सबसे धनवान मंदिर तिरुपति बालाजी और करोड़ों रुपए में बिकने वाले लड्डू 'प्रसादम' की है गजब की कहानी

बृजेश उपाध्याय

20 Sep 2024 (अपडेटेड: Sep 20 2024 7:46 PM)

लड्‌डू के लिए सप्लाई होने वाले घी में मिलावट का आरोप है. आरोप भी कोई ऐसा-वैसा नहीं बल्कि घी में बीफ फैट, फिश ऑयल और एनिमल टैलो मिलावट का है. यानी अस्था और विश्वास पर कथित रूप से इतनी बड़ी चोट के बाद ये मामला तूल पकड़ता जा रहा है. 

तस्वीर: इंडिया टुडे.

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न्यूज़ हाइलाइट्स

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तिरुपति बालाजी मंदिर में प्रसाद के रूप में इस खास लड्‌डू के बनने की परंपरा सदियों से है.

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आरोप है कि लड्‌डू में मिलाए जा रहे घी में मिलावट थी जिसे लेकर मंदिर चर्चा में है.

देश के सबसे धनवान मंदिर तिरुपति बालाजी की चर्चा जोरों पर है. चर्चा उसके सबसे खास 'प्रसादम' लड्‌डू को लेकर है. इस एक लड्‌डू की कीमत 40 रुपए के करीब है जिसके स्वाद का आनंद अस्था में ओतप्रोत होकर हर कोई लेना चाहता है. लड्‌डू के लिए सप्लाई होने वाले घी में मिलावट का आरोप है. आरोप भी कोई ऐसा-वैसा नहीं बल्कि घी में बीफ फैट, फिश ऑयल और एनिमल टैलो मिलावट का है. यानी अस्था और विश्वास पर कथित रूप से इतनी बड़ी चोट के बाद ये मामला तूल पकड़ता जा रहा है. 

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पहले हम आपको संक्षेप में विवाद बता देते हैं. करीब 50 सालों से कर्नाटक मिल्क फेडरेशन तिरुमाला ट्रस्ट को लड्‌डू बनाने के लिए नंदिनी घी की सप्लाई कर रहा था. जगन रेड्‌डी सरकार में ट्रस्ट ने घी के लिए टेंडर जारी किए. इसके रेट कम होने के कारण नंदिनी घी ने खुद को इस नीलामी से अलग कर लिया. इसके बाद इसका ठेका एआर डेयरी समेत अलग-अलग कंपनियों को दे दिया गया. आरोप है कि इन कंपनियों के घी में मिलावट है. जुलाई 2024 में टीडीपी सरकार आई तो जांच के बाद मिली गड़बड़ियों को लेकर वर्तमान कंपनियों का ठेका निरस्त कर दिया गया. वापस कर्नाटक मिल्क फेडरेशन को ठेका दिया गया और नंदिनी घी की सप्लाई शुरू हो गई.  

ये लड्‌डू जिसे 'प्रसादम' के नाम से जाना जाता है, इसका इतिहास काफी पुराना है. कहते हैं लड्‌डू बनाने से लेकर भक्तों के हाथों में पहुंचने तक उसमें श्रद्धा और विश्वास का रस घुल चुका होता है. आरोप है कि सबसे बड़ी चोट श्रद्धा और विश्वास पर ही हो गई है. इस लड्‌डू का भोग विष्णु अवतार तिरुपति बालाजी को लगने के कारण करोड़ों लोगों की आस्था पर प्रहार के आरोप भी हैं. 'प्रसादम' का कनेक्शन मंदिर की पूजा, श्रद्धा-भक्ति और रीति-रिवाज से सदियों से जुड़ा हुआ है. 

आंध्र प्रदेश के तिरुमला की पहाड़ी पर स्थित मंदिर को तिरुपति बालाजी, भगवान वेंकटेश, वेंकटेश्वर और वेंकटेश्वर स्वामी के नाम से जाना जाता है. मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की प्रतिमा है. कहते हैं सदियों पहले से इस मंदिर में ये खास लड्‌डू तैयार हो रहा है जिसका भगवान को भोग लगने के बाद श्रद्धालुओं तक पहुंचता है. इसे बेसन, चीनी, काजू, किशमिश और अन्य मेवे को शुद्ध घी में मिलाकर तैयार किया जाता है. ये लड्‌डू 'प्रसादम' यहां के धार्मिक महत्व का प्रतीक बन चुका है. 

वर्ष 2009 में मिला था लड्‌डू को GI टैग

प्रसादम के बनाने की विधि और सामग्रियों में सदियों से कोई बदलाव नहीं किया गया था, जिससे इस लड्‌डू का आह्लादित करने वाला स्वाद लोगों के जेहन में बस चुका था. इसे तैयार करने की विधि को पोटू कहा जाता है. इस लड्‌डू को वर्ष 2009 में जीआई (Geographical Indication) टैग मिला था.

तिरुपति मंदिर में लड्‌डू के भोग को लेकर है ये किंवदंती

वैसे तो भगवान विष्णु को पंचमेवा का भोग लगता है पर ये लड्‌डू यहां के पारंपरिक प्रसाद का कब हिस्सा बना इसका कोई तथ्यात्मक विवरण नहीं है. हालांकि लड्‌डू और तिरुपति मंदिर को लेकर एक किंवदंती है. कहते हैं जब तिरुमला की पहाड़ी पर भगवान बालाजी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई तो पुजारी ये सोचने लगे कि प्रभु को क्या भोग लगाएं जिससे वे प्रसन्न हों. ऐसे में एक बूढ़ी मां लड्‌डुओं से भरे थाल लेकर आईं औ बोलीं...इसका भोग लगाओ.

पुजारियों ने लड्‌डू का भोग लगाया और प्रसाद वितरण हुआ. जिसने प्रसाद खाया वो स्वाद में कुछ पलों के लिए मानो खुद ही घुल गया. जब बूढ़ी मां की तरफ सबने देखा तो वो गायब थीं. दूर-दूर तक कोई नहीं था. कहते हैं मां लक्ष्मी ने खुद भगवान वेंकटेश के लिए प्रसादम का भोग लोगों को सुझाया था. फिर वहीं से 'प्रसादम' की परंपरा शुरू हुई. 

यहां भक्त क्यों अर्पित करते हैं बाल, चढ़ता है करोड़ों का चढ़ावा

इसके पीछे भी एक किंवदंती है. कहते हैं जब भगवान वेंकटेश्वर ने पद्मावती से विवाह किया था तब उनके पास पद्मावती को देने के लिए कुछ नहीं था. तब परंपरा का निर्वहन करने के लिए उन्होंने कुबेर से कर्ज लिया और कहा कि इसे वे कलियुग के अंत तक चुकाएंगे. कहते हैं भगवान का कर्ज चुकता करने में जो भक्त मदद करता है उसपर मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और दोगुनी संपदा देती हैं. तरुपति मंदिर में चढ़े बाल से भी मंदिर को आमदनी होती है. मंदिर में हुंडी (गुल्लक) में भक्त लाखों में भगवान को दान देते हैं ताकि उनका कर्ज उतरने में मदद हो सके और मां लक्ष्मी प्रसन्न हो सकें. 

आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुमला की पहाड़ी पर ये अद्भुत मंदिर है. कहते हैं कलियुग में एक मात्र तिरुमला की पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर में ही भगवान विष्णु का निवास है. यहां प्रतिदिन देश में बाकी मंदिरों की तुलना में सबसे ज्यादा भक्त दर्शन करते हैं. देश के सबसे धनवान मंदिरों में तिरुपति बालाजी मंदिर सबसे टॉप पर है. इंडिया टुडे में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक साल 2022 में मंदिर ट्रस्ट की ओर से जारी श्वेतपत्र में कुल संपत्ति ढाई लाख करोड़ रुपए से ज्यादा बताई गई थी. एक अनुमान के मुताबिक आज मंदिर का नेटवर्थ साढ़े तीन लाख करोड़ से भी ज्यादा हो सकता है.

 गौरतलब है कि तिरुपति बालाजी मंदिर का निर्माण 300 ईस्वी में हुआ था. इसका निमार्ण कई राजाओं द्वारा समय-समय पर कराया गया.  मंदिर में भगवान वेंकटेश अपनी पत्नी पद्मा और भार्गवी के साथ विराजते हैं. पद्मा और भार्गवी देवी लक्ष्मी के ही अवतार हैं.  18वीं शताब्दी के मध्य में, मराठा जनरल राघोजी प्रथम भोंसले ने मंदिर की कार्यवाही को सिस्टमैटिक करने के लिए एक स्थायी निकाय की अवधारणा बनाई. इसके बाद ही तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) का जन्म हुआ. बाद में 1933 में TTD अधिनियम के माध्यम से विकसित किया गया था. 

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