110 साल के संत सियाराम बाबा के निधन की खबर से मचा हड़कंप! फिर सामने आई ये पूरी सच्चाई
110-Year-Old Siyaram Baba: बाबा के स्वास्थ्य खराब होने और उनके निधन की खबर ने उनके फॉलोवर्स को चिंता में डाल दिया. बता दें कि निमोनिया की शिकायत के चलते प्रशासनिक अधिकारियों और जिले के डॉक्टरों ने लगातार उनकी स्थिति पर नजर रखी. मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भी फोन पर उनका हालचाल जाना.
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न्यूज़ हाइलाइट्स
सियाराम बाबा के निधन की खबरों ने उनके फॉलोवर्स को चिंता में डाल दिया.
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भी फोन पर सियाराम बाबा हालचाल लिया है
मध्यप्रदेश के खरगोन जिले में नर्मदा नदी के किनारे बसे भट्टियान गांव के आश्रम में निवासरत संत सियाराम बाबा के निधन की खबर ने हड़कंप मचा दिया. यहां तक कि बाबा के स्वास्थ्य का हाल चाल जानने के लिए सीएम मोहन यादव तक को फोन करना पड़ा. हालांकि ये खबर झूठी ही निकली और बाबा ने आज सुबह बिस्कुट और चाय का नाश्ता किया.
बता दें कि सियाराम बाबा आज प्रदेश में श्रद्धा और आस्था के प्रतीक बन चुके हैं. 110 वर्ष की आयु में भी उनकी ऊर्जा, तप और मानव सेवा के प्रति समर्पण अनुकरणीय है. अपनी सादगी और त्यागमयी जीवन शैली के लिए प्रसिद्ध बाबा को क्षेत्र में "दानी बाबा" और "10 रुपये दानी बाबा" के नाम से भी जाना जाता है.
बाबा के स्वास्थ्य खराब होने और निधन की खबरों ने उनके फॉलोवर्स को चिंता में डाल दिया. पूरे प्रदेश और देश में उन्हें लेकर चर्चा होने लगी. लोग शोक भी मनाने लगे. बता दें कि निमोनिया की शिकायत के चलते प्रशासनिक अधिकारियों और जिले के डॉक्टरों ने लगातार उनकी स्थिति पर नजर रखी. मुख्यमंत्री मोहन यादव ने भी फोन पर उनका हालचाल जाना. इस दौरान सोशल मीडिया पर बाबा की स्वास्थ्य स्थिति को लेकर कई तरह की बातें होती रहीं, लेकिन उनके सेवक और अनुयायी बताते हैं कि बाबा अब स्वस्थ हैं और अपने आश्रम में आराम कर रहे हैं.
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कैसे पकड़ी अध्यात्म की राह
खरगोन जिले के एक साधारण किसान परिवार में जन्मे संत सियाराम बाबा का बचपन से ही अध्यात्म की ओर रुझान था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई, लेकिन कक्षा 7-8 के बाद उन्होंने शिक्षा छोड़ दी और अध्यात्म की राह पकड़ी. एक संत के संपर्क में आने के बाद वे वैरागी हो गए और हिमालय की यात्रा पर निकल गए.
हिमालय में कुछ वर्षों की तपस्या के बाद वे वापस मध्यप्रदेश लौटे और नर्मदा किनारे भट्टियान गांव में स्थायी रूप से बस गए. यहां उन्होंने रामायण का पाठ और हनुमान भक्ति को अपने जीवन का आधार बनाया. कहा जाता है कि उन्होंने 12 वर्षों तक मौन व्रत रखा और 10 वर्षों तक एक पैर पर खड़े रहकर तपस्या की. इस कठोर साधना के कारण उनकी ख्याति देश-विदेश तक फैल गई.
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बाबा के भक्तों का कहना है कि उनकी साधना और तपस्या के चलते उनमें चमत्कारी शक्तियां हैं. वे अपने अनुयायियों को जीवन के सही मूल्यों का ज्ञान कराते हैं और आध्यात्मिक मार्गदर्शन देते हैं. उनकी बातों से प्रेरित होकर लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं.
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ये पूरी वीडियो रिपोर्ट...
"दानी बाबा" की अनूठी पहचान
सियाराम बाबा की प्रसिद्धि उनके सेवा कार्यों और दान के लिए भी है. नर्मदा किनारे के घाटों के विकास के लिए उन्होंने दो करोड़ रुपये की राशि दान की. इतना ही नहीं, बाबा के आश्रम में केवल 10 रुपये का दान लिया जाता है, और इससे अधिक की राशि लौटा दी जाती है. यही कारण है कि उन्हें "10 रुपये दानी बाबा" कहा जाता है.
संत सियाराम बाबा का जीवन सादगी का प्रतीक है. किसी भी मौसम में वे केवल एक लंगोट में ही तप और साधना करते हैं. उनका शरीर इस जीवनशैली का अभ्यस्त हो चुका है. अपने भोजन के लिए वे किसी पर निर्भर नहीं रहते; यहां तक कि अपना भोजन स्वयं पकाते हैं. कई बार वे केवल फलाहार पर ही जीवित रहते हैं.
आस्था का केंद्र बना आश्रम
सियाराम बाबा का आश्रम अब एक बड़ा आध्यात्मिक केंद्र बन गया है. यहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु बाबा का आशीर्वाद लेने आते हैं. बाबा का व्यक्तित्व और उनकी तपस्या लोगों को प्रेरणा देती है. उनके अनुयायियों के लिए वे न केवल एक आध्यात्मिक गुरु हैं, बल्कि जीवन के हर पहलू में सादगी और सेवा का उदाहरण भी हैं.
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