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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, नागरिकों को यह जानने का अधिकार है कि, राजनैतिक दलों के पास पैसा कहां से आता है और कहां जाता है. कोर्ट ने माना कि, गुमनाम चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार(RTI) और संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत मिले मौलिक अधिकार का उल्लंघन हैं. CJI ने कहा कि, राजनीतिक दलों के फंडिंग की जानकारी उजागर न करना इसको लाने के असल मकसद के विपरीत है.
सरकार चुनावी बॉन्ड को काले धन को रोकने का उपकरण बताती है, इस बात पर CJI ने कहा कि, काले धन को रोकने के लिए इलेक्ट्रोल बॉन्ड के अलावा और भी दूसरे कई तरीके है. क्योंकि राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले फंड के बारे में मतदाताओं को जानने का अधिकार है. फंडिंग के बारे में जानकारी होने से लोगों के लिए अपना मताधिकार इस्तेमाल करने में स्पष्टता मिलती है.
पार्टियों को चंदा देने वालों के नाम होंगे उजागर!
चुनावी बॉन्ड पर बड़ा एक्शन लेते हुए SC ने ये तक आदेश दे दिया कि, 12 अप्रैल 2019 से 6 मार्च 2024 तक राजनैतिक दलों को मिले चंदे की जानकारी SBI को तीन हफ्ते के भीतर सार्वजानिक करनी होगी. SBI को ये जानकारी इलेक्शन कमिशन को देनी होगी. पूरी जानकारी मिलने के एक हफ्ते यानी 13 मार्च तक इलेक्शन कमीशन को अपनी वेबसाइट पर उसकी पूरी जानकारी पब्लिश करनी होगी. SC ने यह भी कहा कि, जिन चुनावी बॉन्ड की वैधता अवधि अभी बची हुई है और राजनीतिक दलों ने उसे अभी तक भुनाया नहीं है, उन बॉन्डों को राजनीतिक दल बैंक को वापस करेंगे और उसका पैसा बैंक, बॉन्ड लेने वाले को वापस करेगा.
जानकारी के मुताबिक, चुनावी बॉन्ड स्कीम लागू होने के बाद से अबतक लगभग 16 हजार करोड़ रुपए के चुनावी बॉन्ड बेचे गए हैं. इन पैसों में से किस पार्टी को कितना चंदा मिला है इसकी जानकारी तो पहले से ही पब्लिक डोमेन में उपलब्ध है. पर ये नहीं पता चलता था कि चंदा किसने दिया है? SC के इस फैसले के बाद अब इस बात का भी पता चल पाएगा कि, किन-किन लोगों ने किस-किस पार्टी को कितना चंदा दिया है.
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