बिहार में बाबाओं की बहार बीजेपी का चुनावी दांव? बीजेपी की रणनीति और विपक्ष की चुनौती क्या है?

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तस्वीर: न्यूज तक.
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Bihar Politics: बिहार की राजनीति में इन दिनों धर्मगुरुओं की सक्रियता चर्चा का विषय बनी हुई है. हाल के दिनों में बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री और आर्ट ऑफ लिविंग के श्री श्री रविशंकर ने बिहार में अपने प्रवचन और धार्मिक आयोजनों के जरिए सुर्खियां बटोरी हैं. इन बाबाओं की बढ़ती मौजूदगी को बिहार चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है.

बीजेपी का 'बाबा फैक्टर' बिहार में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को अब बाबाओं का सहारा लेना पड़ रहा है. कुछ समय पहले तक बिहार में नारा गूंजता था- "बिहार में बहार है, फिर से नीतीश कुमार हैं." लेकिन अब नारा बदल गया है- "बिहार में बाबा है, बाबा ही बाबा है." 

यह सवाल उठने लगा है कि क्या बीजेपी बाबाओं की लोकप्रियता के जरिए चुनावी माहौल को अपने पक्ष में करना चाहती है? बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री हाल ही में बिहार आए और उन्होंने गोपालगंज में कथा का आयोजन किया. कथा के दौरान उन्होंने हिंदू राष्ट्र की बात कही और दावा किया कि अगर भारत हिंदू राष्ट्र बनेगा तो बिहार इसका पहला राज्य होगा. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि वह किसी विशेष पार्टी के लिए वोट नहीं मांग रहे, लेकिन हिंदू राष्ट्र का मुद्दा जिस राजनीतिक दल के एजेंडे में है, वह सबको मालूम है.

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श्री श्री रविशंकर की बिहार यात्रा 

धीरेंद्र शास्त्री के बाद श्री श्री रविशंकर भी बिहार पहुंचे. उन्होंने पटना में एक भव्य सत्संग किया और बिहार सरकार की तारीफों के पुल बांधे. उनकी उपस्थिति को लेकर विपक्ष ने सवाल उठाए कि क्या वे अप्रत्यक्ष रूप से मौजूदा सरकार का समर्थन कर रहे हैं? महागठबंधन के नेताओं का कहना है कि बीजेपी को अपने विकास कार्यों पर भरोसा नहीं रहा, इसलिए अब वह बाबाओं के सहारे चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है. 

नीतीश कुमार की चुप्पी और जेडीयू का रुख 

नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू इस पूरे मामले पर चुप्पी साधे हुए है. जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता राजीव रंजन ने बस इतना कहा कि बिहार में सभी समुदायों को अपनी बात रखने की आजादी है और पिछले 20 वर्षों में कोई सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ है, लेकिन उन्होंने हिंदू राष्ट्र की मांग करने वाले बाबाओं की आलोचना करने से परहेज किया.

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बीजेपी की रणनीति और विपक्ष की चुनौती 

बीजेपी के नेता इस मुद्दे पर स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि कोई भी धर्मगुरु बिहार में आ सकता है, चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम. लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की रणनीति का हिस्सा हो सकता है. बीजेपी की इस रणनीति का जवाब महागठबंधन कैसे देगा, यह देखने वाली बात होगी. क्या तेजस्वी यादव और उनके सहयोगी कोई नया दांव खेलेंगे? या फिर वे बाबाओं की इस बढ़ती सक्रियता को ही बीजेपी के खिलाफ मुद्दा बनाएंगे?

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बिहार महोत्सव: अप्रवासी बिहारी वोट बैंक को साधने की कोशिश? 

इस बीच, बिहार स्थापना दिवस (22 मार्च) को लेकर भी बड़ा आयोजन किया जा रहा है. बिहार महोत्सव को इस बार बड़े स्तर पर मनाने की तैयारी हो रही है, जिसमें बीजेपी के बड़े नेता शामिल होंगे. इस कार्यक्रम को बिहार से बाहर रहने वाले बिहारी वोटरों को लुभाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. 

बीजेपी की योजना यह है कि देश के अन्य राज्यों में भी बिहार महोत्सव का आयोजन किया जाए, ताकि अप्रवासी बिहारी चुनाव के समय बिहार लौटकर बीजेपी के पक्ष में वोट दें. 


 

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