Jammu-Kashmir Elections: 2024 के लोकसभा चुनाव में कश्मीर घाटी की बारामूला सीट ने चौंका देने वाला रिजल्ट दिया. इस सीट पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला चुनाव लड़ रहे थे. भाजपा ने घाटी की सीटों पर उम्मीदवार नहीं उतारा, जबकि कांग्रेस ने उमर अब्दुल्ला के समर्थन में अपना उम्मीदवार वापस ले लिया. हालांकि, पीडीपी, जेके पीपुल्स पार्टी के सज्जाद लोन और कई निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में थे.
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उमर अब्दुल्ला को हराया
इन निर्दलीय उम्मीदवारों में से एक थे शेख इंजीनियर रशीद. 2019 में उन्हें आतंकी फंडिंग के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. पिछले पांच सालों में उन्हें न तो जमानत मिली और न ही जेल से रिहाई. इसके बावजूद उन्होंने जेल से ही चुनाव लड़ा और 4 लाख 72 हजार से अधिक वोट पाकर, उमर अब्दुल्ला को 2 लाख वोटों से हराकर सांसद बन गए. उनके परिवार और समर्थकों ने उनके लिए जोर-शोर से प्रचार किया.
चुनाव के बीच मिल गई अंतरिम जमानत
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के बीच एक और घटना घटी. इंजीनियर रशीद को वोटिंग तक दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट से अंतरिम जमानत मिल गई, हालांकि यह जमानत उनके चुनाव के लिए नहीं, बल्कि उनकी अवामी इतिहाद पार्टी (एआईपी) के उम्मीदवारों के लिए प्रचार करने के लिए मिली. उन्हें चुनाव होते ही 3 अक्टूबर को सरेंडर करना होगा, जबकि चुनाव के नतीजे 8 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे.
इंजीनियर रशीद की जमानत से जम्मू-कश्मीर के चुनावी समीकरण में बड़ा बदलाव आया है. राज्य की विधानसभा में सिर्फ 90 सीटें हैं, जबकि बारामूला लोकसभा सीट का दायरा इतना बड़ा है कि इसमें 20 विधानसभा सीटें शामिल हैं. उमर अब्दुल्ला को भी संदेह है कि भाजपा ने छोटी पार्टियों और निर्दलीयों के साथ गठजोड़ किया है, जिसमें इंजीनियर रशीद भी शामिल हो सकते हैं.
राशिद के जेल से बाहर आने पर दिलचस्प हुआ चुनाव
बारामूला में मिली हार से उमर अब्दुल्ला को गहरा सदमा लगा, और उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया. हालांकि, कांग्रेस से नेशनल कॉन्फ्रेंस का गठबंधन होने के बाद उन्होंने अपना फैसला बदलते हुए चुनाव लड़ने का फैसला लिया. इस बीच, इंजीनियर रशीद ने एक और बड़ा कदम उठाते हुए अपने छोटे भाई खुर्शीद को अपनी पुरानी लंगेट सीट से चुनाव में उतारा. चुनाव के ऐन मौके पर इंजीनियर रशीद भी जेल से बाहर आ गए, जिससे चुनावी माहौल और भी दिलचस्प हो गया.
माना जा रहा है कि जिस तरह सिम्पैथी फैक्टर ने इंजीनियर रशीद को जीत दिलाई थी, उसी तरह यह फैक्टर उनके भाई खुर्शीद के लिए भी मददगार साबित हो सकता है. खुर्शीद ने चुनाव लड़ने के लिए अपनी सरकारी नौकरी भी छोड़ दी है. 2003 से सरकारी स्कूल में शिक्षक के पद पर कार्यरत खुर्शीद ने चुनाव लड़ने के लिए वीआरएस लिया है.
उमर अब्दुल्ला को अब यह एहसास हो गया है कि विधानसभा चुनाव भी आसान नहीं होने वाला है. उन्होंने लोकसभा में जो किया, वही खुर्शीद अब विधानसभा में करने की कोशिश करेंगे. उमर अब्दुल्ला ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है, जनता से सिर झुकाकर वोट मांग रहे हैं.
कौन हैं राशिद इंजिनियर?
शेख रशीद ने सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया और 10 साल तक जम्मू-कश्मीर प्रोजेक्ट्स कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन में इंजीनियर के रूप में काम किया. उन्हें उनकी डिग्री के कारण 'इंजीनियर रशीद' कहा जाता है. 2005 में उन्हें आतंकियों की मदद करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, लेकिन बाद में कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया. 2019 में दूसरी बार गिरफ्तार होने के बाद से वह अब तक जेल में हैं.
राजनीति में आने के बाद भी उन्होंने कोई पार्टी ज्वाइन नहीं की. 2008 में उन्होंने हंदवाड़ा की लंगेट सीट से पहला विधानसभा चुनाव निर्दलीय लड़कर जीता और 2014 में दूसरी बार विधायक बने. बीजेपी के साथ उनके रिश्ते हमेशा से तनावपूर्ण रहे हैं. 2015 में बीफ बैन के विरोध में आयोजित पार्टी को लेकर बीजेपी विधायकों ने विधानसभा में उनकी पिटाई कर दी थी.
UAPA के तहत केस दर्ज
2019 में एनआईए ने उन्हें आतंकी फंडिंग के आरोप में गिरफ्तार किया और उनके खिलाफ UAPA के तहत केस दर्ज किया. इस मामले में अन्य कश्मीरी नेताओं के साथ उनका नाम आया था. अब, पांच साल बाद पहली बार, इंजीनियर रशीद के लिए जेल के दरवाजे खुल रहे हैं. अगर उन्हें दोषी पाया गया और दो साल या उससे अधिक की सजा मिली, तो उनकी संसद सदस्यता खतरे में पड़ सकती है.
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