अनंतनाग जिले के रिसॉर्ट शहर पहलगाम में आतंकियों के कायराना हमले में 28 पर्यटक मारे गए हैं. इसमें एक नेवी, एक एयरफोर्स और एक आईबी के अधिकारी की भी जान गई है. ये लोग भी फैमिली के साथ “मिनी स्विट्जरलैंड” के रूप में मशहूर पहलगाम के बैसरन घाटी में परिवार के साथ घूमने गए थे. यहां पेड़ों और झाड़ियों की ओट में छुपे आतंकियों ने इन्हें निशाना बना दिया.
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अब सवाल ये है कि आतंकियों ने बैरसन घाटी को ही इस हमले के लिए क्यों चुना. बताया जा रहा है कि आतंकियों ने हमले से पहले रेकी भी की थी. यदि मानचित्र पर नजर डाले तो ये इलाका काफी उबड़-खाबड़ और दुर्गम रास्तों वाला है. यहां पहुंचने में कम से कम 1 घंटे लगते हैं. साथ इस दुर्गम इलाके में सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं है. पर्यटकों की भारी भीड़ के बावजूद, पहलगाम-बैसरन मार्ग पर कोई सुरक्षा तैनाती नहीं थी. मंगलवार को हमले के बाद घटनास्थल का दौरा करने वाले इंडिया टुडे के एक संवाददाता ने कहा कि 5.5 किलोमीटर के मार्ग पर एक भी पुलिस पिकेट मौजूद नहीं थी.
अटैक कर भागने के लिए आतंकियों को पर्याप्त मौके
मैप के जरिए बैरसन घाटी पर नजर डाले तो बैसरन घास का मैदान पहलगाम शहर के दक्षिण-पूर्व में स्थित है. नदियों, घने जंगलों और कीचड़ भरे इलाकों से गुजरने वाले सर्पीले ट्रेक मार्ग से पहुंचा जा सकता है. ट्रेक के बड़े हिस्से पर मोटर वाहन नहीं जा सकते हैं. मार्ग के कुछ हिस्से बेहद फिसलन भरे हैं और एक छोटी सी गलती पर्यटकों को भारी पड़ सकती है. वे कई सौ फीट खाई में गिर सकते हैं. पहलगाम से पर्यटक पैदल और घोड़े पर सवार होकर घास के मैदानों तक पहुंचते हैं. इसके अलावा एटीवी (ऑल टेरेन व्हीकल) का भी इस्तेमाल किया जाता है.
पहलगाम से बैरसन पहुंचने में लगते हैं 1 घंटे
एक स्वस्थ युवा को पहलगाम से बैसरन तक पैदल पहुंचने में लगभग एक घंटा लगेगा. रास्ते में कोई या छोटा ब्रेक नहीं है. घास का मैदान चारों तरफ से गहरी घाटियों से घिरा हुआ है, जिससे निर्दिष्ट ट्रेक मार्ग के अलावा वहां पहुंचना मुश्किल हो जाता है. हालांकि, बैसरन में स्टॉल चलाने वाले स्थानीय लोग अक्सर रास्ते के कुछ शुरूआती हिस्सों को कवर करने के लिए बाइक का इस्तेमाल करते हैं.
ऐसे कठिन इलाके का मतलब है कि आपातकालीन बैकअप या सुरक्षा बलों को बैरसन तक पहुंचने में कम से कम 30-40 मिनट लगेंगे. कठिनाइयों के बावजूद, सैकड़ों पर्यटक हर दिन बैसरन आते हैं, जो 30 एकड़ में फैला हुआ है.
ये सारी बातें कहीं न कहीं आतंकियों के फेवर में थीं. सूत्रों ने इंडिया टुडे को बताया कि हमलावर, पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा के सहयोगी संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) से जुड़े थे, जिन्होंने अपने ओवरग्राउंड वर्करों की मदद से इलाके की रेकी की थी. सूत्रों ने कहा कि आतंकवादियों ने घने जंगलों वाले इलाकों में ठिकाने बनाए थे.
हमले के वक्त कंधे पर कैमरा भी लगाए थे. वो इस पूरे हमले का वीडियो शूट भी कर रहे थे. 90 के दशक की शुरूआत में कश्मीर में आतंकवादियों के आने के बाद से, पर्यटकों को शायद ही कभी निशाना बनाया गया हो.
इनपुट: शुभम तिवारी
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