मनमोहन सरकार में विदेश मंत्री और फिर अपनी लिखी किताब के लिए बहुचर्चित रहे नटवर सिंह की कहानी

News Tak Desk

• 01:41 PM • 11 Aug 2024

नटवर सिंह का जन्म 16 मई 1929 में राजस्थान के भरतपुर जिले में हुआ था. उन्होंने 93 वर्ष की उम्र में गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में अंतिम सांस ली. वे कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में से एक थे. वे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में 2004-05 तक भारत के विदेश मंत्री थे.

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Natwar Singh: भारत के पूर्व विदेश मंत्री कुंवर नटवर सिंह का शनिवार रात को लंबी बीमारी के चलते निधन हो गया. नटवर सिंह ने 93 वर्ष की उम्र में गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में अंतिम सांस ली. वह कुछ हफ्तों से अस्पताल में भर्ती थें. उनका अंतिम संस्कार 12 अगस्त को लोधी रोड श्मशान घाट पर किया जाएगा. नटवर सिंह का भारतीय राजनीती के इतिहास के पन्नों में काफी योगदान रहा है. नटवर सिंह कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में से एक थे. वे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में 2004-05 तक भारत के विदेश मंत्री थे. उन्होंने पाकिस्तान में भारत के राजदूत के रूप में भी काम किया. नटवर सिंह को उनकी सेवा के लिए पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है. 

नटवर सिंह के निधन पर कई राजनेताओं ने अपना दुख व्यक्त किया है. PM मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक्स पर पोस्ट करते हुए शोक जताया है.

शुरुआती पढ़ाई

नटवर सिंह का जन्म 16 मई 1929 में राजस्थान के भरतपुर जिले में हुआ था. उनका जन्म एक हिंदू जाट परिवार में हुआ. उनके पिता का नाम गोविंद सिंह और मां का नाम प्रयाग कौर  था. उन्होंने मेयो कॉलेज, अजमेर और सिंधिया स्कूल, ग्वालियर में अपनी शुरुआती पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से डिग्री ली. बाद में उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के कॉर्पस क्रिस्टी कॉलेज में पढ़ाई की. 

राजनीतिक सफर

नटवर सिंह ने अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत 1953 में की थी. वे 1953 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुए और राजनयिक के तौर पर नटवर सिंह का करियर 31 साल लंबा रहा. वे पाकिस्तान, अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत रहे. जिसके बाद उन्होंने 1966 में इंदिरा गांधी के कार्यकाल में प्रधानमंत्री सचिवालय में नियुक्त किया गया. 1984 में नौकरी से इस्तीफा देकर कांग्रेस में शामिल हुए और उन्होने कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा जिसके बाद वह राजस्थान के भरतपुर से सांसद बनें. 

1984 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. नटवर सिंह ने अपने जीवन में कई पुस्तकें और संस्मरण लिखे. उनकी आत्मकथा 'वन लाइफ इज नॉट इनफ' काफी पॉपुलर है, जिसमें उन्होंने अपने जीवन और राजनीतिक अनुभवों के बारे में विस्तार से लिखा है.

नटवर सिंह 1985 में केंद्रीय राज्य मंत्री बने. उन्हें इस्पात, कोयला, खान और कृषि विभाग सौंपा गया था. 1986 में विदेश राज्य मंत्री बने और 1989 तक इस पद पर रहे जब तक कांग्रेस सत्ता में थी. उन्होंने 1989 के आम चुनावों में उत्तर प्रदेश की मथुरा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन वहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा. 

पार्टी छोड़ने के बाद फिर हुए थे कांग्रेस में शामिल

1991 में कांग्रेस सरकार में तत्कालीन PM नरसिम्हा राव के साथ मतभेद के कारण नटवर सिंह ने पार्टी छोड़ दी थी लेकिन 1998 में सोनिया गांधी ने कांग्रेस संभाली, जिसके बाद वे वापिस पार्टी में शामिल हो गए. उसके बाद 1998 में वे फिर एक बार भरतपुर से सांसद बनें, लेकिन 1999 में एक बार फिर चुनाव में हार गए.

2002 में राजस्थान से राज्यसभा के लिए चुने गए. जिसके बाद, 2004 में कांग्रेस की सरकार में तत्कालीन PM मनमोहन सिंह ने को नटवर को विदेश मंत्री की कमान सौंप दी थी. हालांकि 2005 में 'ऑयल फॉर फूड' घोटाले में उनका नाम आने के बाद उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा था. 2008 के मध्य में वे और उनके बेटे जगत सिंह बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए थे, लेकिन कुछ ही समय बाद उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया.

अपनी किताब में किए थे कई दावे

नटवर सिंह ने 2014 में अपनी किताब में पूर्व पीएम इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह के शासन के दौरान हुई राजनीति का जिक्र किया जिसमें कई दावे किए थे. जिसमें कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ नटवर सिंह के राजनीतिक संबंधों की बदलती तस्वीर को भी साफ करता है. किताब में नटवर सिंह के द्वारा वोल्कर रिपोर्ट और उनके इस्तीफे और राजनीतिक प्रस्तावों का जिक्र किया गया.

कांग्रेस ने नटवर सिंह द्वारा लगाए गए आरोपों को सिरे से खारिज किया था और उन पर आरोप लगाया कि उन्होंने अपनी किताब में तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है और "निराधार बातें लिखी हैं." उन्होंने कहा कि "किताब की बिक्री बढ़ाने के लिए इस तरह की सनसनी फैलाना" स्वीकार्य नहीं है. सोनिया गांधी ने भी किताब पर प्रतिक्रिया दी और किताब के सार को नकार दिया. 

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