रूह अफजा: जिसे रामदेव ने 'शरबत जेहाद' कहा तो खड़ा हो गया विवाद

न्यूज तक

• 08:32 PM • 16 Apr 2025

क्या कोई पेय इतना खास हो सकता है कि वो दवा से पहचान बने, बंटवारे से न बंटे, और तीन मुल्कों की सांझा विरासत बन जाए? रूह अफजा की कहानी सिर्फ स्वाद की नहीं, एक ख्वाब, एक विरासत और एक पूरे दौर की है, जिसे जानना, इतिहास की एक मीठी घूंट पीने जैसा है. अब बाबा रामदेव ने रूह अफजा को शरबत जेहाद बताकर विवाद खड़ा कर दिया है.

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Rooh Afza Controversy

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एक हकीम का सपना (1907)
दिल्ली के लाल कुआं में हकीम हफीज अब्दुल मजीद ने गर्मी और डिहाइड्रेशन से जूझते लोगों के लिए यूनानी जड़ी-बूटियों से एक ठंडा सिरप बनाया, रूह अफजा, जिसका मतलब होता है "आत्मा को ताजगी देने वाला". फोटो/हमदर्द ऑफियल साइट

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दवा से शरबत की पहचान तक
1910 तक रूह अफजा इतना लोकप्रिय हुआ कि उसकी पैकिंग और लेबलिंग के लिए मुंबई के मिर्ज़ा नूर अहमद से रंगीन लेबल तैयार कराए गए. इसका रंग-बिरंगा लेबल आज तक वैसा ही है. 1920 तक यह दवा एक लोकप्रिय शरबत बना और हमदर्द दवाखाना एक प्रोडक्शन हाउस में तब्दील हो गया. रूह अफजा हर इफ्तार और गर्मी की मेज़ पर छा गया. फोटो/हमदर्द ऑफियल साइट

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बंटवारा, पर विरासत साझा रही
देश के बंटवारे के बाद भी रूह अफजा की कहानी नहीं बटीं. 1947 में देश के बंटवारे के बाद हकीम मजीद के बेटे, अब्दुल हमीद ने भारत में और मोहम्मद सईद ने पाकिस्तान में हमदर्द को संभाला. पाकिस्तान में कराची में नई फैक्ट्री बनी, जहां केवड़े की कमी के चलते सिट्रोन और गुलेबहार का इस्तेमाल हुआ. यह शरबत आज भी उतना ही पसंद किया जाता है. फोटो/हमदर्द ऑफियल साइट

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बांग्लादेश में भी पहुंचा रूह अफजा
बाद में हमदर्द की एक शाखा बांग्लादेश में खोली गई. सादिया रशीद, हकीम मोहम्मद सईद की बेटी के अनुसार 1971 में बांग्लादेश के गठन के बाद उनके पिता ने इसे वहां की जनता को सौंप दिया गया. इस तरह रूह अफजा तीन देशों की सांझा सांस्कृतिक पहचान बन गया. फोटो/हमदर्द ऑफिशियल साइट

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फिर घर-घर पहुंचा शरबत
हमदर्द के हकीम अब्दुल हमीद को पद्मश्री (1965) और पद्मभूषण (1992) मिला. 1962 में यूनानी चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए Institute of History of Medicine and Medical Research (IHMMR) की स्थापना हुई, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1970 में किया. 1984 में वित्त मंत्री डॉ. प्रणब मुखर्जी ने मजीदिया हॉस्पिटल का उद्घाटन किया, जो आज भी गुणवत्तापूर्ण इलाज देता है. फोटो/ हमदर्द ऑफिशियल साइट

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दुनिया भर में पॉपुलर हुआ रूह अफजा 
रूह अफजा आज 40 से ज्यादा देशों में बिकता है. फालूदा, लस्सी, कुल्फी या शरबत, हर रूप में ये लोगों के दिलों को ठंडक देता है. अफगान शरणार्थी इसे बिना पानी मिलाए पी जाते थे! कुछ रिपोर्टों के मुताबिक इसे कार के इंजन ठंडे करने के लिए भी इस्तेमाल किया गया. फोटो/ हमदर्द ऑफिशियल साइट

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रूह अफजा से जुड़े विवाद और चेतावनियां
2022 में हरियाणा के मानेसर स्थित हमदर्द फैक्ट्री में हिंदू आरक्षण को लेकर विवाद हुआ. वहीं 2024 में बांग्लादेश में इसके लेबल पर हर्बल दावों पर सवाल उठे. साथ ही, हाई शुगर कंटेंट के चलते डॉक्टरों ने सीमित सेवन की सलाह दी है. फोटो/हमदर्द ऑफिशियल साइट

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रामदेव का ‘शरबत जिहाद’ बयान
योग गुरु बाबा रामदेव ने रूह अफजा को 'शरबत जिहाद' कहकर विवाद खड़ा किया है. उन्होंने दावा किया कि इसकी कमाई मस्जिदों और मदरसों में जाती है, और लोगों से पतंजलि का शरबत खरीदने की अपील की. फोटो/सोशल मीडिया

स्टोरी इनपुट- गितांशी शर्मा

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