प्रणब सेन की कमेटी ने जनगणना को लेकर पूछ दिया ऐसा सवाल कि, सरकार ने कमेटी को ही कर दिया भंग

रूपक प्रियदर्शी

09 Sep 2024 (अपडेटेड: Sep 9 2024 4:33 PM)

Standing Committee on Statistics: कहा जा रहा है कि जातीय जनगणना करानी है या नहीं, इसी उधेड़बुन में फंसी सरकार ने सामान्य जनगणना का मामला टाला हुआ है. जब जनगणना पर इसी टालमटोल वाले रवैये को लेकर सवाल उठे तो सरकार ने सवाल उठाने वालों को बाहर कर दिया. 

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Standing Committee on Statistics: भारत सरकार सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय का काम होता है सामाजिक-आर्थिक आंकड़े जुटाना. मंत्रालय उन्हीं आंकड़ों के आधार पर सरकार की नीति निर्माण और उन्हें लागू करने के उपाय बताना. इसी काम को और अच्छे से करने के लिए अर्थशास्त्रियों की एक और टीम काम करती है जो स्टैंडिंग कमेटी ऑन स्टैटिस्टिक्स है. कभी देश के चीफ स्टैस्टिटिश्यन रह चुके प्रणब सेन इसके हेड होते थे जो अब नहीं रहे. वैसे हाल ही में उनका पूछा हुआ एक सवाल सरकार को इतना बुरा लगा कि सरकार ने उनकी पूरी टीम को ही खत्म कर दिया. 

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सांख्यिकी मंत्रालय और स्टैंडिंग कमेटी ऑन स्टैटिस्टिक्स चर्चा में इसलिए आ गया क्योंकि सरकार ने सन्नाटे में 14 सदस्यों की स्टैंडिंग कमेटी को भंग कर दी. खबर तब फैली जब हिंदू अखबार ने कमेटी भंग करने का खुलासा कर दिया. कमेटी भंग करने का लॉजिक ये दिया गया कि इस कमेटी का काम स्टीयरिंग कमेटी फॉर नेशनल सैंपल सर्वेज के साथ ओवरलैप हो रहा था. 

प्रणब सेन की कमेटी के जनगणना को लेकर सवाल से चिढ़ गई सरकार!

इस कमेटी भंग करने को लेकर सरकारी कम्युनिकेशन में ओवरलैपिंग की बात कही गई. हालांकि इसकी असली वजह कुछ और ही है. दरअसल सरकार को कमेटी के एक सवाल से एलर्जी हुई. स्टैंडिंग कमेटी में ये सवाल उठा कि 2021 में जो जनगणना होनी थी वो अब तक क्यों नहीं हुई. जुलाई 2023 में सरकार ने ही ये स्टैंडिंग कमेटी बनाई थी. इसका काम सरकार को ये सलाह देना था कि सर्वे का मेथड क्या हो? सैंपलिंग कैसे हो? अब नेशनल सैंपल सर्वेज की डीजी गीता सिंह राठौड़ ने ईमेल भेजकर स्टैंडिंग कमेटी भंग करने का एलान किया. सेन ने द हिंदू को बताया कि उन्हें कमेटी भंग करने का कोई कारण नहीं बताया गया. सिर्फ ईमेल मिला.

जनगणना कराना सरकार का रूटीन काम है जो हर 10 साल में होता है. कोविड के कारण 2021 वाली जनगणना टली तो आज तक टलती गई. अभी भी पता नहीं कि जनगणना होगी या नहीं, होगी तो कब होगी. जनगणना टलने के विवाद में जुड़ गया जातीय जनगणना का मुद्दा. राहुल गांधी 2 साल से अड़े हुए हैं कि देश में जातीय जनगणना होनी चाहिए. सरकार कितना भी मना करे लेकिन सरकार को जातीय जनगणना करानी पड़ेगी. करीब 2 हफ्ते पहले ऐसी रिपोर्ट आई थी कि सरकार जनगणना का इरादा बना रही है. अगली जनगणना होगी तो जातीय जनगणना के साथ होगी. हालांकि करीब 15 दिन पहले अमित शाह से पूछा गया लेकिन उन्होंने कुछ क्लियर बताने से मना कर दिया. 

जातीय जनगणना पर राहुल गांधी ने सरकार को घेर रखा है 

राहुल गांधी ने जातीय जनगणना का सवाल उठाकर सरकार की नींद हराम कर रखी है. सरकार अब तक राहुल की मांग की अनसुनी करती रही लेकिन राहुल गांधी के बोलने के बाद NDA की कई पार्टियों के नेता जैसे नीतीश कुमार, अनुप्रिया पटेल, चिराग पटेल ने भी जातीय जनगणना की मांग तेज की है. RSS ने भी जातीय जनगणना का समर्थन करने वाले बयान दिया. 

कहा जा रहा है कि जातीय जनगणना करानी है या नहीं, इसी उधेड़बुन में फंसी सरकार ने सामान्य जनगणना का मामला टाला हुआ है. जब जनगणना पर इसी टालमटोल वाले रवैये को लेकर सवाल उठे तो सरकार ने सवाल उठाने वालों को बाहर कर दिया. 

जनगणना के क्या है फायदे?

जनगणना राजनीतिक पार्टियों के कहीं ज्यादा सरकार के लिए जरूरी डेटा सोर्स है. जनगणना से ही मालूम पड़ता है कि आबादी कितनी है, परिवार कितने हैं, कौन कितना कमा रहा है, किसको सरकारी योजनाओं के लाभ की जरूरत है, किसको नहीं. ऐसे डेटा मिलने से ही सरकार की योजनाएं डिजाइन होती हैं. उनको लागू किया जाता है. 

2011 में आखिरी बार जनगणना हुई थी. 13 साल में देश कितना बदल गया, इसका कोई ऑफिशियल डेटा सरकार के पास ही नहीं है. जिन पर सरकार का कोप हुआ वो वही तो पूछ रहे थे कि जनगणना क्यों नहीं हो रही है. कांग्रेस ने इसी बात पर आपत्ति उठाई है. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा इस देरी के कारण कम से कम 10 करोड़ भारतीय राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत राशन समेत कई लाभ से वंचित हैं. 

साल 2014 से ही सरकार पर लगते रहे है आंकड़ों में छेड़छाड़ के आरोप 

2014 के बाद ये आरोप आम हो गए कि केंद्र सरकार आंकड़ों में छेड़छाड़ करके अर्थव्यवस्था की गोल्डन पिक्चर दिखा रही है. ये विवाद इतना तेज हुआ तब सरकार ने प्रणब सेन को जिम्मेदारी सौंपी. काम दिया कि उनके नेतृत्व में एक समिति आंकड़ों की क्वालिटी सुनिश्चित करेगी. उससे पहले भी 2007 में UPA सरकार ने प्रणब सेन को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी थी. पहली बार भारत के मुख्य सांख्यिकीविद् की पोस्ट बनाकर नेशनल स्टैस्टिकल सिस्टम का हेड बनाया. सेन पर सांख्यिकी मंत्रालय के सचिव की भी जिम्मेदारी थी. उससे भी पहले आठवीं, नौवीं और दसवीं पंचवर्षीय योजनाएं बनाने में भी प्रणब सेन ने रोल निभाया हुआ हैं. 

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