इस जज के फैसले से तमिलनाडु से लेकर दिल्ली तक मचा बवाल, कौन हैं जस्टिस जेबी पारदीवाला?

Justice JB Pardiwala Controversy: राज्यपालों की भूमिका और अधिकारों को लेकर लंबे समय से जारी बहस को सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट दिशा दी है. जस्टिस पारदीवाला के फैसले ने केंद्र और राज्य के रिश्तों पर नई चर्चा छेड़ दी है.

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जस्टिस जेबी पारदीवाला. (फाइल फोटो)

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• 01:08 PM • 22 Apr 2025

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Justice JB Pardiwala Controversy: जब-जब देश में लगता है कि सिस्टम की गाड़ी पटरी से उतर रही है, तब-तब सुप्रीम कोर्ट अपनी ताकत दिखा देता है. संविधान और कानून की ताकत को याद दिलाते हुए सुप्रीम कोर्ट फिर से सुर्खियों में है. इस बार कहानी के केंद्र में हैं जस्टिस जेबी पारदीवाला, जिन्होंने अपने एक फैसले से सरकार और विपक्ष दोनों को हिलाकर रख दिया. यह फैसला तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में आया, जिसने जस्टिस पारदीवाला को विपक्ष का नया हीरो बना दिया और सरकार के लिए एक तगड़ा झटका साबित हुआ. तो आइए, जानते हैं इस चर्चित चेहरे की कहानी, जिसने बीजेपी सरकार से पंगा लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

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तमिलनाडु का तूफान और सुप्रीम कोर्ट की दस्तक

तमिलनाडु में डीएमके सरकार और राज्यपाल आरएन रवि के बीच तनातनी कोई नई बात नहीं थी. राज्यपाल विधानसभा से पास हुए बिलों को रोक रहे थे, अटका रहे थे, और सरकार की मुश्किलें बढ़ा रहे थे. आखिरकार, स्टालिन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 8 अप्रैल 2025 को जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने एक ऐसा फैसला सुनाया, जिसने न सिर्फ तमिलनाडु के राज्यपाल को, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति तक को एक सख्त संदेश दे दिया. कोर्ट ने साफ कर दिया कि राज्यपाल या राष्ट्रपति के पास विधेयकों पर "पॉकेट वीटो" का अधिकार नहीं है. यानी, ना तो बिल को स्वीकार करना और ना ही उसे पुनर्विचार के लिए वापस भेजना, बल्कि उसे लटकाए रखना गैर-कानूनी है. कोर्ट ने कहा कि कोई भी विधेयक तीन महीने से ज्यादा नहीं रोका जा सकता. इतना ही नहीं, तमिलनाडु के उन सभी बिलों को, जिन्हें राज्यपाल ने अटकाया था, कोर्ट ने पास कर दिया. साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि राज्यपाल को राज्य सरकार की सलाह माननी होगी.

इस फैसले ने विपक्ष को जश्न मनाने का मौका दे दिया, लेकिन सरकार की तरफ से माहौल गर्म हो गया. बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधते हुए कहा कि कोर्ट अपनी सीमा लांघ रहा है. उन्होंने तो यहां तक कह डाला कि अगर हर मामले में सुप्रीम कोर्ट ही फैसला करेगा, तो संसद और विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए. निशिकांत ने सुप्रीम कोर्ट को देश में "धार्मिक युद्ध" भड़काने का जिम्मेदार तक ठहरा दिया.

जस्टिस पारदीवाला: विपक्ष के हीरो, सरकार की टेंशन

जस्टिस जेबी पारदीवाला का यह फैसला गैर-बीजेपी शासित राज्यों के लिए किसी तोहफे से कम नहीं था. तमिलनाडु, केरल, पंजाब, बंगाल और तेलंगाना जैसे राज्यों में राज्यपालों की दखलंदाजी से परेशान सरकारों को इस फैसले से नई उम्मीद जगी है. खासकर केरल में, जहां सरकार और राज्यपाल के बीच भी वैसी ही जंग छिड़ी थी, मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने जस्टिस पारदीवाला की तारीफों के पुल बांधे. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि उनका केस भी जस्टिस पारदीवाला की बेंच को ही सौंपा जाए, क्योंकि मामला तमिलनाडु जैसा ही है.

जस्टिस पारदीवाला की इस "लक्ष्मण रेखा" ने ना सिर्फ तमिलनाडु के राज्यपाल को, बल्कि पूरे देश के राज्यपालों को उनके अधिकारों की सीमा याद दिला दी. लेकिन यह फैसला सिर्फ तमिलनाडु तक सीमित नहीं रहा. इसने केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच एक नई जंग की शुरुआत कर दी, जो कुछ साल पहले भी देखने को मिली थी.

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पुराना इतिहास, नया टकराव

2019 में मोदी सरकार के दोबारा सत्ता में आने के बाद से सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच तनाव की कहानी कोई नई नहीं है. उस वक्त कानून मंत्री किरेन रिजिजू और तत्कालीन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के बीच जजों की नियुक्ति को लेकर कॉलेजियम सिस्टम पर तकरार हुई थी. चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से चीफ जस्टिस को बाहर करने का मामला भी गर्म रहा. सुप्रीम कोर्ट का एक्टिविज्म सरकार को रास नहीं आ रहा था. लेकिन जब रिजिजू को कानून मंत्रालय से हटाया गया, तो तूफान थम सा गया. अब जस्टिस पारदीवाला के इस नए फैसले ने फिर से वही आग भड़का दी है. सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट की सुप्रीमसी पर सवाल उठाए जा रहे हैं. बीजेपी के कुछ नेताओं का मानना है कि कोर्ट अपनी हदें पार कर रहा है. लेकिन विपक्ष इसे संविधान और लोकतंत्र की जीत बता रहा है.

कौन हैं जस्टिस जेबी पारदीवाला?

जस्टिस जेबी पारदीवाला सिर्फ एक जज नहीं, बल्कि एक ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने कम वक्त में अपनी गहरी छाप छोड़ी है. 2022 में सुप्रीम कोर्ट में आने के बाद से उन्होंने कई बड़े फैसले दिए. वह उस संविधान पीठ का हिस्सा थे, जिसने EWS कोटे को वैध ठहराया. ज्ञानवापी मस्जिद सर्वे मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखने वाली बेंच में भी वह शामिल थे. इसके अलावा बीजेपी नेता नूपुर शर्मा को गिरफ्तारी से राहत देने वाली बेंच में भी उनकी मौजूदगी थी.

जस्टिस पारदीवाला का भविष्य भी सुनहरा है. वह 3 मई 2028 से 11 अगस्त 2030 तक चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रहेंगे. सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में वह चौथे पारसी जज होंगे, जो इस पद तक पहुंचेंगे. गुजरात के वलसाड और वडोदरा के एक प्रतिष्ठित वकील-जज परिवार से ताल्लुक रखने वाले पारदीवाला चौथी पीढ़ी के जज हैं. उनका जन्म मुंबई में हुआ, लेकिन लॉ की पढ़ाई वलसाड से पूरी की. 1989 में गुजरात हाईकोर्ट में वकील के तौर पर करियर शुरू किया और 2011 में हाईकोर्ट के एडिशनल जज बने. सुप्रीम कोर्ट में आने से पहले उन्होंने 1800 से ज्यादा फैसले दिए और 2200 से ज्यादा केसों में बेंच का हिस्सा रहे.

क्या है असली मसला?

जस्टिस पारदीवाला के फैसले ने यह साफ कर दिया कि संविधान और कानून से ऊपर कोई नहीं है. तमिलनाडु से जुड़े मामले में फैसला सुनाते हुए, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने स्पष्ट किया कि "राज्यपाल के पास कोई वीटो शक्ति नहीं है". राज्यपाल को एक दोस्त, दार्शनिक और राह दिखाने वाले की तरह होना चाहिए. आप संविधान की शपथ लेते हैं. आपको किसी राजनीतिक दल की तरफ से संचालित नहीं होना चाहिए. आपको उत्प्रेरक बनना चाहिए, अवरोधक नहीं. राज्यपाल को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोई बाधा पैदा न हो. लेकिन इसने एक नई बहस को जन्म दे दिया. क्या सुप्रीम कोर्ट अपनी सीमा से बाहर जा रहा है, जैसा कि बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे का कहना है? या फिर यह लोकतंत्र की रक्षा के लिए जरूरी है, जैसा कि विपक्ष का मानना है? यह जंग सिर्फ तमिलनाडु या केरल तक सीमित नहीं है. यह सवाल पूरे देश के सामने है कि क्या राज्यपालों को इतना अधिकार होना चाहिए कि वह चुनी हुई सरकारों के फैसलों को लटका सकें? और क्या सुप्रीम कोर्ट का यह एक्टिविज्म संविधान की रक्षा है या फिर एक नया टकराव पैदा कर रहा है?

जस्टिस जेबी पारदीवाला ने अपनी कलम से एक नई कहानी लिख दी है. अब देखना यह है कि यह कहानी सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच की जंग को और गहरा करती है या फिर संविधान की ताकत को और मजबूत करती है. फिलहाल, जस्टिस पारदीवाला विपक्ष के हीरो बने हुए हैं, और उनकी यह सुप्रीमसी चर्चा का विषय बनी रहेगी.

इनपुट: इंटर्न गितांशी शर्मा

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