मुंबई के एक होटल में निजी कंपनी में काम करने वाले 41 वर्षीय मैनेजर की लाश मिलने के मामले में चौंकाने वाला अपडेट सामने आया है. मैनेजर की मौत के बाद कमरे में उसके साथ चेक-इन करने वाली लड़की ने होटलकर्मियों को फोन किया. इसके बाद पुलिस को सूचना दी गई.
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मौके पर पहुंची पुलिस ने कुछ साक्ष्य इकट्ठा किए और मौत की वजह हार्ट अटैक से दवा केओवर डोज की तरफ शिफ्ट होती दिखने लगी. पुलिस को होटल के कमरे से सेक्सवर्धक दवा के साक्ष्य मिले हैं. माना जा रहा है कि मैनेजर की मौत उसी के ओवरडोज से हुई है. हालांकि मैनेजर के शव का पोस्टमार्टम कराया गया है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत के कारण की सही जानकारी नहीं मिल पाने के कारण उसके विसरा को सुरक्षित रख लिया गया है. अब आगे की जांच में पता चल पाएगा कि मौत कैसे हुई थी.
बताया जा रहा है कि मृतक नाबालिग लड़की के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए जबरदस्ती कर रहा था. इसी दौरान उसकी मौत हो गई. इधर नाबालिग की मां ने मृतक के खिलाफ पोक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज करा दिया है.
फेक आईकार्ड से किया चेक-इन
41 वर्षीय मृतक हीरा पॉलिशिंग कंपनी में मैनेजर था. वो गुजरात के सूरत जिले का रहने वाला है. उसके साथ आई लड़की उसके ही इलाके की रहने वाली है. उसने लड़की को मुंबई घुमाने का कहकर ले आया. यहां होटल में अपनी बेटी बताकर चेक-इन किया.
ओवरडोज का ये कोई पहला मामला नहीं
यदि इस मौत का कारण सेक्स वर्धक टेबलेट का आवेरडोज है तो तो ये कोई पहला मामला नहीं है. कुछ साल पहले नागपुर के एक होटल में 25 साल के युवक की हार्ट अटैक से मौत हो गई. वो उस वक्त अपनी गर्लफ्रेंड के साथ होटल के रुम में था और उससे फिजिकल रिलेशन बना रहा था. उस युवक की जेब से भी वियाग्रा का रैपर मिला था. माना गया कि वियाग्रा के ओवरडोज से युवक की मौत हो गई. प्रयागराज में एक युवक को तो ओवरडोज के चलते अपने प्राइवेट पार्ट की दो बार सर्जरी करानी पड़ी.
बन रही थी हार्ट प्रॉब्लम की दवा, बन गई सेक्सवर्धक टेबलेट
अमेरिकी कंपनी फाइजर हार्ट की एक समस्या एंजाइना पर काम कर रही थी. एंजाइना में हार्ट तक खून पहुंचाने वाली नसें सिकुड़ जाती हैं. फाइजर की टीम ने एक नया कंपाउंड सिल्डेनाफिल बनाया. इसका प्रयोग पहले जानवरों पर किया गया. वहां कोई साइड इफेक्ट नहीं होने पर कुछ पुरूषों पर इसका प्रयोग किया. प्रयोग के दौरान देखा गया कि रक्त वाहिकाओं का फैलाव हृदय में नहीं बल्कि लिंग में था. दवा काम तो कर गई पर निजी अंग पर. ये दवा कहीं न कहीं इरेक्टाइल डिस्फंक्शन यानी पुरुष नपुंसकता की समस्या को दूर करती दिख रही थी. ऐसे में इसपर एक्सपेरिमेंट शुरू हुआ और 1996 में कंपनी को इस दवा के लिए पेटेंट मिला.
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