मस्जिदों, दरगाहों में मंदिर की खोज की राजनीति के चक्कर में यूपी के संभल में 4 लोगों की जान चली गई. संभल का हंगामा अभी थमा भी नहीं था कि अजमेर शरीफ में शिव मंदिर की खोज के विवाद ने जोर पकड़ लिया. अजमेर की एक निचली अदालत ने ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में एक हिंदू मंदिर बताने वाली याचिका सुनवाई के लिए मंजूर कर ली. कोर्ट से अजमेर शरीफ में शिव मंदिर की खोज की तरफ पहला कदम बढ़ा है. कोई फाइनल आदेश नहीं आया है, लेकिन भयंकर विवाद शुरू है. समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव इतने तैश में आए कि कह दिया... इस तरह के छोटे-छोटे जज बैठे हैं जो इस देश में आग लगवाना चाहते हैं.
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निशाने पर क्यों आए पूर्व CJI
निशाने पर आ गए हैं चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के पद से अभी-अभी रिटायर हुए चंद्रचूड़ और उनका एक जजमेंट. मई 2022 में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस पीएस नरसिम्हा राव की बेंच ने ज्ञानवापी केस की सुनवाई करते हुए कहा था कि किसी पूजास्थल का धार्मिक स्वरूप नहीं बदला जा सकता, लेकिन 1991 के Places of Worship Act की धारा 3 और 4 पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र का पता लगाने से नहीं रोकता. मतलब सर्वे करके ये पता किया जा सकता है कि मस्जिद के नीचे कोई मंदिर तो नहीं था या मंदिर तोड़कर मस्जिद तो नहीं बनी थी.
संभल कांड के बाद उठे ये सवाल
संभल कांड के बाद इसपर सवाल उठने लगे हैं. ये कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही सर्वे का रास्ता बंद कर दिया होता तो आज ये नौबत नहीं आती. 1991 के जिस Places of Worship Act की व्याख्या करने से मस्जिदों में मंदिर ढूंढने का रास्ता खुला उस एक्ट के खिलाफ भी चार याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं. चीफ जस्टिस यूयू ललित के समय 2022 में केंद्र सरकार का जवाब मांगा गया था, लेकिन सरकार ने आज तक जवाब नहीं दिया.
ओवैसी बोले- कानून कमजोर कर दिया गया
AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी ने आरोप लगाया कि चीफ जस्टिस रहते डीवाई चंद्रचूड़ ने Places of Worship Act की व्याख्या करके 1991 के कानून को कमजोर कर दिया. अयोध्या जजमेंट और ज्ञानवापी मामले में कोर्ट की भूमिका ने हिंदुत्व संगठनों को हर मस्जिद को निशाना बनाने का हौसला दिया. संभल कांड के बाद सीपीएम नेता सुभाषिनी अली ने तंज कसा कि ज्ञानवापी, ईदगाह के बाद अब संभल की मस्जिद-यही है चंद्रचूड़ की लेगेसी. पुलिस फायरिंग में 5 लोग मारे गए. क्या पूर्व चीफ जस्टिस सुन रहे हैं? कोई परवाह है?
वर्शिप एक्ट की इस व्याख्या के बाद शुरू हो गए विवाद?
जजमेंट या व्याख्या-आरोप लग रहे हैं कि चंद्रचूड़ के कारण 1991 का Worship Act कमजोर हो गया. हिंदुत्व विचारधारा से प्रभावित अदालतों को ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों में सर्वेक्षण और जांच का आदेश देने की आजादी मिल गई. एक जज वाले कोर्ट से
सर्वे करके मस्जिदो में मंदिर ढूंढने के आदेश निकल रहे हैं. मंदिर-मस्जिद विवादों को नए पंख लग गए. इसी की आड़ में मस्जिदों में मंदिर होने की जांच के लिए सर्वे की मांग हो रही है. काशी की ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद, धार की कमाल मौला मस्जिद में भी यही हुआ. संभल में भी यही हुआ तो इसके भीषण परिणाम हुए. अब अजमेर शरीफ का विवाद शुरू हुआ है.
संभल में हरिहर मंदिर होने का दावा
संभल की जामा मस्जिद को 1920 से संरक्षित स्मारक यानी राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया था. संभल कोर्ट में याचिकाकर्ता ने याचिका लगाई कि 1526 में मुगल शासक बाबर ने हिंदू मंदिर हरिहर गिराकर शाही जामा मस्जिद बनवाई थी. 19 नवंबर को सिंगल ड्रिस्ट्रिक कोर्ट के जज ने मस्जिद के सर्वे का आदेश दिया. जिस दिन आदेश दिया उसी दिन सर्वे भी शुरू हो गया. 24 नवंबर को दोबारा सर्वे के लिए टीम पहुंचीं तो हिंसा भड़क गई.
बीजेपी के राम मंदिर आंदोलन से मंदिर-मस्जिद की राजनीति ने जोर पकड़ा. जब अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद का विवाद गरमाया तब कांग्रेस की नरसिम्हा राव ने 1991 में धार्मिक स्थलों के लिए कानून Places of Worship Act बनाया था. धार्मिक स्थलों की मौजूदा स्थिति बनाए रखने का कानून था. मतलब 15 अगस्त 1947 तक जो मंदिर था वो मंदिर रहेगा. जो मस्जिद है वो मस्जिद ही रहेगी. कानून जम्मू कश्मीर और राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद पर लागू नहीं हुआ. कानून का मकसद धार्मिक सौहार्द बनाए रखना और नए विवादों को रोकना था.
डीवाई चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट के उस बेंच को हेड कर रहे थे जिसने 2019 में अयोध्या विवाद का फाइनल जजमेंट दिया. जजमेंट राम मंदिर के पक्ष में आया. उसी के बाद अयोध्या में भव्य राम मंदिर बना.
रिटायरमेंट के बाद चंद्रचूड़ ट्रोलर्स के निशाने पर
चंद्रचूड़ रिटायर हो चुके हैं. चाहें तब भी कुछ नहीं कर सकते. रिटायरमेंट से पहले और रिटायरमेंट के बाद चंद्रचूड़ नेताओं और सोशल मीडिया के ट्रोलर्स के निशाने पर हैं. कौन क्या कह रहा है, क्या चाह रहा है, ये तो चंद्रचूड़ पद पर भी जानते-समझते थे. बस खुलकर बोले नहीं. रिटायर होने के बाद उन्होंने जवाब दिया है. राहुल गांधी, संजय राउत-अलग-अलग नेताओं के बयानों के रेफरेंस में ऐसा ही एक जवाब नेता बिरादरी के लिए दिया कि कोई एक पार्टी या व्यक्ति कैसे तय कर सकता है कि सुप्रीम कोर्ट को कौन सा मामला सुनना चाहिए, कौन सा नहीं. ये फैसला केवल चीफ जस्टिस का होता है. अदालतें विपक्ष का रोल नहीं निभातीं. कुछ लोग न्यायपालिका के कंधों पर बंदूक रखकर गोली चलाना चाहते हैं. वे कोर्ट को विपक्ष में बदलना चाहते हैं.
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