News Tak: बिहार विधानसभा में मुख्यमंत्री (सीएम) नीतीश कुमार पूर्व सीएम जीतनराम मांझी पर इतना भड़क गए की भाषायी मर्यादा टूट गईं. बिहार सरकार विधानसभा में आरक्षण को 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी करने का विधेयक पेश कर रही थी. इसी पर बहस के दौरान जीतनराम मांझी ने कह दिया कि डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि आरक्षण की हर 10 साल पर समीक्षा होनी चाहिए. इसपर नीतीश खूब भड़के और बोल गए कि इनको (मांझी) को मुख्यमंत्री बनाना मेरी मूर्खता थी. पर सवाल तो यह बनता है कि क्या आरक्षण की हर 10 साल पर समीक्षा करने का कोई नियम है? अंबेडकर ने क्या कहा था?
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पहले आपको बताते हैं मांझी का वह पूरा बयान जिसपर नीतीश भड़के. विधानसभा में हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) के नेता जीतनराम मांझी आरक्षण को बढ़ाने के लिए बिहार सरकार के लाए बिल पर अपनी बात रख रहे थे. मांझी ने कहा कि, ‘मुझे सरकार के जातिगत गणना पर भरोसा नहीं है. वो गणना ठीक से हुई ही नहीं है. लोग घर पर पहुंचे ही नहीं हैं. बस टेबल वर्क किया गया है. इसलिए इसके आधार पर कुछ और करते हैं, तो स्थिति वही होगी, जिसमें जिसको हक़ मिलना चाहिए, वो हक़ नहीं मिलता. उन्होंने आगे कहा कि, ‘बीआर आंबेडकर ने कहा था कि आरक्षण की हर 10 साल पर समीक्षा होनी चाहिए. लेकिन क्या कभी बिहार सरकार ने आरक्षण की समीक्षा की है’. मांझी ने आगे कहा, कौन नहीं चाहता है कि आरक्षण बढ़ना चाहिए, लेकिन आरक्षण आप सैद्धांतिक रूप में भले ही बढ़ा दीजिए, लेकिन धरातल पर क्या स्थिति है, इसके बारे में भी कोई मैकेनिज्म विकसित करना चाहिए. इससे कोई फ़ायदा नहीं होने वाला है’.
मांझी अभी बोल ही रहे थे कि नीतीश बीच में ही उठकर बोलने लगे. नीतीश ने कहा कि, ‘मैं मूर्ख था जो इस आदमी को मुख्यमंत्री बना दिया था. इनको कुछ पता नहीं है. ऐसे ही कुछ भी बोलता रहता है. इनके बोलने का कोई मतलब नहीं है.’ इस पूरी बयानबाजी को यहां नीचे देखा जा सकता है.
क्या 10 साल में आरक्षण को रिव्यू करने का कोई नियम है?
आरक्षण को लेकर 10 साल वाला दावा कई रूपों में सामने आता रहता है. एक दावा यह है कि आजादी के बाद आरक्षण सिर्फ 10 सालों के लिए था. दूसरा दावा खुद यही है कि अंबेडकर ने हर 10 साल पर आरक्षण रिव्यू करने को कहा था. न्यूज Tak ने मांझी की बात के संदर्भ में राजस्थान की जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर दिनेश गहलोत से बात की. उन्होंने बताया कि संविधान सभा में बहस के दौरान अंबेडकर ने लोकसभा और विधानसभा सीटों पर प्रतिनिधित्व के लिए दिए जाने वाले आरक्षण के संदर्भ में हर दस वर्ष पर समीक्षा की बात कही थी. प्रोफेसर गहलोत के मुताबिक, ‘बिहार में जो आरक्षण को बढ़ाने की बात हो रही है वो सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में कोटे को बढ़ाने के लिए हो रही है. जीतनराम मांझी का इस संदर्भ में अंबेडकर को जोड़ना बिल्कुल आप्रसंगिक है. अंबेडकर की बात सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में मिलने वाले आरक्षण से बिल्कुल नहीं जुड़ती है.’
तो फिर 10 साल में रिव्यू करने वाली बात क्या है?
देश की लोकसभा और विधानसभाओं में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए सीटें आरक्षित हैं. इसे हर 10 साल पर अगले 10 साल के लिए बढ़ा दिया जाता है. दिसंबर 2019 में एक संविधान संशोधन विधेयक की मदद से इसे 25 जनवरी 2030 तक के लिए बढ़ा दिया गया है. विधायिका में लागू इसी आरक्षण को हर 10 साल में रिव्यू करने की बात है. दिल्ली यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर और सामाजिक-जातिगत आधार पर आरक्षण से जुड़े मामलों के जानकार डॉक्टर लक्ष्मण यादव इसे थोड़ा और विस्तार से बताते हैं.
डॉक्टर लक्ष्मण यादव कहते हैं, ‘संविधान सभा में जब विधायिका में एससी एसटी को आरक्षण देने की बात आई तो कुछ आपत्तियां थीं. आपत्ति यह की आरक्षण कब तक दिया जाएगा. तब अंबेडकर और कुछ अन्य लोगों का मत था कि इसे 10 साल के लिए देते हैं. फिर इसका रिव्यू होगा. तब से लेकर आजतक हर 10 साल में केंद्र अमेंडमेंट करके इसे दस सालों के लिए बढ़ाता चला आ रहा है. नौकरियों और शिक्षा के आरक्षण में कहीं 10 साल के रिव्यू की बात नहीं है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘1992 में इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों और सरकारी शिक्षा में आरक्षण की अपर लिमिट 50 फीसदी तय की. फिर कहा कि आपको 10 साल में देखना चाहिए कि इसका क्या असर है. उस फैसले के बाद क्रीमी लेयर की बात आई और अब आरक्षण का रिव्यू नहीं होता है बल्कि क्रीमी लेयर का होता है.’ लक्ष्मण यादव कहते हैं कि संविधान में कहीं भी इस आरक्षण को 10 साल के लिए लागू करने या इसके हर 10 साल पर समीक्षा करने की बात नहीं है.
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