अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने हालिया भाषण में भारत सहित कई देशों पर कड़े आर्थिक फैसलों की बात कही है. उन्होंने टैरिफ नीति में बड़े बदलावों की घोषणा की, जिससे भारत-अमेरिका व्यापारिक संबंधों पर गहरा असर पड़ सकता है.
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भारत पर ट्रंप की सख्ती
ट्रंप ने अपने भाषण में दावा किया कि भारत 100% तक टैरिफ लगाता है. इसी संदर्भ में उन्होंने 'रेसिप्रोकल टैक्स' की बात की, जिसका मतलब है कि अमेरिका भी उतना ही टैक्स लगाएगा जितना कोई देश उस पर लगाता है. उन्होंने यूरोप, चीन, दक्षिण कोरिया, मैक्सिको और कनाडा को भी ज्यादा टैरिफ लगाने वाला देश बताया और दो अप्रैल से इस नीति को लागू करने का संकेत दिया.
भारत-अमेरिका व्यापार पर असर
ट्रंप के इस फैसले से भारतीय निर्यातकों को अमेरिका में व्यापार करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है. प्रधानमंत्री मोदी द्वारा घोषित '500 बिलियन डॉलर व्यापार लक्ष्य' को इस कदम से झटका लग सकता है.
पनामा नहर समझौता खत्म!
पनामा और ग्रीनलैंड पर ट्रंप की योजनाअपने भाषण में ट्रंप ने पनामा नहर को लेकर पुराने समझौतों को खत्म करने की बात कही. उन्होंने इसे अमेरिका का अधिकार बताया और यहां सैन्य गतिविधियों को बढ़ाने की योजना का संकेत दिया. इसके अलावा, ग्रीनलैंड पर अमेरिका के कब्जे की इच्छा जताते हुए ट्रंप ने कहा कि वहां की जनता को अपने भविष्य का फैसला खुद करना चाहिए, लेकिन अगर वे अमेरिका के पक्ष में नहीं आए, तो 'हम अपने तरीके से देखेंगे'. इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं.
रूस-यूक्रेन युद्ध पर ट्रंप का नजरिया
ट्रंप ने रूस और यूक्रेन दोनों को युद्ध का समान रूप से जिम्मेदार बताया. उन्होंने कहा कि वह पुतिन से वार्ता करेंगे और देखेंगे कि रूस शांति वार्ता के लिए कितना तैयार है. ट्रंप के इस बयान से यह संकेत मिलता है कि वे रूस को अधिकतर कब्जे वाली जमीन बनाए रखने की छूट दे सकते हैं. अमेरिकी जनता के लिए लोकलुभावन वादेट्रंप ने इनकम टैक्स में कटौती, ओवरटाइम और टिप्स पर टैक्स खत्म करने, सोशल सिक्योरिटी पर भ्रष्टाचार रोकने और अंडे की कीमतें कम करने की बात कही. उन्होंने बाइडेन को अमेरिका का 'सबसे खराब राष्ट्रपति' करार देते हुए कहा कि उनकी नीतियां पूरी तरह असफल रही हैं.
भारत के लिए सबक और रणनीति
ट्रंप के इस भाषण से स्पष्ट है कि भारत को अमेरिका के साथ व्यापारिक रिश्तों को लेकर नई रणनीति बनानी होगी. भारतीय नीति निर्माताओं को इस बदलाव के लिए तैयार रहना चाहिए ताकि संभावित चुनौतियों का सामना किया जा सके.
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