राजदीप ने राज खोला तो छगन भुजबल को लेकर मच गई खलबली, जानें क्या है पूरा मामला

रूपक प्रियदर्शी

08 Nov 2024 (अपडेटेड: Nov 8 2024 7:53 PM)

ईडी के फंदे में छगन भुजबल फंसे थे, फिर छूट गए, ये सब सच है.  फंसे तब जब बीजेपी-शिवसेना की सरकार देवेंद्र फडणवीस चला रहे थे.

तस्वीर: इंडिया टुडे.

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महाराष्ट्र में चुनाव के बीच इंडिया टुडे के कंसल्टिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई की लिखी किताब द इलेक्शन दैट सरप्राइज़्ड इंडिया आई है. किताब में राजनीति के कई किस्से-कहानियां हैं. ऐसे ही किस्से कहानियों में जिक्र आया छगन भुजबल का. राजदीप ने किताब में दावा किया कि छगन भुजबल बीजेपी के करीब इसलिए आए ताकि ईडी के एक्शन से बच जाएं. छगन भुजबल ने पूरी ताकत लगा दी है दावे का खंडन करने में. लीगल एक्शन की धमकी दे रहे हैं, लेकिन जो होना था वो हो चुका. भुजबल और बीजेपी पर विरोधियों की चढ़ाई तेज है. बीजेपी की करप्शन धोने वाली वॉशिंग मशीन फिर वायरल है.

ईडी के फंदे में छगन भुजबल फंसे थे, फिर छूट गए, ये सब सच है.  फंसे तब जब बीजेपी-शिवसेना की सरकार देवेंद्र फडणवीस चला रहे थे. भुजबल एनसीपी में शरद पवार के साथ विपक्ष में हुआ करते थे. 2016 में ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग केस में छगन भुजबल को गिरफ्तार कर लिया. उनके बेटे समीर भुजबल, पंकज भुजबल भी ईडी जांच में फंसे. करीब 6 साल तक ईडी के फेर चलता रहा. 

2023 में अचानक ईडी ने छगन भुजबल का केस बंद कर दिया. कोर्ट में कहा कि फाइल गुम हो गई है. ये सारा डेवलपमेंट तब हुआ जब छगन शरद पवार को छोड़कर अजित पवार के साथ बीजेपी के पास आ चुके थे. शिंदे की सरकार में खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री बन चुके थे. ईडी की कड़ी जांच में ऐसे खेल कई बार हो चुके हैं. 

छगन भुजबल की राजनीति में बड़े उतार-चढ़ाव आए. बड़े-बड़ों से दोस्ती भी की, दुश्मनी भी निभाई. बार-बार जमीन पर गिरे लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में छगन भुजबल का रुतबा बना रहा. एकनाथ शिंदे ने तो बाला साहेब के जाने के बाद शिवसेना तोड़ी थी. छगन भुजबल ऐसे दिलेर थे, जिन्होंने बाला साहेब ठाकरे को बार-बार चैलेंज किया. दोनों के बीच बरसों तक बदलापुर चलता रहा. फिर भी छगन भुजबल का कलेजा इतना मजबूत कि गुणा-भाग करते हुए आज तक सरवाइव कर रहे हैं. 

बाला साहेब ठाकरे से की बगावत

छगन भुजबल ने राजनीति की शुरूआत बाला साहेब ठाकरे का शिवसैनिक बनकर की. उस दौर में जब न शिवसेना बड़ी थी, न बाल ठाकरे बाला साहेब कहलाते थे. उन्हीं के भाषण सुनते-सुनते सब्जी बेचने वाले भुजबल मुंबई में राज करने लगे. बाला साहेब ठाकरे ने छगन भुजबल को अपनाया, खूब बढाया. एक दिन ऐसा आया कि कि महाराष्ट्र का गृह मंत्री बनवा दिया. एक दिन ऐसा भी आया जब छगन भुजबल ने बाला साहेब के खिलाफ बगावत कर दी. फिर एक दिन ऐसा भी आया जब बाला साहेब के इशारे पर गृह मंत्री छगन भुजबल को मुंबई पुलिस गिरफ्तार करके ले गई. एक दिन ऐसा भी आया कि छगन भुजबल के इशारे पर बाला साहेब ठाकरे को मुंबई पुलिस गिरफ्तार करके ले गई.

दिक्कत मनोहर जोशी से भी थी

छगन भुजबल के लिए शिवसेना में बाला साहेब ठाकरे तो नेता थे, लेकिन दिक्कत मनोहर जोशी से थी. उनको लगता था कि मनोहर जोशी के कारण उनका हक मारा जा रहा है. 1990 के विधानसभा चुनाव के बाद सरकार कांग्रेस की बनी. शिवसेना मुख्य विपक्षी पार्टी बनी. तब उद्धव ठाकरे, राज ठाकरे कहीं थे नहीं. पार्टी में मनोहर जोशी, छगन भुजबल जैसे बड़े-बड़े नेता होते थे. बाला साहेब ने खुद कभी कोई पद नहीं लिया. विपक्ष के नेता बनने की रेस में छगन भुजबल मनोहर जोशी से हार गए. 

छगन भुजबल को मुंबई का मेयर बनाकर शांत किया. छगन भुजबल अपना डिमोशन समझ सुलगते रहे. 1991 में उन्होंने 18 शिवसेना विधायकों को लेकर बगावत कर दी. अलग शिवसेना बी नाम की पार्टी बना ली. शिवसेना के नंबर घटे तो विपक्षी पार्टी का दर्जा गया. मनोहर जोशी से विपक्ष के नेता का पद छीना. छगन भुजबल के कलेजे को ठंडक मिली लेकिन ठाकरे का बदला बाकी था. 

भुजबल के बंगले पर शिवसैनिकों ने किया हमला

1997 में छगन भुजबल के बंगले पर शिवसैनिकों ने हमला कर दिया. तब बाला साहेब ने भुजबल पर हमले को सही ठहराया. इसके बदल में छगन भुजबल ने मुंबई की राजनीति में जो किया वैसा करने की हिम्मत उनके विरोधियों ने भी नहीं की. 2000 में कांग्रेस एनसीपी सरकार में छगन भुजबल डिप्टी सीएम  बने तो उन्होंने बाला साहेब ठाकरे को गिरफ्तार कराकर अपने हर अपमान का बदला लिया. उसके बाद दोनों के बीच चल रहा युद्ध धीरे-धीरे शांत होने लगा. 

बीजेपी की वॉशिंग मशीन और भुजबल, अजीत

महाराष्ट्र की राजनीति में छगन भुजबल ने हर घाट का पानी पिया. शिवसेना से बगावत करके अपनी पार्टी बनाई. फिर कांग्रेस में चले गए.  शरद पवार ने 1999 में कांग्रेस से बगावत की तो एनसीपी में साथ हो लिए. यहां तक तो राजनीति थी. 2022 में जब एनसीपी टूटी तो राजनीति के लिए नहीं, राजनीतिक मजबूरियों के चलते अजित पवार के साथ हो लिए. अब हल्ला मचा कि कैसे बीजेपी की शरण में जाकर ईडी से बचे. भुजबल पहले भी ऐसे तेलगी स्टांप पेपर घोटाले में फंसे थे लेकिन क्लीन होकर वापसी की थी. 

वैसे भी बीजेपी वॉशिंग मशीन वाले हल्ले की बात आए दिन हो गई है. जो आरोप छगन भुजबल पर लगा है. वहीं आरोप उनके नेता अजित पवार पर भी लगता है. इससे अजित पवार का तो कुछ बिगड़ा नहीं. क्या पता छगन भुजबल का भी कुछ न बिगड़े.

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