इंडिया टुडे सर्वे: मध्य प्रदेश में भेदभाव ज्यादा, केरल में सबसे कम, जानें किस राज्य में कैसे हालात?

India Today Gross Domestic Behaviour survey: इंडिया टुडे ग्रुप और हाउ इंडिया लिव्ज द्वारा सकल घरेलू व्यवहार (GDB) सर्वेक्षण के अनुसार, पांच प्रमुख पहलुओं के आधार पर सामाजिक समावेश को लेकर लोगों के दृष्टिकोण को मापा गया. 

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तस्वीर: AI

बृजेश उपाध्याय

21 Mar 2025 (अपडेटेड: 21 Mar 2025, 08:07 PM)

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India Today Gross Domestic Behaviour survey : भारत अपनी विविधता पर गर्व करता है, लेकिन स्वीकृति और भेदभाव को लेकर देश के सामाजिक रवैये में गहरी खाई नजर आती है. इंडिया टुडे ग्रुप और हाउ इंडिया लिव्ज द्वारा सकल घरेलू व्यवहार (GDB) सर्वेक्षण के अनुसार, पांच प्रमुख पहलुओं के आधार पर सामाजिक समावेश को लेकर लोगों के दृष्टिकोण को मापा गया. 

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सर्वे के अनुसार, केरल समावेशिता में सबसे आगे रहा, जबकि मध्य प्रदेश इस पैमाने पर सबसे निचले स्थान पर रहा. केरल के लोगों ने खानपान की स्वतंत्रता, रोजगार में निष्पक्षता और अंतरधार्मिक व अंतर-जातीय विवाहों को खुलकर स्वीकार किया. दूसरी ओर, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में अंतरधार्मिक संबंधों और रोजगार में धार्मिक भेदभाव का समर्थन ज्यादा देखने को मिला. 

पड़ोस में विविधता को लेकर क्या सोचते हैं लोग? 

सर्वे के मुताबिक, 70% लोगों ने अलग-अलग धर्मों के लोगों के साथ रहने में कोई परेशानी नहीं जताई. इसमें पश्चिम बंगाल सबसे आगे रहा, जहां 91% लोगों ने अपने पड़ोस में धार्मिक विविधता का स्वागत किया. इसके विपरीत, उत्तराखंड में 72% लोग धार्मिक विविधता को लेकर असहज दिखे.

रैंक 2025 राज्य
1 केरल
2 तमिलनाडु
3 पश्चिम बंगाल
4 महाराष्ट्र
5 चंडीगढ़
6 हरियाणा
7 असम
8 तंलंगाना
9 राजस्थान
10 बिहार
11 आंध्र प्रदेश
12 ओड़िशा
13 झारखंड
14 छत्तीसगढ़
15 हिमाचल प्रदेश
16 गुजरात
17 राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली
18 पंजाब
19 कर्नाटक
20 उत्तराखंड
21 उत्तर प्रदेश
22 मध्य प्रदेश

अंतरधार्मिक और अंतरजातीय विवाहों पर क्या सोचते हैं भारतीय? 

भारत में अब भी शादी को लेकर सामाजिक पूर्वाग्रह मजबूत हैं. सर्वे के अनुसार:

  • 61% लोग अंतरधार्मिक विवाहों के खिलाफ हैं.
  • 56% लोग अंतरजातीय विवाहों को स्वीकार नहीं करते.
  • कर्नाटक में 94% लोग अंतरधार्मिक विवाहों का विरोध करते हैं.
  • उत्तर प्रदेश में 84% लोग अंतरजातीय विवाहों को नकारते हैं.

रोजगार में भेदभाव और धार्मिक आधार पर फैसले 

सर्वे के मुताबिक, 60% भारतीयों ने कार्यस्थल पर धार्मिक भेदभाव का विरोध किया. इसमें केरल सबसे आगे रहा, जहां 88% लोगों ने भर्तियों में धर्म के आधार पर पक्षपात को गलत बताया. 

सर्वे में पूछे गए सवालों के जवाब

सवाल: निवासियों के संगठनों या हाउसिंग सोसाइटियों को व्यक्तिगत अपार्टमेंट या सार्वजनिक जगहों पर कुछ प्रकार के भोजन (जैसे मांस या बीफ) पर पाबंदी लगाने का अधिकार है?

जवाब: 41 % हां, 54% नहीं. (88% केरल के उत्तरदाताओं ने अपने आसपास के क्षेत्रों में ऐसी पाबंदी का विरोध किया. 75% उत्तराखंड के उत्तरदाता ऐसी पाबंदियों के समर्थन में दिखे.)

सवाल: पुरुष और महिला अगर अलग-अलग धर्म के हैं और शादी करना चाहते हैं तो क्या उन्हें इसकी आजादी होनी चाहिए? 

उत्तर: 37% हां, 61% नहीं. (90% चंडीगढ़ के उत्तरदाता अंतरधार्मिक शादियों के विरोध में हैं. 94% केरल के उत्तरदाता इसका समर्थन करते हैं.)

सवाल: पुरुष और महिला अगर अलग-अलग जाति के हैं और शादी करना चाहते हैं तो क्या उन्हें इसकी आजादी होनी चाहिए?

उत्तर: 43% हां, 56% नहीं. (91% चंडीगढ़ के उत्तरदाता इसका समर्थन करते हैं. 84% उत्तर प्रदेश के उत्तरदाता इसके विरोध में दिखे)

सवाल: क्या आप इस बात को लेकर सहज हैं कि आपके गांव या इलाके में दूसरे धर्म के लोग या परिवार आकर रहने लगें?  

उत्तर: 70% हां, 28% नहीं. (91% पश्चिम बंगाल के उत्तरदाताओं को अपने पड़ोस में दूसरे धर्म के लोगों के रहने से कोई दिक्कत नहीं है. 72% उत्तराखंड के उत्तरदाता इसका विरोध करते दिखे. )

सवाल: क्या किसी नियोक्ता को धर्म के आधार पर किसी को नौकरी पर न रखने का अधिकार होना चाहिए?

उत्तर: 39% हां, 60% नहीं.  (88% केरल के उत्तरदाता नौकरी के अवसरों में धर्म के आधार पर भेदभाव के खिलाफ हैं.  51% उत्तर प्रदेश के उत्तररदाता इस बात का समर्थन करते हैं.)  

निष्कर्ष

सर्वे के नतीजे भारत में सामाजिक समावेशिता की जटिल तस्वीर पेश करते हैं. यह साफ है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में भेदभाव और स्वीकृति का स्तर अलग-अलग है. क्षेत्रीय असमानताओं के बावजूद, एक सकारात्मक संकेत यह है कि लोगों में पड़ोस की विविधता को स्वीकारने का नजरिया बेहतर हो रहा है. हालांकि, शादी और रोजगार जैसे मुद्दों पर अब भी गहरी सामाजिक बाधाएं मौजूद हैं, जो देश के समावेशी विकास में बड़ी चुनौती पेश करती हैं. 

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