हिज्बुल्लाह को पालने वाले लेबनान के पीछे करोड़ों डॉलर लेकर क्यों खड़ा है अमेरिका? क्या है उसकी स्ट्रैटजी?

ऋषि राज

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तस्वीर: भारत तक.
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न्यूज़ हाइलाइट्स

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लेबनान की सेना को भी अमेरिका करता है मदद?

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अमेरिका का दावा- गैर सरकारी संगठन के जरिए पहुंचाता है मदद.

इजराइल कई मोर्चे पर जंग लड़ रहा है. गज़ा में हमास के खिलाफ. लेबनान में हिज्बुल्लाह के खिलाफ और इन दोनों को अपनी प्रॉक्सी के तौर पर इस्तेमाल करने वाले देश ईरान के खिलाफ. ईरान के खिलाफ जंग का ऐलान तो नहीं हुआ है, लेकिन इजरायल पर ईरान के 200 बैलेस्टिक मिसाइल अटैक के बाद हालात बेहद बिगड़ से गए हैं. 

इन सभी को हमलों से बचाने के लिए कसमें-वादे लेने वाले अमेरिका की एक बात शायद ही आप जानते होंगे.  दरअसल  जिस लेबनान में इजराइल की सेना घुसकर हिज्बुल्लाह के खिलाफ कार्रवाई कर रही है उसी की सेना और सरकार को अमेरिका करोड़ों डॉलर देता है. सेना को बकायदा मदद पहुंचाता है. 

अमेरिका ने लेबनान को दी थी आजाद देश की मान्यता

वैसे तो अमेरिका ने लेबनान को एक अजाद देश के रूप में 8 सितंबर 1944 को मान्यता दे दी थी, लेकिन अमेरिका की इन तमाम भूमिकाओं में सबसे अहम मोड़ साल 2006 आया. अब अमेरिका ने लेबनान को आर्थिक मदद भी देना शुरू कर दिया. तब से लेकर अब तक लेबनान को अमेरिका 3.5 बिलियन डॉलर की मदद दे चुका है. इस मदद के पीछे मुख्य एजेंडा लेबनान के अपने पैरों पर खड़ा करना, आर्थिक हालात सुधारना और खुद की सुरक्षा करना है. इतना ही नहीं अमेरिका यूएन के प्रस्ताव 1559, 1680 और 1701 का समर्थन भी करता है, जिसमें लेबनान सीरिया बॉर्डर का सीमांकन और लेबनानी सेना की पूरे देश में तैनाती की बात है. आज के दौर में लेबनान में मौजूद एनजीओ जो लेबनान के सुधार और सुरक्षा के लिए काम कर रही हैं, उसका अमेरिका समर्थन करता है. केवल समर्थन ही नहीं करता है बल्कि उसके लिए धन भी उपलब्ध करवाता है. खासकर ग्रामीण विकास और लोगों के जीवन के स्तर के सुधार पर उसका जोर है. 

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बात अमेरिका और लेबनानी सेना के रिश्तों की

साल 2022 अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अमेरिकी कांग्रेस को ये बताया कि लेबनान की सरकार की गुजारिश पर हमने 36 अमेरिकी सेना के एक्सपर्ट जवानों को लेबनान में तैनात किया है. जिसका मकसद वहां आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को मजबूती देना और लेबनानी सुरक्षाबलों को आतंररोधी ऑपरेशन में ताकतवर बनाना है. अमेरिकी सेना और लेबनान की सेना के बीच सालाना सैन्य अभ्यास भी होता है जिसे रिसोल्यूट यूनियन के नाम से जाना जाता है.

अब बात लेबनानी सेना को मजबूत करने की नीति के नाम पर अमेरिका द्वारा दिए जाने वाले पैसे की. तो साल 2006 से अब तक अमेरिकी लेबनान की सेना को 3 बिलियन डॉलर से अधिक की मदद दे चुका है. इसमें सबसे बड़ा सहयोग फॉरेन मीलिट्री फाइनेंसिंग नीति के जरिए की गई है. डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट, फॉरेन ऑपरेशन और रिलेटेड प्रोग्राम कांग्रेसनल बजट जस्टिफिकेशन फाइनेंशियल ईयर 2021 से 2024 के मुताबिक साल 2019 में इकोनॉमी सपोर्ट फंड के नाम पर लेबनान को 112.50 मिलियन, 2020 में 78.95 मिलियन, 2021 में 112.50 मिलियन, 2022 में 112.50 मिलियन, साल 2023 और साल 2024 के लिए भी 112.50 मिलियन की गुजारिश हुई. 

अब बात सेना को मिलने वाली फॉरेन मीलिट्री फाइनेंसिंग की करें तो साल 2019 में 105 मिलियन, 2020 में 105 मिलियन, 2021 में 120 मिलियन , साल 2022 में 180 मिलियन और साल 2023 और 2024 के लिए 150 मिलियन की मांग की गई. इसके अलावा कुछ दूसरे फंड को भी मिला दें तो अमेरिका ने साल 2019 में लेबनान को 242 मिलियन, 2020 में 216 मिलियन, 2021 में 258.32 मिलियन, साल 2022 में 315.2 मिलियन हो चुका है. साल 2023 और 24 में संभावित 282.46 मिलियन उपलब्ध कराने की उम्मीद है. 

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अमेरिका ने ये मदद भी दी

लेबनान में एक दौर ऐसा भी रहा जब अमेरिका ने उनके सैनिकों को दिए जाने वाले वेतन में भी सहयोग किया. अब बताया जा रहा है कि अमेरिका सेना को लॉजिस्टिक, गाड़ियां, कुछ आधुनिक हथियार तक मुहैया करा रहा है. 

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अमेरिकी कांग्रेस को दी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका वहां के मंत्रियों के साथ सीधे तौर पर जुड़ कर काम नहीं करता है. ना ही किसी दूसरी तरह की मदद उन मंत्रियों को या फिर सरकार को मुहैया करवाता है. इसके लिए वो वहां की लोकल पार्टनर पर निर्भर करता है जिसमें यूएन एजेंसी, स्थानीय गैर सरकारी संस्था, लेबनान में मौजूद अमेरिकी संस्थान और प्राइवेट सेक्टर शामिल हैं.

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