बुलडोजर एक्शन पर आज सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है. बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह कानून का उल्लंघन है. किसी मामले पर आरोपी होने या दोषी ठहराए जाने पर भी घर तोड़ना सही नहीं है. जस्टिस BR गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ बुलडोजर जस्टिस पर निर्णय सुनाते हुए कहा कि हमने सभी वकीलों और विशेषज्ञों के सुझाव देखे और उन पर विचार किया है. हमें लोकतांत्रिक सरकारों के दायित्व को भी ध्यान में रखा है. अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी का घर उसकी अंतिम सुरक्षा और उम्मीदें है.
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कोर्ट ने कहा कि हर किसी का सपना होता है कि उसका आश्रय कभी न छिने और हर घर का सपना होता है कि उसके पास आश्रय हो. कोर्ट ने कहा हमारे सामने सवाल यह है कि क्या कार्यपालिका किसी ऐसे व्यक्ति का आश्रय छीन सकती है जिस पर अपराध का आरोप है. हर किसी का सपना होता है कि उसका आशियाना कभी न छिना जाए. हमारे सामने सवाल यह है कि क्या कार्यपालिका किसी ऐसे व्यक्ति का आशियाना छीन सकती है जिस पर अपराध का आरोप है.
राज्य सरकार की जिम्मेदारी - कानून व्यस्था बनाए रखे
कोर्ट ने कहा कि सभी पक्षों सुनने के बाद हम आदेश जारी कर रहे है. फैसले को जारी करते समय सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले पर भी विचार किया है. कोर्ट ने कहा कि ये राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वो राज्य में कानून व्यस्था बनाए रखे. राज्य में कानून का राज होना चाहिए.
कोर्ट ने कहा हमने संविधान के तहत गारंटीकृत अधिकारों पर विचार किया है जो व्यक्तियों को राज्य की मनमानी कार्रवाई से सुरक्षा प्रदान करते हैं.कोर्ट ने कहा कानून का नियम यह सुनिश्चित करने के लिए ढांचा प्रदान करता है कि व्यक्तियों को पता हो कि उनकी संपत्ति मनमाने ढंग से नहीं छीनी जाएगी.
कोर्ट ने दिखाई सख्ती
कोर्ट ने कहा यदि राज्य कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना ऐसी संपत्तियों को ध्वस्त करता है तो यह सही नहीं होगा, जो सरकारी अधिकारी कानून को अपने हाथ में लेते हैं और इस तरह से काम करते हैं, उन्हें जवाबदेह बनाया जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा यदि राज्य का कोई अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग करता है, या पूरी तरह से मनमाने या दुर्भावनापूर्ण तरीके से काम करता है, तो उसे बख्शा नहीं जा सकता.
राइट टू शेल्टर मौलिक अधिकार
कोर्ट ने कहा यदि कार्यपालिका किसी व्यक्ति का मकान केवल इस आधार पर गिरा देती है कि वह अभियुक्त है, तो यह कानून के शासन का उल्लंघन है. कोर्ट ने कहा कि अभियुक्तों और दोषियों के पास भी कुछ अधिकार और सुरक्षा उपाय हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राइट टू शेल्टर मौलिक अधिकार है. कोर्ट ने कहा कि घर केवल एक संपति नहीं है, वो लोगों की उम्मीदें है. अगर कोई व्यक्ति जघन्य अपराध का दोषी पाया भी जाता है, तो भी राज्य कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना उसके घर को ध्वस्त नहीं कर सकता. कोर्ट ने कहा कि अगर ध्वस्तीकरण का आदेश दिया भी जाता है तो संबंधित पक्ष को समय दिया जाना चाहिए को वो फैसले को चुनौती दे सके.
कोर्ट ने दिए ये निर्देश:
1. आदेश पारित होने के बाद भी, पीड़ित पक्ष को उस आदेश को चुनौती देने के लिए समय दिया जाना चाहिए.
2. घर खाली करने के लिए पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए.
3. बिना कारण बताओ नोटिस के कोई भी तोड़फोड़ नहीं की जानी चाहिए.
4. कोर्ट ने कहा, बिना पूर्व कारण बताओ नोटिस के कोई भी तोड़फोड़ नहीं की जानी चाहिए, जिसका जवाब स्थानीय नगरपालिका कानूनों में दिए गए समय के अनुसार या सेवा की तारीख से 15 दिनों के भीतर, जो भी बाद में हो, दिया जाना चाहिए.
5. पिछली तारीख से किसी भी तरह के आरोपों को रोकने के लिए कलेक्टर को कारण बताओ नोटिस भेजा जाएगा.
6. डीएम आज से एक महीने के भीतर संरचनाओं के विध्वंस से निपटने के लिए एक नोडल अधिकारी नियुक्त करेंगे
7. प्रत्येक स्थानीय प्राधिकरण को 3 महीने के भीतर एक डिजिटल पोर्टल आवंटित करना होगा जिसमें नोटिस का विवरण होगा,
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