Bulldozer Justice: देशभर में ‘बुलडोजर न्याय’ का एक नया स्वरूप सामने आ रहा है, जो कानून व्यवस्था और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर गंभीर सवाल खड़े करता है. ताजा मामला गुजरात के भरूच जिले से आया है, जहां एक परिवार ने निजी तौर पर बुलडोजर किराए पर लेकर एक व्यक्ति के छह घरों को ध्वस्त कर दिया.
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बुलडोजर का निजी उपयोग: कानून व्यवस्था पर सवाल
भरूच जिले में एक शादीशुदा महिला के एक तलाकशुदा पुरुष के साथ भाग जाने के बाद, महिला के परिवार ने बदला लेने के लिए उस पुरुष के छह घरों पर बुलडोजर चला दिया. यह घटना कानून व्यवस्था की गंभीर चूक को उजागर करती है, क्योंकि किसी व्यक्ति या समूह को इस तरह से निजी तौर पर बुलडोजर का उपयोग करने का अधिकार नहीं है. पुलिस ने इस मामले में बुलडोजर चलाने वाले व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया है और परिवार के सदस्यों से पूछताछ की जा रही है.
बुलडोजर राजनीति और न्यायिक प्रक्रिया
देशभर में बुलडोजर का उपयोग अब प्रशासनिक कार्रवाई से आगे बढ़कर राजनीतिक और निजी दुश्मनी के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया था कि किसी भी संपत्ति को ध्वस्त करने से पहले कम से कम 15 दिन का नोटिस देना अनिवार्य है. इसके बावजूद, कई मामलों में बिना उचित प्रक्रिया के बुलडोजर चलाए जा रहे हैं.
ताजा उदाहरण महाराष्ट्र का है, जहां एक नाबालिग द्वारा कथित रूप से ‘राष्ट्र-विरोधी’ नारे लगाने के बाद उसके परिवार के घरों पर बुलडोजर चला दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कड़ी नाराजगी जताते हुए राज्य सरकार से जवाब मांगा है. इसी तरह, नागपुर में एक दंगा आरोपी के घर को मात्र चार दिन के नोटिस पर गिरा दिया गया, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 15 दिन के नोटिस की अनिवार्यता तय की थी.
तमिलनाडु में बुलडोजर की एंट्री?
इस बीच, सोशल मीडिया पर एक ऑडियो वायरल हो रहा है, जिसमें शिवसेना के एक कार्यकर्ता को यह तक नहीं पता कि तमिलनाडु कहां है और वहां कैसे पहुंचा जाए. यह मामला स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा से जुड़ा है, जिनके एक वीडियो के कारण कुछ शिवसैनिक उनसे नाराज हैं. हालात यह हैं कि महाराष्ट्र से तमिलनाडु तक बुलडोजर न्याय की संभावनाएं तलाशी जाने लगी हैं. हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसा कोई कदम उठाया जाएगा या नहीं.
लोकतंत्र पर ‘बुलडोजर’ का खतरा
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, असम, राजस्थान और महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में बुलडोजर कार्रवाई लगातार चर्चा में रही है. उत्तर प्रदेश में इसे ‘बुलडोजर बाबा’ की संज्ञा दी गई, जबकि सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने हाल ही में टिप्पणी की कि ‘लोकतंत्र पर बुलडोजर चल रहा है.’ सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में निष्पक्ष और कानूनी प्रक्रिया अपनाने की सख्त जरूरत बताई है.
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