'2025 में 225'... बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले NDA के लिए JDU के चुनावी नारे में कितना दम!

माहिरा गौहर

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बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर सरगर्मी तेज हो रही है.
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बिहार विधानसभा चुनाव से पहले बिहार में जेडीयू ने एक नया नारा दिया है

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जेडीयू और एनडीए मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ेंगे, ऐसे में नए नारे की चर्चा है

Bihar Election News: बिहार विधानसभा चुनाव में अभी साल भर का वक्त है. जेडीयू ने चुनाव से साल भर पहले ही नारा दे दिया है की "2025 से 30 फिर से नीतीश". जेडीयू का ये नारा चौंकाने वाला नहीं हैं, क्योंकि बीजेपी हो या जेडीयू लोकसभा 2024 के परिणाम के बाद दोनों ही पार्टियां खुल कर कहने लगी थी कि आगामी विधानसभा चुनाव, नीतीश की अगुवाई में ही लड़ी जाएगी. नीतीश की पार्टी जेडीयू ने पूरे एनडीए के लिए 2025 में 225 सीटों का लक्ष्य रखा है. 

अब सवाल ये उठता है कि 225 वाले नारे में कितना दम है? लोकसभा में एनडीए की तरफ से दिए गए 400 पार वाले नारे की तरह ये भी फ्लॉप साबित होगा या 2010 विधानसभा चुनाव का रिकॉर्ड तोड़ कर एनडीए बिहार में नया इतिहास रचेगी.

2025 में 225 का लक्ष्य एनडीए के लिए कितना मुश्किल

जेडीयू ने डबल इंजन की सरकार का तर्क देते हुए ये ऐलान किया की 2025 में एनडीए 225 सीटों का आंकड़ा छूने में कामयाब रहेगी. सोमवार 16 सितंबर को आहूत ‘सांगठनिक बैठक सह प्रशिक्षण शिविर में पार्टी के तमाम नेताओं ने यह बात कही. साल 2010 के विधानसभा चुनाव में एनडीए ने 206 सीटें जीत कर अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल की थी. उस वक्त जेडीयू को 115 और बीजेपी को 91 सीटें आईं थी. उसकी तुलना वर्तमान से की जाए तो दोनों में 15 वर्षों का अंतर है. इन 15 वर्षों में काफी कुछ बदल चुका है. 

'नीतीश को जब मिली विकास पुरुष की उपाधि'

2005 में जब पहली बार नीतीश कुमार की सरकार आई और फिर 2010 में भी, वो समय नीतीश का सबसे स्वर्णिम काल था. नीतीश का काम, उनका अंदाज़ और उनकी निष्पक्षता बिहार की जनता के सर चढ़ कर बोलती थी. ये वही समय था जब नीतीश को 'विकास पुरुष' की उपाधि भी दी गई थी. नीतीश ने जंगल राज के नाम पर भारी समर्थन इकट्ठा कर लिया था. लालू यादव का 1990 से लेकर 2005 तक का  शासन काल खत्म हुआ था, बिहार में बदलाव के लिए जनता नीतीश को फिर सत्ता सौंपना चाहती थी, लेकिन बीते 15 सालों में बहुत कुछ बदल गया है. दल- बदल नीतियों की वजह से जनता का विश्वास नीतीश कुमार से उठने लगा है. 

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नीतीश भले ही अब भी सत्ता के सम्राट हों, पर ये बात भी किसी से छिपी नहीं है की जेडीयू ने गुज़रते सालों और चुनावों के साथ हर साल अपनी सीटें गंवाई हैं. तेजस्वी यादव भी जंगल राज की छवि को साफ करने में बहुत हद तक कामयाब रहे हैं. ऐसे में 2025 में 225 का आंकड़ा फिलहाल खयाली बुलबुला है.

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लोकसभा के आधार पर 177 सीटों पर आगे रहेगी NDA!

वर्तमान स्थिति पर नज़र डालें तो बेशक एनडीए गठबंधन से ज़्यादा मज़बूत दिखाई देती है. एनडीए के सभी घटक दल वोट बैंक के साथ हैं. लोकसभा में जेडीयू ने 16 में से 12 सीटों पर जीत हासिल की और बीजेपी ने 17 में 12 वहीं लोजपा (रामविलास) का स्ट्राइक रेट 100 प्रतिशत रहा. जीतन राम मांझी ने भी अपनी एक सीट का मान रख लिया. हालांकि उपेंद्र कुशवाहा पीछे रह गए लेकिन कुल मिलाकर एनडीए ने अच्छा प्रदर्शन किया. लोकसभा के आधार पर देखा जाए तो 177 विधानसभा सीटों पर NDA आगे रहेगी जबकि महागठबंधन 66 सीटों पर आगे रहेगी.

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NDA की जीत में बाधा बन सकते है तीन "S"

लोकसभा 2024 में जबरदस्त प्रदर्शन के बाद भले ही नीतीश समेत एनडीए के तमाम घटक दलों का जोश हाई है, पर कुछ मुद्दे इनके रास्ते का रोड़ा बन सकते हैं. अगर वक्त रहते तीन "S" पर ध्यान नहीं दिया गया तो नीतीश को मुख्यमंत्री की कुर्सी खाली भी करनी पड़ सकती है. पहला मुद्दा जमीन सर्वे का "S" दूसरा स्मार्ट मीटर का "S" और तीसरा शराब बंदी का "S" ये तीनों वर्तमान में बिहार के ऐसे ज्वलंत मुद्दे हैं, जिनका निपटारा वक्त रहते नहीं हुआ तो नीतीश सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी. नीतीश सरकार को जनता को विश्वास दिलाना होगा कि ये नीति जनता के काम की है और उससे भी ज़्यादा ज़रूरी ये है की नीतियों को सही तरीके से ज़मीन पर उतारने के लिए बचे हुए महीनों में इसपर जमकर काम करना होगा.

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