Caste Census: देश में 10 साल में एक बार होने वाली जनगणना की प्रक्रिया शुरू होने वाली है. पिछली जनगणना साल 2011 में हुई थी फिर अगली 2021 में होनी थी. कोरोना की वजह से ये अब तक हो नहीं पाई है. जानकारी के मुताबिक केंद्र सरकार जनगणना कराने जा रही है. इस जनगणना में एक खास बात ये चल रही है कि, केंद्र सरकार इस बार जाति जनगणना का डेटा भी इकट्ठा करने पर विचार कर रही है. जानकारी के मुताबिक सरकार जनगणना में जाति का एक कॉलम शामिल करने पर विचार कर रही है. हालांकि, अभी तक इस पर कोई फैसला नहीं लिया गया है.
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सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार जनगणना में जाति का कॉलम शामिल करने पर विचार कर रही है. जनगणना का काम जल्द ही शुरू होगा और इस संबंध में जल्द ही घोषणा की जाएगी. बता दें जनगणना का काम 2020 में शुरू हो जाना था लेकिन कोरोना की वजह से इसमें देरी हो गई.
कांग्रेस सहित विपक्षी दल की डिमांड है जातिगत जनगणना
देश में जातिगत जनगणना एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है. विपक्षी पार्टी कांग्रेस समेत कई दल लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं. कांग्रेस ने तो अपने चुनावी घोषणापत्र में इसे शामिल किया था. राहुल गांधी ने तो लोकसभा चुनाव की हर रैली में जातिगत जनगणना करने की बात कहीं. इसी क्रम में कांग्रेस पार्टी ने केंद्र को ये सुझाव दिया था कि सरकार अगली जनगणना में केवल एक अतिरिक्त कॉलम जोड़कर ओबीसी आबादी का जाति-वार डेटा एकत्र कर सकती है. कांग्रेस ने कहा था कि 1951 से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का डेटा हासिल करने के लिए इसी तरह की प्रक्रिया चलती रही है. इसके पीछे कांग्रेस का ये तर्क था कि सरकार के इस कदम से वंचित समूहों को सहायता प्रदान किया जा सकेगा.
दूसरी तरफ केंद्र की बीजेपी-NDA सरकार ने अभी तक इस पर अपना रुख साफ नहीं किया है. हालांकि कि NDA के कई सहयोगियों जिनमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम प्रमुख हैं ने इसका पूर्ण समर्थन किया है. उन्होंने तो बिहार में जातिगत जनगणना कराकर आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी तक कर दिया था. हालांकि बिहार हाई कोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताते हुए निरस्त कर दिया.
क्यों जरूरी है जातिगत जनगणना?
- जातिगत जनगणना कराने के पक्ष में ये तर्क है कि 1951 से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति जातियों का डेटा जारी होता है, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग और दूसरी जातियों के आंकड़े नहीं आते. इस कारण ओबीसी की सही आबादी का अनुमान लगाना मुश्किल है.
- 1990 में केंद्र की तब की वीपी सिंह की सरकार ने दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशों को लागू किया था. इसे मंडल आयोग के नाम से जानते हैं. इसने देश में ओबीसी की 52 फीसदी आबादी होने का अनुमान लगाया था.
- हालांकि, मंडल आयोग ने ओबीसी आबादी का जो अनुमान लगाया था उसका आधार 1931 की जनगणना ही थी. मंडल आयोग की सिफारिश पर ही ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिया जाता है.
- जानकारों का कहना है कि SC और ST को जो आरक्षण मिलता है, उसका आधार उनकी आबादी है. लेकिन ओबीसी के आरक्षण का कोई आधार नहीं है.
2024 में कितनी है देश की आबादी?
भारत में पहली बार 1881 में जनगणना हुई थी. उस समय भारत की आबादी 25.38 करोड़ थी. तब से ही हर 10 साल पर जनगणना होती है. आखिरी बार 2011 में जनगणना हुई थी. 2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत की आबादी 121 करोड़ से ज्यादा थी. 2001 से 2011 के बीच भारत की आबादी 18 फीसदी के आसपास बढ़ गई थी. इसमें 96.63 करोड़ हिंदू और 17.22 करोड़ मुस्लिम हैं.
भारत की कुल आबादी में 79.8 फीसदी हिंदू और 14.2 फीसदी मुस्लिम हैं. इनके बाद ईसाई 2.78 करोड़ (2.3%) और सिख 2.08 करोड़ (1.7%) हैं. बाकी बौद्ध और जैन धर्म को मानने वालों की आबादी 1% से भी कम है. वर्तमान में भारत की आबादी करीब 141 करोड़ होने का अनुमान है.
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