हरिजन शब्द पर मायावती का गुस्सा नई बात नहीं, अंबेडकर भी गांधी पर हुए थे खफा! जानें पूरा किस्सा

अभिषेक

• 12:22 PM • 02 Oct 2024

Mayawati on Harijan: महात्मा गांधी दमित वर्गों को हिन्दू धर्म में ही रखते हुए धर्म में सुधार करने की बात कर रहे थे वहीं अंबेडकर उन्हें अलग से प्रतिनिधित्व देने की बात कह रहे थे. गांधी और अंबेडकर के बीच इसे लेकर जमकर बहस चली.

BSP chief Mayawati

BSP chief Mayawati

follow google news

Mayawati on Harijan: हरियाणा में 5 अक्टूबर को विधानसभा का चुनाव होना है. बीजेपी, कांग्रेस, जननायक जनता पार्टी, इंडियन नेशनल लोकदल(इनेलो), बहुजन समाज पार्टी और आजाद समाज पार्टी चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे है. उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती भी इनेलो के साथ गठबंधन कर के हरियाणा में जमीन तैयार करने में जुटी हुई हैं. इसी कड़ी में उन्होंने बीते दिन हरियाणा में एक चुनावी सभा कहा कि, जातिवाद को बढ़ावा देकर कुछ लोग संविधान का मखौल बना रहे है. बसपा सुप्रीमो ने दलितों के लिए 'हरिजन' शब्द के उपयोग पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई. हरिजन शब्द को लेकर उन्होंने अपने छात्र जीवन में दिल्ली यूनिवर्सिटी का दिलचस्प वाकया भी शेयर किया. 

वैसे 'हरिजन' शब्द पर मायावती की ये आपत्ति कोई नई बात नहीं है. दलित, अछूत और हरिजन जैसे शब्दों पर महात्मा गांधी, बी.आर. अम्बेडकर तक में मतभेद रहा है. मायावती के हालिया बयान के साथ आइए समझते हैं 'हरिजन' शब्द पर आखिर क्या है ऐतिहासिक विवाद?

पहले जानिए मायावती ने क्या कहा?

बसपा सुप्रीमो मायावती ने रैली के दौरान कहा कि, 'उन्हें बाबा साहेब के बारे में तो जानकारी है लेकिन सभी को ये पता होना चाहिए कि संविधान में अनुसूचित जाति(SC) और अनुसूचित जनजाति(ST) के लिए किस शब्द का इस्तेमाल किया गया है. मुझे याद है कि 1977 में जब मैं कानून की पढ़ाई कर रही थी, तब मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में एलएलबी प्रथम वर्ष की छात्रा थी. 1977 में जगजीवन राम को देश का प्रधानमंत्री बनाने के दावे पर उन्होंने जनता पार्टी को वोट दिया. पार्टी सत्ता में भी आई लेकिन उन्हें PM नहीं बनाया गया. तब पूरे देश में SC और ST के लोग बहुत नाराज और परेशान थे. 

उसी दौरान दिल्ली में 'जाति तोड़ो सम्मेलन' नामक एक 3 दिवसीय सम्मेलन आयोजित किया गया. युवाओं ने मुझे आमंत्रित किया जब मैं वहां बोलने गई. जनता पार्टी के सभी नेता बार-बार हरिजन कह रहे थे, मैंने उनसे कहा कि एक तरफ आप जाति व्यवस्था तोड़ने की बात कर रहे हैं और दूसरी तरफ आप हरिजन कह रहे हैं. उन्होंने कहा हरि का अर्थ है भगवान. हम भगवान की संतान हैं, तो क्या बाकी लोग शैतान की संतान हैं? इसके बाद जनता पार्टी के नेताओं ने माफी मांगी और कहा कि संविधान के मुताबिक आप SC, ST और ओबीसी कहें तो बेहतर होगा. 

महात्मा गांधी ने दमित वर्गों के उत्थान के लिए 'हरिजन' दिया था नाम 

हरिजन शब्द का व्यापक स्तर पर इस्तेमाल पहली बार महात्मा गांधी ने साल 1932 में किया. गांधी ने हिन्दू समाज के उन समुदायों के लिए 'हरिजन' शब्द का इस्तेमाल किया था जिन्हें सामाजिक रूप से बहिष्कृत माना जाता था. इन समुदायों के साथ ऊंची जाति के लोग छुआछूत का व्यवहार करते थे. महात्मा गांधी ने उत्पीड़ित जातियों को 'हरिजन' यानी 'भगवान के लोग' कह कर संबोधित किया. उन्होंने उनके उत्थान के लिए 1932 में हरिजन सेवक संघ की स्थापना की. भारतीय समाज में 'हरिजनों' के संकट को खत्म करने के लिए गांधी विचार ये था कि, हिंदू धर्म को भीतर से सुधारने की जरूरत है और हरिजनों को हिंदू सामाजिक व्यवस्था का हिस्सा बनाया जाना चाहिए. हालांकि महात्मा गांधी की इस विचार की कड़ी आलोचना हुई. 

अंबेडकर ने 'हरिजन' शब्द की कड़ी आलोचना करते हुए बताया एक छल

बी. आर. अंबेडकर ने अपनी किताब ‘जाति का विनाश’(Annihilation of Caste) में हिंदू सामाजिक व्यवस्था के भीतर अछूतों के उत्थान का सुझाव देने के लिए गांधी की कड़ी निंदा की है. उन्होंने कहा है कि, दमित वर्गों की समाज में वंचित स्थिति को हिंदू धर्म की सामाजिक व्यवस्था की ही देन माना जिसका एक अनिवार्य हिस्सा जाति व्यवस्था है. उन्होंने जाति व्यवस्था को दलित वर्गों के सामना किए जाने वाले संकट का मूल कारण बताया है. बी.आर. अंबेडकर ने कभी भी हरिजन शब्द का उपयोग नहीं किया था. वह 'अछूत' या 'दलित वर्ग' कहना पसंद करते थे, जिन्हें ब्रिटिश भारत में एक कानूनी श्रेणी में रखा गया था. हरिजन शब्द के अर्थ 'भगवान के बच्चे' से अंबेडकर को कड़ी आपत्ति थी. अंबेडकर ये मानना था कि, हरिजन शब्द गढ़कर एक तरीके का जाल बनाया जा रहा है जो अछूतों और दलितों के लिए घातक है. 

महात्मा गांधी दमित वर्गों को हिन्दू धर्म में ही रखते हुए धर्म में सुधार करने की बात कर रहे थे वहीं अंबेडकर उन्हें अलग से प्रतिनिधित्व देने की बात कह रहे थे. गांधी और अंबेडकर के बीच इसे लेकर जमकर बहस चली. यह बहस 1932 के पूना पैक्ट में अपने निष्कर्ष पर पहुंची जब गांधी की इच्छा के खिलाफ, दमित वर्गों के लिए चुनावी सीटों के आरक्षण पर आम सहमति बनी. 

    follow google newsfollow whatsapp