साप्ताहिक सभा: राम मंदिर के कार्यक्रम में न जाकर कांग्रेस का नफा है या नुकसान?

अभिषेक

• 03:02 AM • 14 Jan 2024

पिछले दिनों सोनिया गांधी ने पार्टी की एक मीटिंग बुलाई थी और उसमे ये कहा था कि, उन्हें राममंदिर जाने में कोई आपत्ति नहीं है. वैसे भी ये कांग्रेस के लिए ये अच्छा ही होगा

Congress

Congress

follow google news

Congress Stand on Ram Mandir: कांग्रेस ने अयोध्या में 22 जनवरी को होने वाले रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने का निमंत्रण ठुकरा दिया है. कांग्रेस का तर्क है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इसे अपना कार्यक्रम बना दिया है और इसपर राजनीति की जा रही है. कांग्रेस के इस फैसले के बाद इसे सही और गलत बताने वाले दो खेमे बन गए हैं. इस बार की न्यूज Tak की साप्ताहिक सभा में वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई और ‘Tak’ क्लस्टर के मैनेजिंग एडिटर मिलिंद खांडेकर ने इसी मुद्दे पर बात की है. आइए समझते हैं कि कांग्रेस के इस फैसले के मायने और इसके नफे नुकसान.

कांग्रेस के रामलला के प्राण प्रतिष्ठा में न जाने के फैसले के क्या मायने हैं?

राजदीप सरदेसाई: कांग्रेस के लिए राम मंदिर का मुद्दा ‘एक तरफ कुआं और दूसरी तरफ खाई’ वाली सिचूऐशन थी. अगर कांग्रेस इसमें शामिल होती, तो प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी के राजनीतिक इवेंट में मूकदर्शक बनकर रह जाती. यही वजह है कि पार्टी ने क्लियर स्टैन्ड लेते हुए नहीं जाने का फैसला लिया है. आपको बता दूं कि, आज से करीब दो हफ्ते पहले सोनिया गांधी ने पार्टी की एक मीटिंग बुलाई थी और उसमें ये कहा था कि, उन्हें राममंदिर जाने में कोई आपत्ति नहीं है. वैसे भी कांग्रेस के लिए ये अच्छा ही होगा, क्योंकि पार्टी की ये छवि बन गई है कि हिन्दू विरोधी हैं या मुसलमानों के प्रति ज्यादा झुकाव रखती है.

सोनिया गांधी की इस मीटिंग के बाद दक्षिण भारत के कुछ कांग्रेसी नेताओं और राहुल गांधी के कारीबियों ने आपसी सहमति बनाई और ये कहा कि, हमारे वहां जाने से कोई फायदा नहीं मिलेगा क्योंकि जो हिन्दुत्व के करीबी हैं उनका वोट बीजेपी को ही जाएगा. वैसे भी हम ‘न्याय यात्रा’ निकाल रहे हैं और हमारे मुद्दे कुछ और ही हैं. हमें अपने मुद्दों और यात्रा पर फोकस करना चाहिए. अगर हम राम मंदिर के इवेंट में शामिल होते है तो कहीं न कहीं हम ये मान रहे हैं कि, ये बीजेपी की जीत है, क्योंकि राम मंदिर बीजेपी का सालों से चुनावी मुद्दा रहा है. हम उनके पिच पर नहीं खेलना चाहते है, इसीलिए हमें उसमें शामिल नहीं होना चाहिए.

राजदीप सरदेसाई आगे कहते हैं कि, कांग्रेस ने बहुत दिनों के बाद एक क्लियर स्टैन्ड तो लिया है, यह गलत है या सही, ये तो बाद की बात है. क्योंकि हाल के कुछ सालों से कांग्रेस सॉफ्ट हिन्दुत्व की जो पॉलिटिक्स करती आ रही थी, लेकिन अब इससे स्पष्ट है कि वो बीजेपी के साथ उसके पिच पर राजनीति नहीं करना चाहती.

आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? पार्टी को फायदा होगा या नुकसान?

मिलिंद खांडेकर: कांग्रेस के इस फैसले पर चुनावी दृष्टिकोण से बात करें, तो हमारे पास दो सिचूऐशन हैं. एक लॉन्ग टर्म और दूसरा शॉटटर्म. अगर लंबे समय की बात करें, तो एक कहावत है कि ‘Everybody is dead in long term’ यानी एक दिन सब मर जाते हैं. अगर कांग्रेस 2024 का चुनाव हार जाती है तो उसके पास क्या ही बचता है, क्योंकि अगला चुनाव 2029 में होगा और अगले पांच साल फिर से उसके पास कुछ भी नहीं रहेगा.

रही बात शॉर्ट टर्म की तो इसमें मैं एक चीज कहना चाहूंगा कि, राहुल गांधी ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में मोहब्बत की दुकान खोलने या सेकुलरिज्म का स्टैन्ड लेने और नफरत को तोड़ने का काम करेंगे जैसी बातें कही थी. तब कांग्रेस ने पहली बार कोई ऐसा कोई स्टैन्ड लिया कि, वो एक विविधताओं वाले देश को एकसाथ जोड़ना चाहते हैं. ये बीजेपी के खिलाफ एक काउन्टर नैरेटिव था और अब जो कांग्रेस ने फैसला लिया है ये भी उसी लाइन को आगे बढ़ाता है, जिसमें वो क्लियर स्टैन्ड ले रहे हैं. अब ये देखने वाली बात होगी कि पार्टी इसपर बनी रहती है या नहीं. क्योंकि 2014 के बाद से पार्टी के अंदर से जितनी भी रिपोर्ट आई हैं उसमें ये कहा गया है कि, कांग्रेस की ये छवि बन गई है कि वो ‘एंटी हिन्दू पार्टी’ है.

इस पूरी बातचीत को आप यहां सुन और देख सकते हैं- 

    follow google newsfollow whatsapp