बिहार में साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. इसे लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन बिहार में फिर से सत्ता में लौटने का बड़ा दावा कर रहा है. इधर, अब तक चुनाव लड़वाने वाले चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर जनसुराज पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतर पड़े हैं. वहीं, कांग्रेस ने प्रदेश में बड़ा बदलाव करते हुए कन्हैया कुमार को मैदान में उतार दिया है, जो लगातार बिहार में घूम-घूमकर बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं.
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बिहार में जनसुराज पार्टी के सूत्रधार और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से इंडिया टुडे ग्रुप के Tak चैनल्स के मैनेजिंग एडिटर मिलिंद खांडेकर ने बिहार के राजनीतिक समीकरण, एनडीए की स्थिति और कांग्रेस के दावों पर विस्तार से बातचीत की. प्रस्तुत है इस इंटरव्यू का एक प्रमुख अंश...
एनडीए का पलड़ा भारी? क्या बोले पीके
प्रशांत जी, जब छह महीने में चुनाव होने वाले विधानसभा चुनाव हो तो आपको क्या लगता है? क्योंकि कन्वेंशनल सोच यह मानी जा रही है कि एनडीए का पलड़ा भारी है? क्योंकि लोकसभा में भी उनको अच्छी तादाद में सीटें मिली, उसके बाद बीजेपी देशभर में जितने भी राज्यों में चुनाव हुआ वहां विधानसभा चुनाव भी जीतती जा रही है.
इस पर प्रशांत किशोर ने जवाब देते हुए कहा- यह तीन बातें हैं... देखिए चुनाव को लेकर में एक बात तो आपको नत्थी के साथ लिखकर दे सकता हूं कि किसी भी हालत में नीतीश कुमार नवंबर के बाद मुख्यमंत्री नहीं रहेंगे. बिहार में नया मुख्यमंत्री बनेगा और इसके लिए कोई आपको सेफोलॉजिस्ट होने की जरूरत नहीं. कॉमन सेंस के हिसाब से देख लीजिए कि पहली बात तो एनडीए जीतकर आ रही है.
'बीते 20 साल में करीब 15 साल एनडीए की सरकार रही'
इस सवाल पर पीके ने कहा- बिल्कुल गलत बात है. 20 साल में करीब-करीब 15 साल एनडीए की सरकार रही है. बिहार में जो बदहाली है, जो परेशानी है, इसके बावजूद लोग वोट दे देंगे. एनडीए को ऐसा मानने वाले लोग बिहार को समझ नहीं रहे हैं या बिहार की जमीनी हकीकत से वाकिफ नहीं हैं? जो लोग ऐसा कहते हैं कि बिहार में वोट तो उन्हीं को पड़ेगा.
उनको याद दिलाना चाहता हूं कि अभी 2020 में जब कोविंड का मिस मैनेजमेंट बिहार में हुआ तो 15 बरस से सुशासन बाबू की जो छवि नीतीश कुमार ने बनाई थी, वह तीन महीने में ध्वस्त हो गई. और नीतीश जी 42 पर आए ही, भाजपा का स्ट्राइक रेट भी 60 पर चला गया. कई लोगों को ऐसा लगता है कि पिछले चुनाव में नीतीश जी को चिराग जी के लड़ने की वजह से झटका लगा है.
वह लोगों को कोई उन्होंने गहराई से अध्ययन नहीं किया. अब रिजल्ट को ध्यान में रखिए कि जब नीतीश जी और भाजपा साथ में चुनाव लड़े थे, 2020 से पहले 2010 में उस समय नीतीश और भाजपा की सरकार के गठबंधन के सामने लालू जी, कांग्रेस और रामविलास जी साथ में लड़ रहे थे. इसके बावजूद नीतीश जी और भाजपा गठबंधन को 206 सीट मिली थीं.
115 सीट आने में ही खराब हो गई हालत: PK
इस बार नीतीश जी और भाजपा के साथ-साथ दो और छोटे दल शैलेश जी और मांझी जी थे. सामने इस बार रामविलास पासवान जी उस गठबंधन में नहीं थे. लालू जी कमजोर हुए हैं और कांग्रेस भी इस मुकाबले कमजोर हुई है. वह नरेंद्र मोदी जी और अमित शाह जी जैसे लोगों की भी ताकत लगी. इसके बावजूद 115 सीट आने में उनकी हालत खराब हो गई.
इसलिए जो लोग यह समझते हैं कि बिहार में विकास मुद्दा नहीं है, गवर्नेंस मुद्दा नहीं है. मुझे लगता है कि वह बिहार के लोगों की समझ, राजनीतिक समझ और उनके वोट देने के तरीके को गहराई से नहीं समझते हैं. लोगों को ऐसा बाहर बैठकर लगता है कि बिहार में तो लालू नीतीश ही हैं. ऐसी बात नहीं है!
'बिहार की जनता मूर्ख नहीं है'
लालू जी जब गरीबों के नेता के तौर पर उभरे सामाजिक न्याय का नारा देकर आगे आए तो जनता ने 1995 में उन्हें पूर्ण बहुमत दिया. लेकिन उसी लालू जी का नाम जब चारा घोटाला में आ गया, जब उनके राज में लोगों को जंगलराज दिखने लगा. लोगों को तो लोग यह भूल गए हैं कि 1995 के बाद आज तक लालू जी कभी बिहार का नेतृत्व नहीं कर सके. और कभी उनकी पार्टी सत्ता में रही भी तो गठजोड़ में रही है. तो बिहार की जनता इतनी मुर्ख नहीं है.
इसी तरीके से नीतीश जी जिसको बिहार की जनता ने 117 सीट जिताया 2010 में, क्योंकि 2005 से 2010 तक नीतीश कुमार कुछ काम करते दिखे थे. भाजपा के स्ट्राइक रेट 90 था, 101 सीट लड़े थे और 90 सीट जीतकर आए थे. यह भाजपा और नीतीश कुमार का, नीतीश कुमार का स्ट्राइक रेट 40 हो गया. भाजपा के स्ट्राइक रेट 60 हो गया. गठबंधन दोनों का वही था. सामाजिक समीकरण वही था.
ऐसे में यह मान लेना कि बिहार में तो बस वैसे ही वोट पड़ता है. मतलब यह बिहार के लोगों की राजनीतिक समाजिक जो उनकी सोच है, उसको अंडरलाइन करना है. और कहीं न कहीं बिहार की जमीनी हकीकत को जो लोग बहुत गहराई से नहीं जानते हैं. उनकी बात क्योंकि आंकड़े यह नहीं बताते हैं परसेप्शन जरूर हो सकता है ऐसा.
पूरा इंटरव्यू यहां देखिए....
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