केंद्र सरकार के फैक्ट चेक यूनिट बनाने पर कोर्ट ने लगाई रोक, कहा स्वतंत्रता और समानता का है उल्लंघन 

SC on IT Rule amendments: कोर्ट स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स और न्यूज ब्रॉडकास्ट एंड डिजिटल एसोसिएशन के दायर चार याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. 

PIB Fact Check

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अभिषेक

20 Sep 2024 (अपडेटेड: 20 Sep 2024, 06:33 PM)

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IT Rule amendments: बॉम्बे हाई कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार द्वारा लाए गए आईटी नियमों में बदलाव को रद्द कर दिया. आईटी नियमों में बदलाव से केंद्र सरकार PIB के तहत फैक्ट चेक यूनिट स्थापित करने की अनुमति मिली थी. सरकार ने 2023 में संशोधन कर उसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपने कामकाज से संबंधित 'फर्जी और भ्रामक' जानकारी की पहचान करने और उसे हटाने का अधिकार दिया था. केंद्र सरकार के बारे में कोई भी खबर को अगर यूनिट फेक कह देती तो सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को उसे हटाना पड़ता. इस मामले में दो जजों की पीठ के दोनों जजों ने अलग-अलग फैसला दिया. फिर जस्टिस अतुल चंद्रूकर की एक टाई-ब्रेकर पीठ ने माना कि संशोधन कानून के समक्ष समानता (अनुच्छेद 14) और भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) की संविधान की गारंटी का उल्लंघन थे. 

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आपको बता दें कि, कोर्ट स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स और न्यूज ब्रॉडकास्ट एंड डिजिटल एसोसिएशन के दायर चार याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. 

किस लिए दायर की गई थी याचिकाएं?

पिछले साल अप्रैल में बॉम्बे हाई कोर्ट में IT ऐक्ट में संशोधन के खिलाफ दायर याचिकाओं में तर्क दिया गया था कि, 'संशोधन सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 79 की शक्तियों से परे थे और समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) और संविधान के किसी भी पेशे का अभ्यास करने की स्वतंत्रता का उल्लंघन करते है. 

दोनों जजों ने अलग-अलग दिया फैसला 

बॉम्बे हाई कोर्ट के जनवरी 2024 के फैसले में, न्यायमूर्ति पटेल ने माना कि प्रस्तावित तथ्य जांच इकाइयां सीधे तौर पर अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं, उन्होंने सेंसरशिप की संभावना और ऑनलाइन और प्रिंट के बीच अंतर व्यवहार के बारे में चिंताओं का भी हवाला दिया.

हालांकि दूसरी ओर न्यायमूर्ति गोखले ने कहा कि आईटी नियमों में संशोधन असंवैधानिक नहीं था, उन्होंने यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए संभावित पूर्वाग्रह के आरोप 'निराधार' थे. उन्होंने आगे कहा कि 'स्वतंत्र भाषण पर कोई प्रतिबंध' नहीं है, न ही संशोधन उपयोगकर्ताओं के लिए किसी दंडात्मक परिणाम का सुझाव देता है.

अब टाई-ब्रेकर न्यायाधीश की राय न्यायमूर्ति पटेल के फैसले के पक्ष में होने के साथ, याचिकाओं को औपचारिक रूप से अंतिम फैसले के लिए एक खंडपीठ के समक्ष रखा जाएगा.

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