वक्फ बिल पास होने से बदली देश की सियासत, मोदी सरकार को फायदा, क्या करेगा इंडिया गठबंधन?

Vijay Factor on Waqf law: वक्फ बिल को मंजूरी मिलने के बाद देश की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. लोकसभा और राज्यसभा से आसानी से पारित हुए इस बिल ने न सिर्फ सत्ताधारी मोदी सरकार को मजबूत किया है, बल्कि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के लिए भी नए सवाल खड़े कर दिए हैं.

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विजय विद्रोही

• 08:50 AM • 06 Apr 2025

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Vijay Factor on Waqf law: वक्फ बिल को मंजूरी मिलने के बाद देश की राजनीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. लोकसभा और राज्यसभा से आसानी से पारित हुए इस बिल ने न सिर्फ सत्ताधारी मोदी सरकार को मजबूत किया है, बल्कि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के लिए भी नए सवाल खड़े कर दिए हैं. इस बिल के पास होने के बाद तीन बड़े बदलाव साफ नजर आ रहे हैं, जिन्होंने भारतीय राजनीति के समीकरण को नया रंग दे दिया है.

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पहला बदलाव: विपक्ष को मौका, लेकिन चुनौती भी

वक्फ बिल ने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ को एकजुट होने का मौका दिया है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर राहुल गांधी और उनके सहयोगी नेता सही रणनीति बनाएं, तो आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में वे मोदी सरकार को कड़ी टक्कर दे सकते हैं. हालांकि, यह मौका चुनौती के साथ आया है. बिल के समर्थन में एनडीए के सहयोगियों का रुख देखकर विपक्ष की राह आसान नहीं दिख रही. मल्लिकार्जुन खड़गे, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव और ममता बनर्जी जैसे नेताओं को अब एकजुट होकर बड़ी रणनीति बनानी होगी.

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दूसरा बदलाव: मोदी सरकार की ताकत बढ़ी

इस बिल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी को नया हथियार थमा दिया है. धारा 370, राम मंदिर और ट्रिपल तलाक जैसे मुद्दों के बाद अब वक्फ बिल ने सरकार को यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की दिशा में बढ़ने का रास्ता खोल दिया है. पहले गठबंधन की मजबूरी में सहयोगियों पर निर्भर दिखने वाली मोदी सरकार अब अपनी शर्तों पर फैसले ले रही है. नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू, चिराग पासवान और जयंत चौधरी जैसे नेताओं का समर्थन इस बात का सबूत है कि गठबंधन की बैसाखियां अब मोदी के इशारे पर चल रही हैं.

तीसरा बदलाव: गठबंधन की राजनीति में उलटफेर

वक्फ बिल के समर्थन में एनडीए के सहयोगियों का रुख चौंकाने वाला रहा. कभी वाजपेयी सरकार के खिलाफ गुजरात दंगों पर सवाल उठाने वाले चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार अब बीजेपी के साथ कदमताल करते दिख रहे हैं. चिराग पासवान ने भी अपने पिता रामविलास पासवान के पुराने स्टैंड को दरकिनार कर बिल का समर्थन किया. राज्यसभा में नवीन पटनायक का साथ मिलना भी बीजेपी के लिए बड़ी जीत रहा. इससे साफ है कि विचारधारा अब सत्ता की चाहत के आगे कमजोर पड़ गई है.

सहयोगियों की मजबूरी, बीजेपी की चाल

बीजेपी ने इस बिल के जरिए सहयोगियों की सौदेबाजी की ताकत को खत्म कर दिया है. नीतीश कुमार की जेडीयू हो या चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी, सभी को सत्ता में बने रहने की चाहत ने बीजेपी के सामने झुका दिया. जानकारों का कहना है कि बीजेपी ने सहयोगियों को उनकी सीमाएं दिखा दी हैं. अब न तो उनकी ब्लैकमेलिंग चल रही है और न ही विरोध की हिम्मत बची है.

आगे क्या?

मोदी सरकार के लिए यह बिल न सिर्फ राजनीतिक जीत है, बल्कि आर्थिक सुधारों और संघ के एजेंडे को आगे बढ़ाने का रास्ता भी खोलता है. दूसरी ओर, विपक्ष के पास बिहार जैसे राज्यों में मौका है. अगर ‘इंडिया’ गठबंधन बिहार में मजबूत प्रदर्शन करता है, तो बीजेपी की इस रणनीति पर सवाल उठ सकते हैं. आने वाले दिन राजनीति के लिहाज से रोमांचक होने वाले हैं.

देश की सियासत में यह नया मोड़ क्या रंग लाएगा, यह देखना बाकी है. लेकिन इतना तय है कि वक्फ बिल ने न सिर्फ सरकार को मजबूत किया, बल्कि विपक्ष के सामने बड़ी चुनौती भी खड़ी कर दी है.

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