सरकार ने वन नेशन-वन इलेक्शन को देश की जनता पर थोपने का काम किया है. उनसे केंद्र सरकार ने एक समय इसके बारे में पूछा था तो उन्होंने कहा था कि इस पर नेशनल डिबेट होनी चाहिए और इसके बाद आम सहमति लेकर ही इसे लागू करना चाहिए. लेकिन सरकार ने डिबेट तो करा ली लेकिन जनता की आम सहमति नहीं ली है. एक तरह से इसे देश पर थोपने का काम मोदी सरकार ने किया है.
एसवाई कुरैशी ने खड़े किए इस तरह के सवाल
पूर्व चुनाव आयुक्त कुरैशी बीबीसी को दिए इंटरव्यू में बताते हैं कि पूर्व राष्ट्रपति को किसी राजनीतिक कमेटी का अध्यक्ष नहीं होना चाहिए. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था. कुरैशी बताते हैं कि इस कमेटी ने जो सिफारिशें की हैं, वे हैरान करती हैं.
कुरैशी कहते हैं कि पहली सिफारिश यह है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे लेकिन पंचायत और स्थानीय निकाय के चुनाव इनके 100 दिन बाद होंगे. ऐसे में ये वन नेशन-वन इलेक्शन कैसे हो गया. ये सभी चुनाव एक साथ होते तो ही माना जाता है कि ये वन नेशन-वन इलेक्शन की अवधारणा को लागू कर रहे हैं. एक अन्य सिफारिश यह है कि अगर कोई विधानसभा भंग हो जाती है तो चुनाव होगा. अगर ऐसा होता है तो भी ये वन नेशन-वन इलेक्शन की अवधारणा के विपरीत होगा. जाहिर है कि ये सिफारिशें उलझन से भरी हैं और इनमें तमाम संसोधन की जरूरत पड़ेगी.
जनता की ताकत में आएगी कमी- कुरैशी
पूर्व चुनाव आयुक्त का मानना है कि बार-बार चुनाव होने से जनता के पास वोट देने की ताकत बनी रहती है. एक मात्र यही वो ताकत है, जिसके बल पर जनता देश के नेताओं पर अपना कुछ जोर चला पाती है. वोट की ताक़त होती है, तो उसके बाद नेता बार-बार आता है, हाथ जोड़ता है. वरना कितनी बार आपने देखा है कि पांच साल के लिए सांसद ग़ायब हैं और लोगों को पोस्टर लगाने पड़ते हैं 'गुमशुदा की तलाश है. क़ुरैशी मानते हैं कि बार-बार चुनाव आने से जनता के लिए नेताओं की जवाबदेही बढ़ती है.
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