सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने मैरिटल रेप अपवाद का किया बचाव! क्या है ये मामला?

अभिषेक

04 Oct 2024 (अपडेटेड: Oct 4 2024 5:23 PM)

Marital Rape: केंद्र सरकार ने सुनवाई के दौरान ये तर्क दिया कि, मैरिटल रेप का मुद्दा कानूनी से अधिक एक सामाजिक चिंता का विषय है. इस मामले में कोई भी निर्णय लेने से पहले विभिन्न हितधारकों के साथ व्यापक चर्चा की आवश्यकता होती है.

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Marital Rape: सुप्रीम कोर्ट में मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में शामिल करने को लेकर कई याचिकाएं लगी हुई है. उन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई हुई. इस दौरान केंद्र सरकार ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की मांग करने वाली याचिकाओं का विरोध किया. केंद्र ने रेप पर मौजूदा कानूनों का समर्थन करते हुए कहा कि, पति और पत्नी के बीच यौन संबंध अपवाद के कानून को खत्म नहीं किया जाना चाहिए. इसके साथ ही केंद्र ने इस पर कई स्टेकहोल्डरों से विमर्श करने की बात कही. आइए आपको बताते हैं आखिर क्या है ये पूरा मामला और सरकार का क्या है रुख?

पहले जानिए क्या है पूरा मामला?

दिल्ली हाई कोर्ट ने पिछले दिनों भारतीय दंड संहिता(BNS) की धारा 375 के अपवाद- 2 की वैधता पर दिल्ली हाई कोर्ट के एकमत से फैसला नहीं दिया था. इसी पर सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर हुई जिसपर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. कार्यकर्ता रूथ मनोरमा सहित याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि, धारा 375 के अपवाद- 2 महिलाओं की सहमति, शारीरिक स्वायत्तता और गरिमा का उल्लंघन करता है. याचिकाकर्ताओं इसे हटाने के लिए याचिका लगाई थी. 

आपको बता दें कि, BNS की धारा 375 के अपवाद- 2 पतियों को विवाह के तहत रेप के आरोप से छूट देता है. इस मामले पर दिल्ली हाई कोर्ट ने विभाजित फैसला सुनाया था, जिसमें न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने इस प्रावधान को असंवैधानिक घोषित बताया था, जबकि न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने इसे बरकरार रखा था. 

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की इंट्री होने के बाद कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी थी, जिसमें अपनी पत्नी का यौन उत्पीड़न करने और उसे यौन दासी के रूप में रखने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार के आरोपों को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था. 

'कानूनी नहीं वरन सामाजिक चिंता का विषय है मैरिटल रेप'

केंद्र सरकार ने सुनवाई के दौरान ये तर्क दिया कि, मैरिटल रेप का मुद्दा कानूनी से अधिक एक सामाजिक चिंता का विषय है. इस मामले में कोई भी निर्णय लेने से पहले विभिन्न हितधारकों के साथ व्यापक चर्चा की आवश्यकता होती है. यौन पहलू पति और पत्नी के बीच संबंधों के कई पहलुओं में से एक है, जिस पर उनके विवाह की आधारशिला टिकी हुई है. इसमें तर्क दिया गया कि, भारत में विवाह को पारस्परिक दायित्वों की एक संस्था माना जाता है, जहां प्रतिज्ञाओं को अनुलंघनीय माना जाता है. हालांकि विवाह के भीतर महिलाओं की सहमति वैधानिक रूप से संरक्षित है, लेकिन इसे नियंत्रित करने वाले दंडात्मक प्रावधान अलग हैं. 

केंद्र ने तर्क दिया कि वैवाहिक दुर्व्यवहार के पीड़ितों के लिए मौजूदा कानूनों के तहत पर्याप्त कानूनी उपाय पहले से ही मौजूद हैं. आपराधिक कानून बना देने से विवाह संस्था अस्थिर हो सकती है. केंद्र सरकार अपने बयान में इस बात पर जोर दे रही थी कि, वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने का कोई भी निर्णय विधायिका से किया जाना चाहिए, न कि न्यायपालिका से, क्योंकि इसके दूरगामी सामाजिक परिणाम होंगे. 

पति-पत्नी की होती है एक-दूसरे से यौन अपेक्षाएं: केंद्र 

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर अपने जवाब में केंद्र ने कहा कि विवाह के बाद पति या पत्नी दोनों को एक-दूसरे से यौन संबंधों को लेकर अपेक्षाएं रहती है. हालांकि, केंद्र ने स्पष्ट किया कि अपेक्षाएं पति को अपनी पत्नी को उसकी इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करने या मजबूर करने का अधिकार नहीं देती हैं. 

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