महाराष्ट्र में मुस्लिम समुदाया का क्या है इरादा? ये रिपोर्ट बता रही पूरा समीकरण

रूपक प्रियदर्शी

13 Nov 2024 (अपडेटेड: Nov 13 2024 4:27 PM)

Maharashtra Elections: मुसलमान ऐसा वोट बैंक है जिसके वोट चाहिए तो सबको लेकिन वोटों को लेकर कोई खींचतान करता दिखना नहीं चाहता. बीजेपी और शिवसेना नाम की पार्टियां तो बिलकुल नहीं.

सांकेतिक फोटो

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Maharashtra Elections: महाराष्ट्र के करीब एक करोड़ 30 लाख मुसलमान ऐसे हैं जिनको बीजेपी अपना भी नहीं पाती, कांग्रेस के साथ जाते हुए देख भी नहीं पाती. अगर अपनाना होता तो बंटेंगे तो कटेंगे या एक हैं तो सेफ हैं जैसे नारे मोदी, योगी नहीं लगाते. देवेंद्र फडणवीस को ये चिंता नहीं जताती कि वोट जिहाद हो रहा है. परवाह नहीं करने का नतीजा ये हुआ कि लोकसभा चुनाव में दिल खोलकर मुसलमानों ने एमवीए को जिता दिया. 

महाराष्ट्र में करीब 11-12 परसेंट या करीब एक करोड़ 30 लाख मुसलमान हैं. 288 में से 120 सीटें ऐसी मानी जाती हैं जहां मुसलमानों के वोटों से हार-जीत तय होती है. 60 सीटों पर 15 परसेंट, 38 सीटों पर 20 परसेंट, 9 सीटों पर 40 परसेंट से ज्यादा मुसलमान वोट माने जाते हैं. मुंबई की 36 सीटों पर मुसलमानों के वोट 25 परसेंट से ज्यादा माने जाते हैं. 

लोकसभा में हुआ नुकसान

CSDS ने लोकसभा चुनाव के बाद, विधानसभा चुनाव से पहले अक्टूबर में ये सर्वे किया कि फलां जाति, फलां समाज, फलां धर्म के लोग किसको वोट दे सकते हैं. लोकसभा में महायुति को 62 परसेंट मुसलमान वोटों का नुकसान हुआ था. ये वही चुनाव था जिसमें एमवीए की लहर चली, महायुति की बुरी हार हुई. CSDS के सर्वे में नोटिस करने वाली बात ये निकली कि महायुति को जितना नुकसान पहले हुआ उससे कम विधानसभा में हो सकता है. 

लोकसभा में 62 परसेंट का नुकसान हुआ. विधानसभा में घटकर नुकसान 48 परसेंट रह सकता है. जो महायुति का नुकसान है वही एमवीए का फायदा है मतलब 48 परसेंट मुसलमान एमबीए को वोट दे सकते हैं. CSDS-लोकनीति के सर्वे में एक डेटा और भी चौंकाने वाला निकला. सीएम की पसंद के सवाल पर उद्धव ठाकरे 52 परसेंट मुसलमानों की पसंद बने. एकनाथ शिंदे, फडणवीस टक्कर में कहीं हैं ही नहीं. हालांकि सर्वे में सीएम के विकल्प में किसी कांग्रेस नेता का नाम नहीं था. ये संभव हो कि इससे भी उद्धव ठाकरे मुसलमानों के फेवरेट बन रहे हों. 

मुसलमान किसकी तरफ?

मुसलमान ऐसा वोट बैंक है जिसके वोट चाहिए तो सबको लेकिन वोटों को लेकर कोई खींचतान करता दिखना नहीं चाहता. बीजेपी और शिवसेना नाम की पार्टियां तो बिलकुल नहीं. मुसलमान वोट दें तो ठीक वरना हम वोट पाने के लिए कुछ करेंगे नहीं. ट्रेडिशनली मुसलमानों के वोट कांग्रेस, एनसीपी को मिलते रहे हैं. पुराना वोट बैंक बनाए रखने के लिए कांग्रेस ने सबसे ज्यादा भाव दिया. 

6 बड़ी पार्टियों ने मिलकर सिर्फ 16 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे.  सबसे ज्यादा कांग्रेस ने 9 मुसलमान उम्मीदवार उतारे. शिवसेना यूबीटी ने किसी को नहीं, शरद पवार ने एक को चुना. मुस्लिम संगठनों ने सलाह दी थी कि कम से कम 25 मुसलमान उम्मीदवार उतारने चाहिए लेकिन एमवीए ने इतना भी रिस्क नहीं लिया. बीजेपी के रविशंकर प्रसाद दावा कर चुके हैं कि कांग्रेस ने All India Ulama Board से वादा किया है कि एमवीए की सरकार बनने पर मुसलमानों को 10 परसेंट रिजर्वेशन और आरएसएस पर बैन लगाएंगे.

पवार से ज्यादा मेहरबान अजित पवार रहे. बीजेपी, शिवसेना के साथ होने के बाद भी एनसीपी ने नवाब मलिक, सना मलिक, जीशान सिद्दीकी, हसन मुंश्रिफ समेत 4 मुसलमान उतारे हैं. बीजेपी, शिंदे शिवसेना और यूबीटी ऐसी पार्टियां हैं जिनकी हिंदुत्व वाली पॉलिटिक्स की मजबूरी है कि मुसलमानों को तरजीह न दी जाए. कांग्रेस को छोड़कर बड़ी पार्टियों ने मुसलमानों को टिकट देने में जोश नहीं दिखाया तो क्या करेंगे सवा करोड़ मुसलमान?  

किसके कितने मुसलमान उम्मीदवार? 

CONG     SSUBT    NCPSC    BJP     SS    NCP
 9                 0               1            0         1         4    
        

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और मुसलमान ने एक-दूसरे पर खूब ट्रस्ट किया. इसका फायदा शरद पवार और उद्धव ठाकरे को भी मिला. एमवीए ने 48 में से ऐसी 14 सीटें जीती जिसमें मुसलमानों ने जमकर वोट दिए. देवेंद्र फडणवीस ने इसी को वोट जिहाद का नाम दिया. 

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक लोकसभा चुनाव से पहले Marathi Muslim Seva Sangh समेत करीब 180 एनजीओ ने जी-तोड़ मेहनत की थी कि ज्यादा से ज्यादा मुसलमान वोटिंग करने पहुंचे. करीब 200 बैठकें करके सीएए, एनआरसी, यूसीसी, वक्फ बोर्ड बिल का डर दिखाया गया. कैंपेन का पॉजिटिव रिजल्ट ये निकला कि 2019 के 60 परसेंट के मुताबिक 15 परसेंट ज्यादा वोटिंग हुई. अकेले मुंबई में 9 लाख नए वोटर जुड़वाने का दावा किया गया.

और क्या विकल्प?

मुसलमानों के सामने कांग्रेस के अलावा विकल्प समाजवादी पार्टी और AIMIM भी विकल्प है लेकिन महाराष्ट्र लेवल पर नहीं. असदुदीन औवेसी महाराष्ट्र में भाई अकबरुद्दीन को लेकर दस्तक दे चुके हैं. उनकी आहत से एमवीए तो नहीं लेकिन देवेंद्र फडणवीस परेशान हुए हैं. 2019 में मुसलमानों के साथ दलित कॉम्बिनेशन करके AIMIM ने औरंगाबाद की सीट निकाली थी लेकिन 2024 में वो सीट भी जाती रही. समाजवादी पार्टी भी हर  चुनाव में हाजिरी लगा रही है तो मुसलमानों की बदौलत. फिर भी एमवीए ने सपा को अपने साथ नहीं लिया. आशंका बस इतनी है कि AIMIM, सपा जैसी पार्टियों के आने से मुसलमान वोटों का बिखराव होगा. नुकसान कांग्रेस और एमवीए को होगा. इसी में महायुति का फायदा है.

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