17 oct 2024
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सुप्रीम कोर्ट की जज लाइब्रेरी में न्याय की देवी की नई प्रतिमा स्थापित की गई है, जिसमें मुख्य बदलाव यह है कि अब उसकी आंखों पर पट्टी नहीं है. हाथों में तलवार की जगह संविधान है.
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पुरानी प्रतिमा में आंखों पर पट्टी बंधी थी, जो समानता का प्रतीक थी, एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में तलवार थी. नई मूर्ति में आंखों से पट्टी हटा दी गई है, हाथों में संविधान है.
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मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आंखों से पट्टी हटाने का उद्देश्य यह है कि न्याय अंधा नहीं, बल्कि सबको एक समान देखता है और संविधान के आधार पर फैसले करता है, न कि तलवार के दम पर.
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आंखों पर पट्टी न्याय के अंधे होने का प्रतीक बन चुकी थी, जिसे बदलते हुए दिखाया गया है कि न्याय अन्याय के प्रति अंधा नहीं है. हिंसा के प्रतीक तलवार की जगह संविधान की किताब रखा गया.
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न्याय की देवी की प्रतिमा ब्रिटिश काल से भारत में प्रचलित हुई थी. अब इस बदलाव को ब्रिटिश काल की विरासत से दूरी बनाने की दिशा में एक कदम माना जा रहा है.
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लंदन की ओल्ड बेली कोर्ट हाउस में न्याय की देवी की प्रतिमा पर आंखों पर पट्टी नहीं है. एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में तलवार है, यह बदलाव 1907 में किया था.
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न्याय की देवी का संबंध प्राचीन मिस्र की सभ्यता से है. वहां देवी 'मात' को न्याय की देवी माना जाता था. इस प्रतिमा का इतिहास हजारों साल पुराना है और यह मिस्र से होते हुए दुनिया के विभिन्न हिस्सों में पहुंची.
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यह नई प्रतिमा सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के निर्देश पर अप्रैल 2023 में स्थापित की गई थी. इसे न्याय में समानता और संतुलन का नया प्रतीक माना जा रहा है.
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नई प्रतिमा में न्याय की देवी के हाथों में संविधान की किताब है, जो यह दर्शाता है कि अब न्याय संविधान के अनुरूप और समानता के आधार पर दिया जाएगा
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