Sharad Pawar: महाराष्ट्र में चुनाव का एलान नहीं हुआ लेकिन वो चुनाव ही क्या जिसकी चर्चा महीनों पहले शुरू न हो. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस-उद्धव ठाकरे-शरद पवार ने मिलकर ऐसा गदर काटा कि बीजेपी के हाथ से सबसे मजबूत राज्य फिसल गया. बीजेपी-शिंदे-अजित पवार के औंधे मुंह गिरने के बाद तेज अनुमान है कि लोकसभा के पैटर्न पर विधानसभा चुनाव में भी MVA की सरकार बन सकती है.
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हर चुनाव से पहले सीएम कौन वाली चर्चा शुरू होती है. शिवसेना यूबीटी वालों ने उद्धव ठाकरे के लिए बैटिंग शुरू ही की थी कि शरद पवार ने खेल कर दिया. सीएम फेस वाली चर्चा से और कुछ नहीं तो गठबंधन में बेकार का मतभेद, मनभेद पनपता है. MVA के चाणक्य शरद पवार ने इसी चर्चा पर ब्रेक लगा दिया है. शरद पवार ने कहा कि गठबंधन में सीएम को लेकर कोई विवाद नहीं है. चुनाव से पहले सीएम फेस प्रोजेक्ट करना जरूरी भी नहीं है. जैसे जिसके नंबर आएंगे उस हिसाब से सीएम का फैसला किया जाएगा.
2019 के चुनाव के बाद जब पहली बार MVA बना तब उद्धव ठाकरे आम सहमति से सीएम चुने गए थे. आज उद्धव ठाकरे जैसे कद का MVA में कोई और दावेदार है भी नहीं. शरद पवार खुद रेस में हैं नहीं. सुप्रिया सुले कह चुके हैं कि उद्धव ठाकरे या फिर कांग्रेस का कोई नेता सीएम बन सकता है. हमारी पार्टी सीएम की रेस से बाहर है. कांग्रेस ने नाना पटोले को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया हुआ है लेकिन वो पार्टी के फेस होंगे, इसकी गारंटी नहीं. कांग्रेस ने सीएम फेस को लेकर चुप्पी भी साध रखी है.
ऐसे में उद्धव ठाकरे बचते हैं लेकिन पवार ने उनकी संभावना खत्म कर दी है.
सीएम फेस बनने के लिए उद्धव ठाकरे थे बेताब लेकिन..
सीएम फेस बनने के उद्धव ठाकरे थोड़े बेताब हैं. कह नहीं रहे हैं. बस इशारे कर रहे हैं. कांग्रेस हाईकमान से मिलने दिल्ली आए तब कहा था कि ऐसा कोई फॉर्मूला नहीं होना चाहिए कि जिसकी ज्यादा सीटें होगी सीएम उसी का होगा. ये समझाने के लिए उद्धव ने कहा कि ऐसा फॉर्मूला बनाएंगे तो गठबंधन में सीट शेयरिंग में ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल की होड़ शुरू हो जाएगी. शिवसेना के संजय राउत आए दिन सीएम फेस की जरूरत को लेकर बयान देते रहते हैं. उन्होंने यहां तक कहा कि लोकसभा में अगर राहुल गांधी पीएम प्रोजेक्ट होते तो फायदा होता.
हो सकता है कि सीएम प्रोजेक्ट न करने के पवार के वीटो से उद्धव ठाकरे को झटका लगता हो लेकिन इससे कांग्रेस को फायदा हो सकता है. पवार की थ्योरी ये है कि चुनाव बाद जिसकी जैसी सीटें उसकी सीएम पर दावेदारी हो सकती है. ऐसे में सीएम पोस्ट पर कांग्रेस का दावा मजबूत हो सकता है.
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस के हौसले हैं बुलंद
लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा 13 सीटें कांग्रेस ने जीती. इससे अचानक MVA में वजन बढ़ गया. सीट शेयरिंग में कांग्रेस के हिस्से में सबसे ज्यादा सीटें आने का चांस है. अगर सचमुच सरकार बनाने की नौबत आई तो ज्यादा सीटें लड़ने से कांग्रेस फायदे में रह सकती है. ज्यादा सीटें आने से पवार के फॉर्मूले से कांग्रेस के पास सीएम पद जाने का चांस बन सकता है.
चुनाव से पहले कांग्रेस घोषित नहीं करती है सीएम फेस
लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस भी चाह रही है कि MVA में रोल बिग ब्रदर, बिग शेयर वाला हो. अगर सरकार बनने की नौबत आई तो कांग्रेस चाहेगी कि सरकार की ब्रैंडिंग कांग्रेस वाली हो. सीएम फेस पर कांग्रेस की चुप्पी के पीछे लंबे समय से चली आ रही स्ट्रैटजी है. हरियाणा, जम्मू कश्मीर में भी कांग्रेस इस मामले में नहीं पड़ी. रिवाज चला आ रहा है कि कांग्रेस जहां चुनाव लड़ती है किसी को सीएम प्रोजेक्ट घोषित नहीं करती. हिमाचल में सुखविंदर सुक्खू, कर्नाटक में सिद्धारमैया सरप्राइज सीएम बने. तेलंगाना में जरूर रेवंत रेड्डी का माहौल बना था. एमपी में कमलनाथ के लिए ऐसा माहौल बनने से नुकसान हुआ. राजस्थान में गहलोत या पायलट में से किसी को सीएम प्रोजेक्ट नहीं करने से भी नुकसान हुआ.
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