'जस्टिस इज ड्यू...' ऐसा कौन सा कानून जिससे लड़ते-लड़ते हार गए अतुल सुभाष?

रूपक प्रियदर्शी

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Atul Subhash case.
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Atul Subhash: 2005 में 498A नाम का कानून शादी के बाद महिलाओं की हिफाजत के लिए बना. मूल मकसद ये था कि दहेज के लिए महिला को ससुराल में परेशान न किया जाए. अब इसी कानून को लेकर ये चिंता हो रही है कि कैसे पुरुषों के विनाश का कारण बन रहा है. 498A भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी में हुआ करता था. भारतीय न्याय संहिता यानी बीएनएस में वही कानून धारा 85 और 86 हो गया. कानून और प्रावधानों में कोई बदलाव नहीं हुआ. आरोप लग रहे हैं कि कुछ शादीशुदा महिलाएं पति और ससुराल वालों को आपराधिक केस में फंसाने के लिए mass destruction weapon की तरह इस्तेमाल कर रही हैं.

498A फिर चर्चा में आया

बैंगलोर के एआई इंजीनियर अतुल सुभाष के खुलासे के बाद फिर से 498A चर्चा में है. आरोप लगे हैं कि पत्नी निकिता सिंघानिया, ससुराल वालों और जौनपुर की फैमिली कोर्ट की जज रीता कौशिक से तंग आकर अतुल सुभाष ने भरी जवानी में जान दे दी. हैरेसमेंट पर हैरेसमेंट, तारीख पर तारीख, घूस पर घूस-अतुल सुभाष ने जान देने से पहले 80 मिनट का जो वीडियो बनाया, 24 पन्नों में जो आपबीती लिखी उससे पूरा देश सिहर उठा. Justice is Due यानी इंसाफ बाकी है प्रिटेंट टीशर्ट पहनकर अतुल ने एलानिया मौत को गले लगा लिया. 

अतुल सुभाष और निकिता का घरेलू कलह घरेलू हिंसा का आपराधिक केस बनकर जौनपुर की फैमिली कोर्ट में पहुंच गया था. जज रीता कौशिक केस की सुनवाई कर रही थीं. जिस दिन अतुल सुभाष के  दर्दनाक कहानी को देश ने जाना उसी दिन सुप्रीम कोर्ट में 498A यानी घरेलू हिंसा कानून को लेकर बात हो रही थी. जस्टिस बीएस नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच दारा लक्ष्मी नारायण वर्सेज तेलंगाना केस सुन रही थीं. महिला ने एक  पति, सास-ससुर पर दहेज उत्पीड़न का केस लगाया था. महिला ने केस तब लगाया जब पति ने तलाक मांगा था. तेलंगाना हाईकोर्ट ने केस खारिज करने से मना किया तब जाकर सुप्रीम कोर्ट तक मामला पहुंचा.

इसी केस की सुनवाई करते हुए जस्टिस बीएस नागरत्ना और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कहा कि 498A पत्नी और उसके परिवार वालों के लिए बदला लेने का हथियार बन गई है. कभी-कभी पत्नी की अनुचित मांगों को पूरा करने के लिए पति और उसके परिवार के खिलाफ आईपीसी की धारा 498ए का सहारा लिया जाता है. बेंच ने कहा कि हम एक पल के लिए भी ये नहीं कह रहे हैं कि 498ए के तहत क्रूरता झेलने वाली किसी भी महिला को चुप रहना चाहिए और शिकायत करने या कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू करने से खुद को रोकना चाहिए. हम सिर्फ ये कह रहे हैं कि ऐसे मामलों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए. 

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498A का हो रहा दुरुपयोग?

सुप्रीम कोर्ट की इस बेंच या किसी कोर्ट ने पहली बार नहीं कहा कि 498A का दुरुपयोग हो रहा है. हर महीने किसी न किसी केस को लेकर 498A के दुरुपयोग को लेकर सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट अलर्ट करते रहे. सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने ही घरेलू हिंसा कानून और 498A को सबसे ज्यादा दुरुपयोग किए जाने वाले कानून बताया था. अगस्त में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि  दादा-दादी और बिस्तर पर पड़े लोगों को भी फंसाया जा रहा है. मई में केरल हाईकोर्ट ने कहा था कि पत्नियां अक्सर बदला लेने के लिए पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ ऐसे मामले दर्ज करवा देती हैं.  

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कानून में बदलाव से क्या फर्क पड़ा?

मई में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कानून में बदलाव के लिए कहा था लेकिन कुछ हुआ नहीं.  कानून जस का तस आईपीसी से भारतीय न्याय संहिता में कन्वर्ट हो गया. सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर अपने लेवल पर कुछ करेक्शन किए. 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने 498A का दुरुपयोग रोकने के लिए तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. कंडिशन थी कि जांच-पड़ताल के बाद ही पुलिस गिरफ्तारी की कार्रवाई कर सकती है.  2022 में कोर्ट ने रुलिंग दी कि पीड़ित महिला को बताना होगा कि किस समय और किस दिन उसके साथ पति और उसके ससुराल वालों ने किस तरह की क्रूरता की है. केवल ये कह देने से कि उसके साथ क्रूरता हुई है, इससे धारा 498A का मामला नहीं बनता.

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1983 में घरेलू हिंसा का कानून बना था. घर के अंदर होने वाली हिंसा से बचाने के बने इस कानून में मां, बहन, पत्नी, बेटी, विधवा, लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला को भी शामिल किया. महिलाओं को अधिकार मिले तो शारीरिक, मानसिक, मौखिक, भावनात्मक, आर्थिक, यौन हिंसा हुई तो घरेलू हिंसा कानून के तहत शिकायत कर सकती हैं. महिला पति के साथ-साथ सास-ससुर, ननद, देवर के खिलाफ भी शिकायत कर सकती है. कानून कहता है कि किसी शादीशुदा महिला पर उसके पति या उसके ससुराल वालों ने क्रूरता की तो अपराध माना जाएगा. महिला से मारपीट शारीरिक क्रूरता, ताने मारना, तंग करना मानसिक क्रूरता, पैसे, संपत्ति मांगना भी क्रूरता है. 

कानून बन गया कि महिला ही पीड़ित मानी जाएगी. पुरुषों के पास इतना अधिकार भी नहीं रहा कि वो इस कानून के तहत किसी महिला के खिलाफ शिकायत कर सके. अगर पत्नी पति के साथ मारपीट, टॉर्चर करे तो वो घरेलू हिंसा नहीं मानी जाएगी. राहत बस इतनी कि 498A की शिकायत झूठी साबित हुई तो आरोपी मानहानि का दावा कर सकता है. 

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कानून बना पुरुषों का दुश्मन!

महिलाओं को मिले यही असीमित अधिकार पुरुषों के विनाश का कारण बनने लगे जो अब सामाजिक, लीगल हर एंगल से भीषण समस्या बने हैं. इतने भीषण कानून से पति  या ससुराल वाले या तो जेल में डाले जाते हैं या केस चलता रहता है. ऐसे केसेस का कन्वीक्शन रेट बहुत कम रहा है.  ncrcb डेटा के मुताबिक पिछले 6-7 साल में सालाना दोषसिद्धि 13 से 18 परसेंट के बीच रही.

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