तेलंगाना में क्या केसीआर और बीआरएस के चमत्कार के दिन खत्म?

देवराज गौर

• 06:02 PM • 13 Oct 2023

तेलंगाना में क्या बदलाव की आहट है? आगामी विधानसभा चुनावों के लिए हुए हालिया सर्वे ऐसे संकेत दे रहे हैं, जिसे लेकर मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (केसीआर) की चिंता शायद बढ़ गई होगी. तेलंगाना राज्य के बनने के बाद से ही यहां सत्ता का केंद्र बिंदु बने केसीआर और उनकी पार्टी भारतीय राष्ट्र समिति (बीआरएस) के लिए इस बार राह आसान नहीं दिख रही.

क्या कांग्रेस तेलंगाना में केसीआर के लिए चुनौती बन सकती है.

क्या कांग्रेस तेलंगाना में केसीआर के लिए चुनौती बन सकती है.

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तेलंगाना विधानसभा चुनाव 2023ः तेलंगाना में क्या बदलाव की आहट है? आगामी विधानसभा चुनावों के लिए हुए हालिया सर्वे ऐसे संकेत दे रहे हैं, जिसे लेकर मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव (केसीआर) की चिंता शायद बढ़ गई होगी. तेलंगाना राज्य के बनने के बाद से ही यहां सत्ता का केंद्र बिंदु बने केसीआर और उनकी पार्टी भारतीय राष्ट्र समिति (बीआरएस) के लिए इस बार राह आसान नहीं दिख रही. तेलंगाना में 30 नवंबर को वोट डाले जाने हैं. केसीआर के लिए यह चुनाव चुनौतीपूर्ण होने वाला है. आइए समझते हैं कैसे?

केसीआर के लिए कांग्रेस की बड़ी चुनौती

पहले यहां मुकाबला बीजेपी और बीआरएस के बीच माना जा रहा था. कर्नाटक में कांग्रेस की पूर्ण बहुमत वाली सरकार क्या बनी दक्षिण भारत के इस राज्य का सियासी गणित तेजी से बदला. अब सीधा मुकाबला कांग्रेस और बीआरएस के बीच माना जा रहा है. बीजेपी अब थर्ड प्लेयर की भूमिका निभा रही है. यही वजह है कि केसीआर जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिले थे तो इंडिया गठबंधन को लेकर उन्होंने क्लियर कर दिया था कि वह गठबंधन में शामिल नहीं होंगे. वह जानते थे कि अब राज्य में उनका सीधा मुकाबला कांग्रेस से होगा.

केसीआर को कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने निशाने पर ले रखा है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी एक रैली में बीआरएस को बीजेपी रिश्तेदार समिति नाम दे चुके हैं. राहुल गांधी और कांग्रेस की पूरी कोशिश है कि केसीआर और बीजेपी को एक बताया जाए ताकि विपक्ष का वोट न बंटे. केसीआर को एंटी-इंकंबेंसी का सामना भी करना पड़ रहा है. तेलंगाना 2014 में आंध्र प्रदेश से अलग होकर एक अलग राज्य बना था. तब से केसीआर वहां के मुख्यमंत्री हैं. केसीआर को कठिन चुनाव का शायद आभास हो चुका है. इस बार वह दो सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं. पहली उनकी परंपरागत सीट गजवेल और दूसरी है कामारेड्डी. सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या केसीआर को हार का डर है

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