फेमस स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा एक बार फिर विवादों में घिर गए हैं. हाल ही में उनके एक कॉमेडी वीडियो को लेकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के समर्थकों ने कथित तौर पर नाराजगी जताई, जिसके बाद उन्हें धमकियां मिलने लगीं और उनके स्टूडियो में तोड़फोड़ की घटना सामने आई है. कुणाल को दो दिनों में माफी मांगने के लिए कहा गया, अन्यथा शिवसेना स्टाइल में निपटने की चेतावनी दी गई. पुलिस इस मामले में अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर रही है, जिससे सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है. वहीं, इस घटनाक्रम ने अभिव्यक्ति की आजादी और राजनीतिक हास्य पर एक नई बहस छेड़ दी है.
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कॉमेडियन की गिरफ्तारी की आशंका
कामरा की ओर से यह आशंका जताई जा रही है कि उनकी गिरफ्तारी हो सकती है. इससे पहले मध्य प्रदेश में एक कॉमेडियन को सिर्फ इस आधार पर गिरफ्तार कर लिया गया था कि सरकार को लगा कि वे अपने शो में सरकार का मज़ाक उड़ा सकते हैं.
क्या था कुणाल कामरा का विवादित बयान?
कुणाल कामरा ने अपने शो में एक गाने के ज़रिए ठाणे, ऑटो, और चश्मे का ज़िक्र किया, लेकिन उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का नाम नहीं लिया. लेकिन शिंदे के समर्थकों ने इसे अपने नेता पर तंज के तौर पर लिया. वीडियो में कामरा ने यह भी संकेत दिया कि शिंदे, उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की "गोद में बैठे हैं," जिसे शिंदे समर्थकों ने अपमानजनक माना. इसके बाद उन्हें दो दिनों के भीतर माफी मांगने की धमकी दी गई, साथ ही "शिवसेना स्टाइल" में निपटने और "मुंह पर कालिख पोतने" की चेतावनी भी दी गई.
इस दौरान कुणाल ने "गद्दार" शब्द का इस्तेमाल भी किया. ये भी विवाद का केंद्र बना. यह शब्द शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और एनसीपी नेता शरद पवार भी एकनाथ शिंदे और अजित पवार के लिए इस्तेमाल करते रहे हैं. सवाल उठता है कि जब यह बात सदन के अंदर और बाहर बार-बार कही जाती रही है, तो कामरा के हास्य में इसे लेकर इतना बवाल क्यों?
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और दोहरा मापदंड
हाल ही में एकनाथ शिंदे की शिवसेना में शामिल हुए सांसद मिलिंद देवड़ा ने बिना नाम लिए कामरा पर निशाना साधते हुए कहा कि कुछ लोग "पेड " हैं और विपक्ष के साथ मिलकर नेताओं का मजाक उड़ाते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि एक ऑटो वाला मुख्यमंत्री और चाय वाला प्रधानमंत्री बनना "फर्श से अर्श" की कहानी है, जिसे मजाक का विषय नहीं बनाना चाहिए.
हालांकि, देवड़ा ने यह भी जोड़ा कि कानून को अपना काम करना चाहिए, लेकिन भारत में कानून का रवैया "आदमी की औकात" के हिसाब से तय होता है. दूसरी ओर, देवेंद्र फडणवीस ने नागपुर के दंगे में जब कथित तौर पर एक नेता की भूमिका सामने आई तो उनका घर गिरवा दिया, लेकिन कामरा के स्टूडियो में तोड़फोड़ करने वालों पर कोई कार्रवाई हुई?
अभिव्यक्ति की आज़ादी पर उठते सवाल
यह मामला एक बार फिर अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर बहस छेड़ चुका है. जब किसी पार्टी के हित में होता है, तो वे फ्रीडम ऑफ स्पीच का समर्थन करते हैं, लेकिन जब आलोचना उन पर होती है, तो यह आज़ादी खतरे में पड़ जाती है.
यहां देखें वीडियो:
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