Manipur Violence: बुधवार 20 दिसंबर को मणिपुर के चुराचांदपुर जिले के सेहकेन के खुगा बांध के पास 87 शवों को दफनाया गया. प्रदेश में महीनों तक चली भीषण हिंसा में मारे जाने वाले 87 लोगों के ये शव आठ महीने से मुर्दाघर में रखे गए थे. ये सभी मृतक कुकी समुदाय हैं. इनमें से 41 शव पिछले हफ्ते ही इम्फाल के मुर्दाघर से चुराचांदपुर लाए गए थे, जबकि 46 शव पहले से यहीं थे.
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मृतकों के लिए शोक समारोह कड़े सुरक्षा उपायों के बीच ‘वॉल ऑफ रिमेंबरेंस’ पीस ग्राउंड तुईबोंग में आयोजित किया गया. वहां इस बात की भी घोषणा की गई कि जहां इन्हें दफनाया जा रहा है, उस जगह का नाम ‘कुकी-हमार-मिजो-जोमी शहीद कब्रिस्तान’ रखा जाएगा. रविवार रात को दो आदिवासी गुटों के बीच झड़प होने के बाद से ही इस जिले में धारा 144 लागू है.
क्या हुआ था मणिपुर में?
मणिपुर पिछले कई महीनों तक भीषण हिंसा हुई है. इस साल अप्रैल महीने की 19 तारीख को मणिपुर हाई कोर्ट ने मणिपुर सरकार को चार सप्ताह के भीतर मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) कैटेगरी में शामिल करने के अनुरोध पर विचार करने को कहा था. कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा था कि केंद्र सरकार को भी इस पर विचार करने के लिए एक सिफारिश भेजी जाए. कुकी जनजातियों के ऑल ट्राइबल्स स्टूडेंट्स यूनियन (ATSU) ने 3 मई को इसके विरोध में राजधानी इंफाल से करीब 65 किलोमीटर दूर चुराचांदपुर जिले के तोरबंद इलाके में आदिवासी एकजुटता मार्च रैली का आयोजन किया. उसी रैली के दौरान हिंसा भड़क गई थी. छिटपुट स्तर पर देखें, तो ये हिंसा आज तक नहीं रुकी है.
इसी हिंसा में मारे गए लोगों के शव अलग-अलग मुर्दाघरों में महीनों तक पड़े रहे. हिंसा नहीं थमने और जातीय संघर्ष बढ़ने के खतरों की वजह से अंतिम संस्कार मुमकिन नहीं हो पा रहा था. मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को सम्मानजनक तरीके से इन शवों के अंतिम संस्कार करने का निर्देश जारी किया था. इसके बाद ये सामूहिक अंतिम संस्कार किया गया.
अब इसका बैकग्राउंड समझिए
मणिपुर में मैतेई और कुकी दो प्रमुख समुदाय हैं. मैतेई समुदाय की आबादी लगभग 60 फीसदी है जो प्रदेश के घाटी इलाकों तक सीमित है. वहीं कुकी पहाड़ी इलाकों में रहते है. मणिपुर के कानून के मुताबिक घाटी में बसे मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में न बस सकते हैं और न ही जमीन खरीद सकते हैं. लेकिन पहाड़ी इलाकों में बसे जनजाति समुदाय के कुकी और नगा घाटी में बस भी सकते हैं और जमीन भी खरीद सकते हैं. पहाड़ी इलाकों में बसने और जमीन लेने के लिए अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा होना अनिवार्य है. मैतेई अपने लिए इसी दर्जे की मांग के लिए प्रयासरत हैं, जिससे कि वो पहाड़ी इलाकों में भी विस्तार कर सकें. इसी का विरोध पहाड़ी कुकी समुदाय कर रहा है. यही वजह है कि इन दोनों समुदायों के बीच पिछले कई महीनों तक भीषण हिंसा चली.
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