गांधी परिवार के गढ़ रायबरेली में राहुल गांधी के सामने यूपी में कांग्रेस के अंतिम किले को बचाने की चुनौती

अभिषेक गुप्ता

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Rae Bareli Lok Sabha Seat: लंबे इंतजार और नामांकन के अंतिम दिन उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट से कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार का ऐलान कर दिया है. कांग्रेस पार्टी ने यहां से राहुल गांधी को उम्मीदवार बनाया है. सोनिया गांधी के राज्य सभा जाने के बाद ये सीट खाली हो गई थी और यहां से कौन चुनाव लड़ेगा इसपर संशय बना हुआ था लेकिन अब ये स्थिति साफ हो गई है. इसके साथ ही गांधी परिवार अपनी विरासत वाली इस सीट को एक बार फिर से अपने पास रिटेन रखा है. बता दें कि, रायबरेली सीट पर पांचवें चरण में 20 मई को मतदान होना है और आज यानी 3 मई को नामांकन का अंतिम दिन है. 

आपको बता दें कि, 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस यूपी की सिर्फ एक लोकसभा सीट ही जीत सकी थी और वह सीट रायबरेली ही थी. 2024 के चुनाव में राहुल गांधी के सामने अब  यूपी में गांधी परिवार के इस अंतिम किले को बचाने की चुनौती होगी. यूपी में इस बार कांग्रेस अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरी है और पार्टी को गांधी परिवार के गढ़ में एकबार फिर से बड़ी जीत की उम्मीद है.

रायबरेली में किस पार्टी से कौन उम्मीदवार?

रायबरेली सीट पर बीजेपी ने कांग्रेस से ही पार्टी में आए दिनेश प्रताप सिंह को उम्मीदवार बनाया है. दिनेश प्रताप योगी सरकार में मंत्री भी हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले दिनेश सिंह ने कांग्रेस का साथ छोड़ बीजेपी में आए थे. 2019 के चुनाव में भी बीजेपी ने दिनेश सिंह को ही सोनिया गांधी के खिलाफ उम्मीदवार बनाया था. वहीं सपा ने पिछले कुछ चुनाव में इस सीट से कांग्रेस के समर्थन में अपना उम्मीदवार नहीं दिया है. वैसे कांग्रेस और बीजेपी के चुनावी मुकाबले को बसपा त्रिकोणीय बना रही है. मायावती की अगुवाई वाली बसपा ने इस सीट से ठाकुर प्रसाद यादव को उम्मीदवार बनाया है. वैसे रायबरेली का चुनावी इतिहास देखें तो गांधी परिवार के सदस्य जब चुनाव मैदान में उतरते हैं तो इस सीट पर पर चुनाव लगभग एकतरफा ही होता रहा है. 

नेहरू-गांधी परिवार से है पुराना नाता

रायबरेली लोकसभा सीट के चुनावी इतिहास की बात करें तो यह सीट 1957 के आम चुनाव से अस्तित्व में है. 1951-52 के पहले चुनाव में रायबरेली और प्रतापगढ़, दोनों जिलों को मिलाकर एक लोकसभा सीट हुआ करती थी और तब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी यहां से सांसद निर्वाचित हुए थे. रायबरेली सीट के अस्तित्व में आने के बाद फिरोज गांधी ने दूसरे आम चुनाव में इस सीट का रुख कर लिया और चुनाव जीतकर संसद पहुंचे. इस सीट से चुनाव-उपचुनाव मिलाकर कुल 16 बार कांग्रेस के उम्मीदवारों को जीत मिली है जबकि तीन बार गैर कांग्रेसी उम्मीदवार विजयी रहे हैं. रायबरेली और नेहरू-गांधी परिवार का नाता पुराना है. इस सीट का पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी संसद में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.

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इंदिरा ने रायबरेली से ही किया था चुनावी राजनीति का आगाज

पत्रकार से राजनेता बने फिरोज गांधी के निधन से रिक्त हुई रायबरेली सीट के लिए 1960 में उपचुनाव हुए. इस उपचुनाव और 1962 के चुनाव में इस सीट से नेहरू-गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनाव मैदान में नहीं उतरा. इंदिरा गांधी ने 1964 में बतौर राज्यसभा सदस्य सियासी डेब्यू किया और इसके बाद 1967 के चुनाव में रायबरेली से ही चुनावी राजनीति का आगाज किया. इंदिरा ने रायबरेली सीट से 1967, 1971, 1977 और 1980 यानि लगातार चार बार लोकसभा चुनाव लड़ा. इंदिरा गांधी को तीन बार जीत मिली जिसमें से एक बार कोर्ट ने उनके निर्वाचन को अवैध ठहराया तो एक बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

1980 से 1999 तक गैर गांधी सांसद

इंदिरा गांधी ने 1980 में रायबरेली से जीत हासिल की लेकिन वह संयुक्त आंध्र प्रदेश की मेंडक सीट से भी विजयी रही थीं. इंदिरा ने रायबरेली सीट छोड़ दी और उपचुनाव में अरुण नेहरू कांग्रेस के टिकट पर जीतकर संसद पहुंचे. अरुण 1984 में भी कांग्रेस के टिकट पर सांसद निर्वाचित हुए. 1989 और 1991 में कांग्रेस की शीला कौल संसद पहुंचीं लेकिन 1996 और 1998 में इस सीट से बीजेपी के अशोक सिंह विजयी रहे. 1999 के चुनाव में कांग्रेस ने कैप्टन सतीश शर्मा को टिकट दिया. कैप्टन सतीश ने यह सीट फिर से कांग्रेस की झोली में डाल दी.

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2004 से 2019 तक संसद पहुंचती रहीं सोनिया गांधी

2004 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली और नेहरू-गांधी परिवार की 24 साल लंबी दूरी खत्म हुई. 2004 में अमेठी की विरासत अपने बेटे राहुल गांधी को सौंप सोनिया गांधी ने रायबरेली से पहली बार चुनाव लड़ा और करीब ढाई लाख वोट के बड़े अंतर से जीत हासिल की. सोनिया गांधी 2009 में 3 लाख 72 हजार से अधिक वोट के अंतर से चुनाव जीतकर संसद पहुंचीं. सोनिया 2014 और 2019 में भी रायबरेली से जीत हासिल करती रहीं जब कांग्रेस यूपी में महज दो और एक सीट पर सिमट गई थी. 

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