Poverty News in India: क्या भारत सचमुच गरीबी से मुक्ति की ओर बढ़ रहा है? भारत सरकार का ताजा आंकड़ा दावा करता है कि देश में गरीबी अब सिर्फ 4% रह गई है. यानी 142 करोड़ की आबादी में महज 5-6 करोड़ लोग ही गरीबी रेखा के नीचे बचे हैं, जो अगले एक-दो साल में खत्म हो जाएंग.12 साल पहले 2011-12 में यह आंकड़ा 29.3% था. लेकिन इस दावे के साथ उठते सवालों ने देश में एक नई बहस छेड़ दी है. क्या ये आंकड़े सच हैं, या सिर्फ कागजी हकीकत?
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गरीबी की नई परिभाषा: 47 रुपये रोज़ में गुजारा?
नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (एनएसओ) और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य डॉ. शमिका रवि के हवाले से यह आंकड़ा सामने आया है. रंगराजन समिति के 2014 के फॉर्मूले के आधार पर तैयार इस रिपोर्ट के मुताबिक, शहर में अगर कोई व्यक्ति रोज़ाना 47 रुपये (महीने में 1,410 रुपये) से ज्यादा कमाता है, तो वह गरीब नहीं है. गांव में यह सीमा 32 रुपये रोज़ (960 रुपये महीने) तय की गई है। लेकिन क्या 47 रुपये में शहर और 32 रुपये में गांव में जिंदगी चलाना मुमकिन है? यह सवाल हर किसी के मन में कौंध रहा है.
राज्यों में गरीबी घटी: सच या आंकड़ों का खेल?
सरकारी दावे के मुताबिक, कई राज्यों में गरीबी में जबरदस्त कमी आई है:
- छत्तीसगढ़: 47% (2011-12) से घटकर 11.3%
- मध्य प्रदेश: 44% से 6%
- बिहार: 41.3% से 4.4%
- झारखंड: 42% से 12.5%
- उत्तर प्रदेश: 40% से 3.5%
- राजस्थान: 22% से 5%
- हरियाणा: 12.5% से 0.9%
- पंजाब: 11% से 2%
- गुजरात: 27% से 2.7%
- महाराष्ट्र: 20% से 5.9%
लेकिन अगर गरीबी इतनी कम है, तो 80-82 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन क्यों बांटा जा रहा है? आयुष्मान भारत, लाडली बहना जैसी योजनाएं क्यों चल रही हैं? बिहार में नीतीश कुमार के सर्वे ने 50% से ज्यादा आबादी को गरीब बताया था, तो फिर 4.4% का दावा कैसे सच हो सकता है?
मुफ्त अनाज और मनरेगा पर सरकार का जवाब
जब डॉ. शमिका रवि से सवाल पूछा गया कि अगर गरीबी 4% है, तो मुफ्त अनाज और मनरेगा क्यों, तो जवाब मिला, "पहले अनाज गोदामों में सड़ता था, अब बांटा जा रहा है. मनरेगा से मौसमी बेरोजगारी में मदद मिलती है. " लेकिन आलोचकों का कहना है कि मनरेगा का बजट हर साल बढ़ रहा है और मुफ्त अनाज लेने वालों में आयकरदाता भी शामिल हैं. कई गरीबों को तो आधार और जनधन खाते लिंक करने की जानकारी न होने से राशन नहीं मिल पा रहा.
विरोधाभासी रिपोर्ट्स ने बढ़ाई उलझन
'जर्नल ऑफ द फाउंडेशन फॉर एग्रेरियन स्टडीज' के एक लेख में दावा किया गया कि 2022-23 में देश में 26.4% लोग गरीब थे. एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, 100 करोड़ लोग ऐसे हैं जो जरूरत का सामान खरीदने में भी संघर्ष करते हैं. तो क्या सरकारी आंकड़े हकीकत से परे हैं?
गरीबी घटी या सरकारी योजनाओं पर निर्भरता बढ़ी?
सरकार का कहना है कि मुफ्त राशन, कैश ट्रांसफर और स्वास्थ्य योजनाओं से गरीबी कम हुई है. लेकिन इसका मतलब यह भी है कि ये योजनाएं बंद होने पर गरीबी फिर बढ़ सकती है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह गरीबी का स्थायी समाधान नहीं, बल्कि लोगों को सरकारी मदद का आदी बनाने का तरीका है. आयरलैंड की कहावत, "मछली देना आसान है, मछली पकड़ना सिखाना मुश्किल," यहां सटीक बैठती है.
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