Bihar Election: बिहार में विधानसभा चुनाव भले ही अभी 6-8 महीने दूर हों, लेकिन सियासी हलचल तेज हो गई है. महागठबंधन और एनडीए (NDA) के बीच जंग की तस्वीर धीरे-धीरे साफ होने लगी है. नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला एनडीए जहां मजबूत स्थिति में दिख रहा है, वहीं लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस का इंडिया गठबंधन भी अपनी रणनीति को धार दे रहा है. आइए, बिहार के इस सियासी समीकरण को समझते हैं.
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नीतीश कुमार और एनडीए की स्थिति
माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एनडीए गठबंधन में बने रहेंगे. हालांकि, यह सवाल बड़ा है कि वे अगले पांच साल तक मुख्यमंत्री बने रहेंगे या नहीं. उनकी उम्र और स्वास्थ्य को देखते हुए यह लगभग तय माना जा रहा है कि अगला कार्यकाल उनका आखिरी हो सकता है. 29 मार्च 2025 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बिहार में एक अहम बैठक करने जा रहे हैं, जिसके बाद एनडीए की रणनीति और साफ हो सकती है.
एनडीए के पास नीतीश कुमार का 15% वोट, चिराग पासवान का 5%, जीतन राम मांझी का 3%, बीजेपी का 10-12%, और उपेंद्र कुशवाहा का 4% वोट है. छोटी जातियों को जोड़कर यह आंकड़ा 45% के करीब पहुंचता है. संख्या बल में यह गठबंधन फिलहाल मजबूत नजर आ रहा है.
इंडिया गठबंधन की तैयारी
दूसरी ओर, लालू प्रसाद यादव और राहुल गांधी की जोड़ी महागठबंधन को मजबूत करने में जुटी है. हाल ही में राहुल गांधी ने बिहार के कांग्रेस नेताओं की बड़ी बैठक बुलाई, जिसमें खुलकर चर्चा हुई. यह साफ कर दिया गया कि चुनाव लालू की पार्टी RJD के साथ मिलकर लड़ा जाएगा, लेकिन इस बार कांग्रेस बी-टीम बनकर नहीं रहेगी. कांग्रेस ने ठीक-ठाक सीटों की मांग की है और अपनी पसंद की सीटों पर जोर दे रही है.
लालू पर दबाव है कि अगर वे अपने बेटे तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं, तो कांग्रेस की कुछ शर्तें माननी पड़ेंगी. राहुल गांधी ने इसका ट्रेलर दिखा दिया है. कन्हैया कुमार की ‘पलायन रोको रैली’ को जबरदस्त समर्थन मिल रहा है. इसमें सचिन पायलट जैसे केंद्रीय नेताओं ने भी हिस्सा लिया है. 14 अप्रैल 2025 को रैली खत्म होने के बाद कन्हैया को चुनाव अभियान या संचालन समिति में बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है.
जातिगत समीकरण और वोट बैंक
लालू के पास MY (मुस्लिम-यादव) फैक्टर है, जो करीब 32% वोट (14.2% मुस्लिम और 16.8% यादव) का दम रखता है. राहुल गांधी ने दलित नेता राजेश कुमार राम को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर 5.2% रविदास समाज के वोट को अपनी ओर खींचने की कोशिश की है. इसके अलावा, कांग्रेस के पास सवर्ण वोट (ब्राह्मण 3.65%, राजपूत 3.45%, कायस्थ और भूमिहार 2.86%) भी है, जो 2-3% तक प्रभाव डाल सकता है.
इस तरह, महागठबंधन का वोट प्रतिशत 37-40% तक पहुंच सकता है. कांग्रेस की मौजूदगी से मुस्लिम वोटों का बिखराव रुक सकता है, जो इसे 45% के करीब ले जा सकता है. छोटी जातियां जैसे धानुक (2.13%), तेली (2.81%), कुम्हार (1.04%), बढ़ई (1.45%), और नाई (1.59%) भी समीकरण बदल सकती हैं.
युवा नेताओं का दम
बिहार की सियासत में युवा चेहरों की भूमिका बढ़ रही है. तेजस्वी यादव, कन्हैया कुमार, चिराग पासवान, और प्रशांत किशोर जैसे नेता मैदान में हैं. सचिन पायलट को भी बिहार में संगठन मजबूत करने की जिम्मेदारी दी जा सकती है. सूत्रों के मुताबिक, उन्हें कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरने और खेमेबाजी खत्म करने का टास्क मिला है.
मुख्य मुद्दे: बेरोजगारी और पलायन
चुनाव में बेरोजगारी और पलायन बड़े मुद्दे बन रहे हैं. विपक्षी दल, खासकर कांग्रेस और RJD, इसे भुनाने की पूरी कोशिश में हैं. कन्हैया की रैली भी इसी मुद्दे पर केंद्रित है. वहीं, प्रशांत किशोर भी रोजगार को लेकर सक्रिय हैं.
उम्मीदवार चयन पर जोर
पिछले चुनाव में महागठबंधन की हार की बड़ी वजह उम्मीदवारों का कमजोर चयन था. इस बार लालू का अनुभव और कांग्रेस के डेटा विश्लेषक कृष्णा अल्लावरु की जोड़ी इसे दुरुस्त करने में जुटी है. लालू को बिहार की जातिगत गणित की गहरी समझ है, जबकि कांग्रेस सर्वे और फीडबैक के जरिए मजबूत रणनीति बना रही है.
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