Vijay Factor: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस आज एक बार फिर चर्चा में है. राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी नए सिरे से अपनी रणनीति बनाने की कोशिश में जुटी है. अहमदाबाद में होने वाली कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) की विस्तारित बैठक और ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) की महाबैठक के जरिए पार्टी अपने भविष्य की दिशा तय करने की कोशिश कर रही है. लेकिन सवाल यह है कि क्या यह बैठक कांग्रेस को उस दोराहे से निकाल पाएगी, जहां वह पिछले कुछ सालों से खड़ी है?
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राहुल गांधी की नई कांग्रेस का सपना
राहुल गांधी लंबे समय से कांग्रेस को नए सिरे से गढ़ने की बात कहते आए हैं. उनकी योजना में युवाओं को 50% हिस्सेदारी देना, अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को पार्टी पदों में दो-तिहाई जगह देना शामिल है. इसके साथ ही वह चाहते हैं कि वरिष्ठ और बुजुर्ग नेता सलाहकार की भूमिका निभाएं, लेकिन रोजमर्रा के कामों में हस्तक्षेप न करें. राहुल गांधी की नजर में "बारात के घोड़े" और "रेस के घोड़े" में फर्क साफ है. लेकिन समस्या यह है कि वह उन नेताओं को स्पष्ट रूप से यह कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं, जो अब पार्टी के लिए बोझ बन चुके हैं.
चिंतन शिविरों का हाल: फैसले बने, अमल नहीं हुआ
पिछले कुछ सालों में कांग्रेस ने उदयपुर, रायपुर सहित कई जगहों पर चिंतन शिविर आयोजित किए. उदयपुर में 2022 में हुए शिविर में कई बड़े फैसले लिए गए थे- जैसे "एक व्यक्ति, एक पद", "एक परिवार, एक टिकट" और 50 साल से कम उम्र के नेताओं को 50% हिस्सेदारी. लेकिन इन फैसलों पर अमल नहीं हो सका. अब अहमदाबाद में होने वाली बैठक में सवाल उठ रहा है कि क्या पुराने संकल्पों को पूरा करने की जवाबदेही तय होगी या फिर नए वादों का ढेर लगेगा?
कांग्रेस की रणनीति पर सवाल
पार्टी के एक बड़े धड़े का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के हर फैसले की आलोचना करना ठीक नहीं है. कांग्रेस को ऐसे चुनिंदा मुद्दों पर फोकस करना चाहिए, जो जनता से सीधे जुड़े हों और लंबे समय तक लोगों के बीच चर्चा में रह सकें. मिसाल के तौर पर, बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दे, जो लोगों की जेब पर असर डालते हैं और जिन्हें चुनाव में भुनाया जा सकता है. लेकिन कुछ नेताओं का यह भी कहना है कि "संविधान बचाओ", "आरक्षण बचाओ" और "जातीय जनगणना" जैसे मुद्दे अब अपनी चमक खो चुके हैं. लोकसभा चुनाव में ये मुद्दे काम आए थे, लेकिन विधानसभा चुनावों में इनका असर कम दिखा. फिर भी राहुल गांधी इन पर जोर दे रहे हैं. सवाल यह है कि उन्हें यह बात कौन समझाए?
स्थानीय मुद्दों की अनदेखी
कांग्रेस के कई नेता मानते हैं कि विधानसभा चुनावों में स्थानीय मुद्दों और स्थानीय नेताओं को आगे बढ़ाना चाहिए. लेकिन ऐसा हो नहीं रहा. राहुल गांधी ने स्थानीय नेताओं को रोक तो नहीं रखा, फिर भी पार्टी में कंफ्यूजन की स्थिति बनी हुई है. कार्यकर्ताओं में निराशा बढ़ रही है. 4 जून 2024 को लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद जो उत्साह दिखा था, वह अब गायब हो चुका है. कार्यकर्ता फिर से यह मानने लगे हैं कि कांग्रेस का कुछ नहीं हो सकता.
डीसीसी को मजबूत करने की कोशिश
कांग्रेस ने अब जिला कांग्रेस समितियों (डीसीसी) को मजबूत करने का फैसला लिया है. अभी तक पार्टी में प्रदेश कांग्रेस समिति (पीसीसी) और मुख्यमंत्री ही सारा ध्यान ले जाते थे. लेकिन अब जिला अध्यक्षों को अहमियत दी जा रही है. इनका सीधा संपर्क केंद्रीय नेतृत्व से होगा और ये विधानसभा व लोकसभा चुनावों के लिए उम्मीदवारों की सिफारिश करेंगे. कांग्रेस 800 से ज्यादा डीसीसी बनाने की योजना पर काम कर रही है. लेकिन इसके लिए मजबूत और स्वतंत्र जिला अध्यक्षों की जरूरत है, जो स्थानीय प्रभावशाली नेताओं से मुक्त हों और आर्थिक रूप से सक्षम हों. सवाल यह है कि हर महीने लाखों रुपये का खर्च कहां से आएगा?
फंडिंग और खेमेबाजी का संकट
कांग्रेस को "अमीर नेताओं की गरीब पार्टी" कहा जाता है. बड़े नेता संपन्न हैं, लेकिन पार्टी के लिए खुलकर योगदान नहीं करते. कॉरपोरेट जगत से चंदा मिलना बंद हो गया है और आम लोग भी कांग्रेस से दूरी बनाए हुए हैं. इसके अलावा खेमेबाजी और धड़ेबाजी पार्टी की राह में सबसे बड़ी बाधा है. जब तक यह खत्म नहीं होगी, कांग्रेस जनता तक अपनी बात प्रभावी ढंग से नहीं पहुंचा पाएगी.
क्या है आगे की राह?
अहमदाबाद की बैठक का मकसद कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा भरना और पार्टी को एकजुट करना है. लेकिन बीजेपी ने जहां बूथ मैनेजमेंट और चुनाव जीतने का कोड डिकोड कर लिया है, वहीं राहुल गांधी अभी इस पहेली को सुलझा नहीं पाए हैं. जनता बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दों से परेशान है, लेकिन वोट देते वक्त उसकी पसंद बदल जाती है. ऐसे में कांग्रेस के लिए जरूरी है कि वह सही मुद्दों को सही तरीके से उठाए और संगठन को मजबूत करे.
अहमदाबाद से कोई नया फॉर्मूला निकलेगा या यह बैठक भी पुरानी बैठकों की तरह सिर्फ चर्चा तक सीमित रहेगी, यह देखना दिलचस्प होगा. कांग्रेस के सामने चुनौतियां बड़ी हैं, लेकिन राहुल गांधी के पास मौका भी कम नहीं है. अब गेंद उनके पाले में है.
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