"मदर ऑफ डेमोक्रेसी" बनाम जमीनी हकीकत: अमेरिका में खुलेआम प्रदर्शन, भारत में काली पट्टी बांधने पर सख्ती

अमेरिका में शांतिपूर्ण प्रदर्शन को लोकतंत्र की ताकत माना गया, वहीं भारत में काली पट्टी बांधने पर कार्रवाई हुई. क्या यही है "मदर ऑफ डेमोक्रेसी है"? हाल ही में मुजफ्फरनगर की घटना ने भारत के लोकतांत्रिक दावे पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.

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विजय विद्रोही

07 Apr 2025 (अपडेटेड: 07 Apr 2025, 12:30 PM)

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही भारत को "मदर ऑफ डेमोक्रेसी" कहकर संबोधित करते हों, लेकिन हाल के घटनाक्रम इस दावे पर सवाल उठा रहे हैं. एक ओर जहां दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन हो रहे हैं, वहीं भारत के मुजफ्फरनगर में मस्जिद में नमाजियों द्वारा काली पट्टी बांधकर किए गए मौन विरोध को प्रशासन ने सख्ती से कुचलने की कोशिश की है. इस विरोध में शामिल लोगों से दो-दो लाख रुपये का मुचलका भरने का आदेश जारी किया गया है.

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अमेरिका में ट्रम्प के खिलाफ सड़कों पर जनता

अमेरिका में ट्रम्प के दोबारा सत्ता में आने के महज 65 दिन के भीतर ही जनता सड़कों पर उतर आई है. वाशिंगटन से लेकर लंदन और पेरिस तक लोग "स्टॉप स्टील" और "हैंड्स ऑफ" जैसे नारे लगा रहे हैं. प्रदर्शनकारी ट्रम्प की टैरिफ नीतियों को "वसूली" करार दे रहे हैं, जिसके चलते आर्थिक मंदी का खतरा मंडरा रहा है. इन प्रदर्शनों में कोई हिंसा नहीं हुई, लोग हाथों में तख्तियां लेकर शांतिपूर्वक अपनी बात रख रहे हैं. ट्रम्प की नीतियों के खिलाफ रिपब्लिकन सीनेटरों ने भी बगावत की है, चार ने उनकी टैरिफ नीति के खिलाफ वोट दिया, जबकि एक सीनेटर वोटिंग से गायब रहा.

वाशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रम्प के टैरिफ से अमेरिकी नागरिकों को भारी नुकसान होगा. कंज्यूमर गुड्स की कीमतों में 40% तक की बढ़ोतरी हो सकती है, वहीं पेय पदार्थों और दालों पर भी टैक्स बढ़ेगा. सरकारी नौकरियों में छंटनी, पेंटागन और स्वास्थ्य विभाग में कटौती ने जनता के गुस्से को और भड़का दिया है. अंडे से लेकर केले तक की कीमतें बढ़ने की आशंका ने लोगों को सड़कों पर ला खड़ा किया है.

भारत में शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर सख्ती

दूसरी ओर, भारत के मुजफ्फरनगर में 28 मार्च को एक मस्जिद में लगभग 300 नमाजियों ने काले रिबन और पट्टियां बांधकर शांतिपूर्ण विरोध जताया. कोई नारेबाजी नहीं, कोई तख्तियां नहीं, कोई हथियार नहीं. लेकिन जिला प्रशासन ने इसे 'वैमनस्य फैलाने' का आधार मानते हुए प्रत्येक व्यक्ति से दो-दो लाख रुपये का मुचलका भरने का आदेश दिया. विजय विद्रोही ने सवाल उठाया, "अमेरिका में शांतिपूर्ण प्रदर्शन को लोकतंत्र का हिस्सा माना जाता है, लेकिन भारत में काली पट्टी बांधने पर इतनी सख्ती क्यों?"

लोकतंत्र पर सवाल

प्रधानमंत्री कहते हैं कि भारत लोकतंत्र की जननी है. क्या ये मजाक है, जुमला है या झूठ? आप फैसला करें. उन्होंने भारत में विपक्ष के दमन का भी जिक्र किया. संसद में विपक्षी नेताओं के माइक बंद करने, सड़कों पर धारा 144 लगाने और प्रदर्शनकारियों पर मुकदमे दर्ज करने जैसे कदमों को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया.

वैश्विक प्रतिक्रिया और भारत की चुप्पी

ट्रम्प की नीतियों के खिलाफ चीन, यूरोपियन यूनियन, फ्रांस, मेक्सिको और कनाडा ने सख्त रुख अपनाया है. लेकिन भारत ने न तो कोई जवाबी टैरिफ लगाया और न ही कोई कड़ा बयान दिया. सरकार का कहना है कि वह मध्य मार्ग निकालेगी और ट्रेड एग्रीमेंट पर काम करेगी.

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